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मासिक धर्म की पहली शिक्षिका है ‘मां’

लखनऊ। ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय लखनऊ के पत्रकरिता विभाग की शोधार्थी नीतिका अंबस्ता को डॉक्टर रुचिता सुजय चौधरी के मार्गदर्शन में उनके शोध विषय ‘ग्रामीण किशोरियों के बीच मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मध्यस्थ संचार की समझ’ पर शोध डिग्री अवार्ड की गई।

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नीतिका अम्बष्ट ने अपने थीसिस में मासिक धर्म जैसे उपेक्षित किन्तु अनिवार्य विषय का अध्ययन किया और अपने व्यापक शोध और विश्लेषण के माध्यम से कई अहम तथ्यों को सामने लाया। कुल मिलाकर यह अध्ययन ग्रामीण किशोर लड़कियों के बीच मासिक धर्म के बारे में जागरूकता पैदा करने में मध्यस्थ संचार की भूमिका को समझने में मदद करता है।

मासिक धर्म की पहली शिक्षिका है 'मां'

यह अध्ययन मासिक धर्म से संबंधित प्रचलित मिथकों को दर्शाता है जैसे मासिक धर्म के दौरान पूजा करने की अनुमति नहीं होना, अचार छूने की अनुमति नहीं होना आदि। यह शोध बताता है कि मास मीडिया में टेलीविजन विज्ञापन ग्रामीण किशोरियों के बीच मासिक धर्म से संबंधित जानकारी का सबसे बड़ा स्रोत है, इसके बाद समाचार पत्र और इंटरनेट हैं।

इस अध्ययन में मासिक धर्म के बारे में जागरूकता पैदा करने में रेडियो की भूमिका लगभग नगण्य बताई गई जबकि रेडियो ग्रामीण किशोरियों तथा किशोरियों की माताओं तक में मासिक धर्म से संबंधित स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में जानकारी प्रसारित करने का एक बहुत ही प्रभावी माध्यम हो सकता है। ज्यादातर लड़कियां फिल्म ‘पैडमैन’ देख चुकी है और फिल्म की कहानी से काफी संतुष्ट है फिर भी मासिक धर्म पर चर्चा करने से मनाही है।

खासकर परिवार के पुरुष सदस्यों की उपस्थिति में अधिकांश लड़कियां मासिक धर्म से संबंधित कोई भी चीज देखने में शर्म महसूस करती हैं। व्यक्तिगत रूप से मां मासिक धर्म से संबंधित जानकारी का प्राथमिक स्रोत है। लड़कियों के एक बड़े हिस्से 46. 75% के पास मीडिया से जानकारी का कोई स्रोत नहीं है। केवल 42. 5% लड़कियां ही मासिक धर्म के बारे में जागरूक करने में मीडिया की भूमिका से संतुष्ट हैं और 68. 25% लड़कियां सूचना के स्रोत के रूप में व्यक्ति विशेष रूप से मां बहन और दोस्त की भूमिका से खुश हैं।

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