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शकुन्तला मिश्रा पुनर्वास विश्वविद्यालय में ‘‘वाल्मीकि रामायण में मानवीय मूल्य’’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन

Lecture organized on the topic “Human values ​​in Valmiki Ramayana” at Shakuntala Mishra Rehabilitation University

लखनऊ। आज महर्षि वाल्मीकि की जयन्ती के अवसर पर डॉ शकुन्तला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय की स्थायी आयोजन समिति के द्वारा ‘‘वाल्मीकि रामायण में मूल्य’’ विषय पर एक व्याख्यान का आयोजन किया गया। विश्वविधालय के कुलपति आचार्य संजय सिंह की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो राम सुमेर यादव ने प्रतिभाग किया।

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शकुन्तला मिश्रा पुनर्वास विश्वविद्यालय में ‘‘वाल्मीकि रामायण में मानवीय मूल्य’’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य संजय सिंह ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि हम सभी को रामायण में बताए गए मूल्यों को आत्मसात करने की आवश्यकता है। महर्षि वाल्मीकि के जीवन एवं व्यक्तित्व से हमें प्रेरणा लेते हुए समाज हित में कार्य करने के लिए तत्पर रहना चाहिए।

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वाल्मीकि ने एक ऐसे आदर्श राज्य की परिकल्पना की थी, जहां प्रजा की सुरक्षा और खुशहाली हो, जहां धर्म और अर्थ, दोनों की अभिवृद्धि हो। “न चाति प्रतिकूलेन नाविनीतेन राक्षस” जनता के प्रतिकूल चलने वाले राजा से राज्य की रक्षा नहीं हो सकती।

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मुख्य अतिथि प्रो राम सुमेर यादव ने महर्षि वाल्मीकि से जुड़े कई प्रसंगों को साझा करते हुए कहा कि ”व्यवस्था कैसी भी हो, पर जनता का हित सर्वप्रमुख है। जहां जनता का हित उपेक्षित है, वहां जनता द्वारा व्यवस्था भी उपेक्षित हो जाती है।

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राजनीति में एक व्यक्ति का कर्म पूरे राष्ट्र को प्रभावित करता है-“व्यसनं स्वामिवैगुण्यात् प्राप्नुवन्तीतरे जनाः।” इसलिए लोकप्रिय शासन वही है, जो स्थूल आंखों से सोता है, लेकिन नीति की आंखों से सदैव जागता है-नयनाभ्यां प्रसुप्तो वा जागर्ति नयचक्षुषा। व्यक्त क्रोध प्रसादश्च स राजा पूज्यते जनैः।।

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विश्वविधालय के अधिष्ठाता शैक्षणिक प्रो वीके सिंह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वाल्मीकि तमसा नदी के तट पर क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे। तभी एक बहेलिये ने प्रेम में मग्न उस जोड़े पर बाण चला दिया। उसने नर पक्षी के प्राण ले लिये। वियोग में मादा विलाप करने लगी।

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उसकी पीड़ा देखकर वाल्मीकि के मुख से स्वतः यह श्लोक फूट पड़ा-मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम।। हे दुष्ट, तुमने प्रेम में मग्न एक पक्षी को मार दिया है। जा तुझे कभी भी शांति की प्राप्ति न हो पाएगी। इसी छंद के कारण महर्षि वाल्मीकि आदिकवि हुए। यही श्लोक रामायण का आधार बना।

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कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन डॉ पुष्पेंद्र सिंह, धन्यवाद ज्ञापन स्थायी समिति की संयोजिका डॉ आद्या शक्ति राय एवं संचालन डॉ विजेता दुआ द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रो शैफाली यादव, प्रो अवनीश चंद्र मिश्रा, प्रो पी राजीव नयन, प्रो वीरेंदर सिंह यादव आदि के साथ शिक्षकवृन्द एवं विद्यार्थीगण मौजूद रहे।

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