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जामवंत से महाभारत काल के दौरान श्रीकृष्ण ने इसलिए लड़ा था युद्ध…

शास्त्रों में कई ऐसी कहानी  कथाएं हैं जो दंग कर देने वाली हैं ऐसे में भगवान से जुडी कई ऐसी कहानियाँ है जिनके बारे में आप शायद ही जानते होंगे अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं रामायण काल की एक कहानी, जब जामवंत से महाभारत काल के दौरान श्रीकृष्ण ने युद्ध लड़ा था आइए बताते हैं

कथा – भगवान श्रीकृष्ण का जाम्बवंत से द्वंद्व युद्ध हुआ था जाम्बवंत रामायण काल में थे  उनको अजर-अमर माना जाता है उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम जाम्बवती थाजाम्बवंतजी से भगवान श्रीकृष्ण को स्यमंतक मणि के लिए युद्ध करना पड़ा था उन्हें मणि के लिए नहीं, बल्कि खुद पर लगे मणि चोरी के आरोप को असिद्ध करने के लिए जाम्बवंत से युद्ध करना पड़ा था दरअसल, यह मणि भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा के पिता सत्राजित के पास थी  उन्हें यह मणि भगवान सूर्य ने दी थी सत्राजित ने यह मणि अपने देवघर में रखी थी वहां से वह मणि पहनकर उनका भाई प्रसेनजित आखेट के लिए चला गया जंगल में उसे  उसके घोड़े को एक सिंह ने मार दिया  मणि अपने पास रख ली सिंह के पास मणि देखकर जाम्बवंत ने सिंह को मारकर मणि उससे ले ली  उस मणि को लेकर वे अपनी गुफा में चले गए, जहां उन्होंने इसको खिलौने के रूप में अपने पुत्र को दे दी

इधर सत्राजित ने श्रीकृष्ण पर आरोप लगा दिया कि यह मणि उन्होंने चुराई है तब भगवान श्रीकृष्ण इस मणि को खोजने के लिए जंगल में निकल पड़े ढूंढते खोजते वे जाम्बवंत की गुफा तक पहुंच गए वहां उन्होंने वह मणि देखी जाम्बवंत ने उस मणि को देने से मना कर दिया तब श्रीकृष्ण को यह मणि हासिल करने के लिए जाम्बवंत से युद्ध करना पड़ाजाम्बवंत को विश्‍वास नहीं था कि कोई उन्हें हरा सकता है उनके लिए यह आश्चर्य ही था बाद में जाम्बवंत जब युद्ध में हारने लगे तब उन्होंने सहायता के लिए अपने आराध्यदेव प्रभु श्रीराम को पुकारा आश्चर्य की उनकी पुकार सुनकर भगवान श्रीकृष्ण को अपने राम स्वरूप में आना पड़ा जाम्बवंत यह देखकर आश्चर्य  भक्ति से परिपूर्ण हो गए तब उन्होंने क्षमा मांगते हुए सरेंडर कर अपनी भूल स्वीकारी  उन्होंने मणि भी दी  श्रीकृष्ण से निवेदन किया कि आप मेरी पुत्री जाम्बवती से शादी करें श्रीकृष्ण ने उनका निवेदन स्वीकार कर लियाजाम्बवती-कृष्ण के संयोग से महाप्रतापी पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम साम्ब रखा गया इस साम्ब के कारण ही कृष्ण कुल का नाश हो गया था

उल्लेखनीय है कि श्रीकृष्ण द्वारा इस मणि को ले जाने के बाद उन्होंने इस मणि को सत्राजित को नहीं देकर बोला कि कोई ब्रह्मचारी  संयमी आदमी ही इस पवित्र मणि को धरोहर के रूप में रखने का ऑफिसर है अत: श्रीकृष्ण ने वह मणि अक्रूरजी को दे दी उन्होंने बोला कि अक्रूर, इसे तुम ही अपने पास रखो तुम जैसे पूर्ण संयमी के पास रहने में ही इस दिव्य मणि की शोभा है श्रीकृष्ण की विनम्रता देखकर अक्रूर नतमस्तक हो उठे

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