लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा विरोधाभासों में अपनी सरकार के दिन काट रही है। उसके पास विकास की या भविष्य की कोई दृष्टि नहीं है। महामहिम राज्यपाल महोदया को प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति सुधरी नज़र आती है। किन्तु हकीकत में ‘उनकी सरकार‘ बिना 144 धारा के सहारे एक कदम नहीं चल पा रही है। यह सब तब हो रहा है जब माननीय सर्वोच्च न्यायालय इस पर टिप्पणियां कर चुका है। भाजपा सरकार सम्भवतः अपने को इस सबसे ऊपर मानती है।
सर्वोच्च न्यायालय ने अभी पिछले दिनों ही यह टिप्पणी की थी कि अनावश्यक तौर पर धारा 144 लागू करना नागरिक स्वतंत्रता पर प्रहार करना है। विरोधी सुरों को बेमियादी समय तक दबाने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं हो सकता है। इसकी व्यवस्था हिंसा और सार्वजनिक सुरक्षा पर खतरे की आशंका में ही किसी क्षेत्र विशेष में होनी चाहिए।
लेकिन उत्तर प्रदेश की सरकार है कि वह लगातार धारा 144 लागू कर नागरिक स्वतंत्रता का हनन करने पर तुली है। यह माननीय सर्वोच्च न्यायालय और संविधान दोनों की उपेक्षा है।
उन्होंने कहा, लखनऊ में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने के साथ यह दावा किया जा रहा था कि अब कानून व्यवस्था के ‘अच्छे दिन‘ आ जाएंगे। लेकिन यह भाजपा सरकार तो अब गणतंत्र दिवस के बहाने से भी धारा 144 शहर में लगा रही है। भाजपा सरकार आखिर क्या चाहती है गणतंत्र दिवस की भी गरिमा और उत्साह न रहे ? क्योंकि 4 से अधिक व्यक्तियों के एकत्र होने पर तो निषेधाज्ञा टूट जाएगी और धारा 144 तोड़ने वालों की गिरफ्तारी हो सकती है।
एक सवाल महामहिम राज्यपाल जी से भी कि जब कानून व्यवस्था प्रदेश में सुधरी हुई है तो राजधानी में धारा 144 किस प्रयोजन से लगाई जा रही है। उन्हें भाजपा सरकार से इस पर जवाब तलब करना चाहिए। अकारण धारा 144 लगाए रखना तोकतंत्र में स्वस्थ परम्परा नहीं कही जा सकती है। लगता है सरकार के समक्ष कोई संवैधानिक संकट है। असहमति लोकतंत्र में स्वाभाविक तत्व है। जनता की आवाज को दबाने के लिए सत्ता का दुरूपयोग अलोकतांत्रिक और अवांछनीय कृत्य है।
भाजपा सरकार ने राज्य में ऐसी पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की है कि राजधानी में ही पुराने लखनऊ के घण्टाघर पर सीएए और एनपीआर के विरोध में सैकड़ों महिलाओं द्वारा धरना-प्रदर्शन के समय कंपकंपाती ठण्डी रात्रि में उनके कम्बल छीन लिए गए। शौचालय पर ताला लगा दिया गया। प्रदर्शन स्थल की लाइटें काट दी गई। महिलाओं के साथ बच्चे भी थे उन पर भी इस सरकार को तरस नहीं आया। यह सरकार की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। अब सब भाजपा से जल्दी मुक्ति के इंतजार में है।