देश की ऑटो इंडस्ट्री पिछले दो दशकों में सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। नौकरियों में कमी आ रही है। कंपनियों के कारों में छूट की पेशकश करने के बावजूद वे खरीदारों के बीच रुचि पैदा करने में विफल रही हैं। हाल ही में उद्योग में मंदी के विषय पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि लोगों की मानसिकता में बदलाव आया है। अब लोग खुद का वाहन खरीदकर मासिक किस्त देने के बजाए ओला और उबर जैसी आनलाइन टैक्सी सेवा के इस्तेमाल को प्राथमिकता दे रहे हैं।
सीतारमण ने कहा कि दो साल पहले तक वाहन उद्योग के लिए अच्छा समय था। मंत्री ने कहा कि ऑटो सेक्टर कई चीजों से प्रभावित है, जिसमें वाहनों के BS-VI मानकों, पंजीकरण शुल्क में प्रस्तावित बढ़ोतरी और लोगों की सोच में बदलाव शामिल हैं। मंत्री ने यह भी आश्वासन दिया कि उद्योग को जरूरी गति देने के लिए अधिक बड़ी घोषणाएं की जानी हैं। बताते चलें कि भारतीय ऑटो उद्योग में घरेलू यात्री वाहनों की बिक्री में लगातार दसवें महीने गिरावट दर्ज की गई है, जो अगस्त में 30.9 प्रतिशत घटकर एक लाख 95 हजार 558 यूनिट रही। जबकि एक साल पहले इसी कालखंड में वाहनों की बिक्री की संख्या दो लाख 82 हजार 809 यूनिट हुई थी।
साल-दर-साल तुलना करें, तो भारत की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी ने पिछले साल 1,45,624 कारों की ब्रिकी की थी, जबकि इस साल इसमें 36 प्रतिशत की गिरावट होने के बाद अभी तक महज 39,173 कारें ही बिकी हैं। हालांकि, सबसे बड़ा झटका टाटा मोटर्स को लगा है, जिसने अगस्त 2019 में 60 फीसद की गिरावट के साथ महज 7,316 कारें ही बेची हैं, जबकि पिछले साल इसी समय में टाटा ने 18,420 कारें बेची थीं।