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काशी ही नहीं सुल्तानपुर के इस अघोरपीठ में भी खेली जाती है ‘मसान की होली’

सुल्तानपुर, (श्याम चन्द्र श्रीवास्तव)। हिन्दू धर्म में काशी (Kashi) के साथ-साथ अघोरपीठ बाबा सत्यनाथ मठ (Aghorpeeth Baba Satyanath Math) अल्देमऊ नूरपुर में मसान की होली (Holi of Masan) का बहुत महत्व है। यहां के लोग एक अलग ही तरीके के होली का त्योहार मनाते हैं। मसान की होली (Holi of Masan) खेलने के लिए लोग मठ के पीछे आदिगंगा गोमती के तट पर स्थित महाश्मशान घाट (Mahasmshan Ghat) पर जाते हैं और वहां पर मठ के पीठाधीश्वर अवधूत उग्र चण्डेश्वर कपाली बाबा (Avdhoot Ugra Chandeshwar Kapali Baba) अपने अघोरी शिष्यों और भक्तों के साथ श्मसान पूजा के उपरान्त चिता की राख से होली खेलते हैं।

अवधूत कपाली बाबा बताते हैं कि इस होली का मुख्य उद्देश्य अपने पूर्वजों को याद करना और उनकी आत्मा को शांति देना होता है। इसलिए यहां के लोग भगवान शिव की पूजा करते हैं और पूरी श्रद्धा भाव के साथ मसान की होली खेलते हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष चतुर्दशी तिथि (13 मार्च) को अघोरपीठ बाबा सत्यनाथ मठ में भगवान शिव को समर्पित मसान होली पीठाधीश्वर अवधूत उग्र चण्डेश्वर कपाली बाबा के सानिध्य में खेली जायेगी।

मठ परिसर में आयोजित मसान की होली को ‘चिता भस्म होली’ भी कहा जाता है। एक अनोखी और प्राचीन परंपरा है। अवधूत कपाली बाबा ने बताया कि मृत्यु पर शोक मनाने के बजाय, मृत्यु को जीवन का एक चक्र मानकर मनाया जाना चाहिए। मसान की होली भगवान शिव को समर्पित है, जो मृत्यु के देवता भी हैं। काशी और सत्यनाथ मठ में मसान की होली एक अनोखा और अद्भुत त्योहार है, जो हर साल होली के दिन मनाया जाता है। यह त्योहार मृत्यु पर विजय का प्रतीक माना जाता है।

ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने मृत्यु के देवता यमराज को पराजित करने के बाद मसान में होली खेली थी। इस घटना को यादगार बनाने के लिए, अघोरपीठ बाबा सत्यनाथ मठ के भक्तजन हर साल मसान की होली खेलते हैं। बता दें कि अघोरपीठ बाबा सत्यनाथ मठ परिसर में मसान होली हर साल फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है जो दिनांक 13 मार्च को है। मसान की होली में शामिल होने के लिए देश भर से अघोरी साधक और शिव भक्त आते हैं।

आपसी प्रेम, सद्भाव और भाईचारे का पर्व है ‘होली’

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने मसान की होली की शुरुआत की थी। मठ के पीठाधीश्वर अवधूत उग्र चण्डेश्वर कपाली बाबा ने बताया कि ऐसा माना जाता है कि रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शंकर माता पार्वती का गौना कराने के बाद उन्हें काशी लेकर आए थे। तब उन्होंने अपने गणों के साथ रंग-गुलाल के साथ होली खेली थी, लेकिन वे श्मशान में बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व, किन्नर समेत अनेक जीव जंतुओं आदि के साथ होली नहीं खेल पाए थे। इसलिए भोले शंकर ने श्मशान में रहने वाले भूत-पिशाचों के साथ होली खेली थी। तभी से मसान की होली खेलने की परंपरा चली आ रही है। मसाने की होली में चिता की राख से होली खेलने की ये परंपरा देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध है।

देश में काशी के अलावा सुल्तानपुर जनपद के कादीपुर तहसील क्षेत्र के अघोरपीठ बाबा सत्यनाथ मठ अल्देमऊ नूरपुर में मसान की होली अबीर गुलाल के साथ साथ (चिता की राख से होली) खेली जाती है। चिता भस्म की होली पर देवाधिदेव महादेव के भक्त पाराम्परिक फगुआ गीत जमकर झूमते हैं। महाश्मशान अघोरपीठ बाबा सत्यनाथ मठ परिसर में हर हर महादेव के नारे गूंजते हैं। इस अवसर पर देवाधिदेव महादेव के भक्त अबीर गुलाल व चिता भस्म की होली खेलते हैं। होली के मौके पर चिता की भस्म को अबीर और गुलाल एक दूसरे पर अर्पित कर सुख, समृद्धि, वैभव संग शिव का आशीर्वाद पाते हैं। मसान की होली इस बात का संदेश देती है शिव ही अंतिम सत्य है। शिवपुराण और दुर्गा सप्तशती में भी मसान की होली का वर्णन किया गया है। दिव्य मसाने की होली की मठ परिसर में तैयारियां जोरों पर है भक्त गण होली को धूमधाम से मनाने के लिए पूरे उत्साह से भरे हुए हैं।

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