जयपुर। एक पशु चिकित्सक ने लाचार और बेजुबां जानवरों की पीड़ा को अपना समझा और तरकीब निकाली जिसके बाद अब अपंग पशुओं को अपने पैरों पर खड़े होने का सहारा मिल गया. इस पहल की शुरुआत ‘कृष्णा’ नाम के गाय के बच्चे के एक्सीडेंट से हुई थी लेकिन फिर ये मदद उन पशुओं के लिए जिंदगी बन गया जो किसी ना किसी हादसे में अपंग हो गए. यकीन मानिए उनकी इस सोच को पहले उनके साथ के लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया था.
जयपुर की हिंगोनिया गोशाला के पशु चिकित्सक डॉक्टर तपेश माथुर दिव्यांग पशुओं को कृत्रिम अंग लगाकर उन्हें जीवन देने में लगे हुए हैं। संभवतः पशुओं को कृत्रिम अंग लगाने का देश भर में उनका यह इकलौता प्रयास है। किसी भी राज्य या केंद्र सरकार के स्तर पर इस तरह की कोई योजना भी नहीं चलाई जा रही है। इस अर्थ में यह अपने आप में एक अनूठा प्रयास कहा जा सकता है।
एक कृत्रिम पैर लगाने का खर्च पांच हजार रुपए तक आता है, जिसे डॉक्टर माथुर खुद ही वहन करते हैं. वह पशुओं के लिए वो कृत्रिम पैर निशुल्क लगाते है. अगर कोई दान भी देता है तो उसे जरूरतमंदों के लिए लगा देते हैं. डॉ तपेश अब तक अपंग गाय, उसके बछड़े, बैल, डॉग्स, घोड़े सभी ओ कृत्रिम पैर लगा चुके है.डॉक्टर तपेश माथुर ने बताया कि दो साल की बछिया चंचल को एक सड़क दुर्घटना के दौरान गहरी चोट लग गई थी। इलाज के दौरान उसका एक पैर काटना पड़ा था। इसके बाद से उसका जीवन काफी कष्टमय हो गया। लेकिन उससे बेहद लगाव रखने वाले उसके मालिक उसे अपने पैरों पर खड़े होते हुए देखना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि वे चंचल के अंगों की साइज़ ले चुके हैं और इसी हफ्ते चंचल अपने कृत्रिम पैर पर चलने के काबिल हो जायेगी।
इस तरह हुई शुरुआत
एक पशु चिकित्सक के रूप में डॉक्टर तपेश माथुर वर्ष 2012 में राजस्थान सरकार की सरकारी गोशाला हिंगोनिया में स्थानांतरित होकर आये। अन्य अस्पतालों में लोग पशुओं का इलाज उनसे करवाते थे, लेकिन इलाज के बाद उन्हें अपने साथ लेकर चले जाते थे। लेकिन हिंगोनिया गोशाला में रहकर काम करते हुए उन्होंने इलाज के बाद भी पशुओं के संघर्ष को अपनी आंखों से देखा। यहीं पर उन्हें पशुओं को उनके दर्द से मुक्ति देने का विचार आया। इसके बाद उन्होंने गूगल से कृत्रिम अंग बनाने की कला सीखने की कोशिश की। इसमें उन्होंने अपने कई मित्रों का सहयोग भी लिया। सबसे पहले उन्होंने कृष्णा नाम के एक बछड़े को कृत्रिम पैर लगाया। उन्हें इसमें सफलता मिली और वह अपने पैरों पर चलने लगा। एक जगह पर बंधे रहने को मजबूर कृष्णा, कृत्रिम पैर लगने के बाद सामान्य बछड़ों की तरह इधर-उधर जाना, चरना और खेलना शुरू कर दिया। इससे उनका उत्साह बढ़ने लगा। उसके बाद ही उन्होंने इसकी जानकारी अन्य लोगों को दी।
डॉक्टर माथुर के मुताबिक ऐसे पशुओं का सामान्य जीवन काल कम हो जाता है। कृष्णा भी कुछ समय के बाद इस दुनिया से चला गया, लेकिन उसके नाम पर ही उन्होंने ‘कृष्णा लिंब’ संगठन की नींव रखी। आज इसी के माध्यम से वे पूरे देश में घूम-घूमकर पशुओं को कृत्रिम अंग लगाते हैं।
सोशल मीडिया बना वरदान : सोशल मीडिया ने डॉक्टर तपेश माथुर की पहुंच काफी दूर-दूर तक पहुंचा दी है। उन्होंने ‘कृष्णा लिंब’ के नाम से फेसबुक पेज बना रखा है। इसके जरिये लोग लगातार उनसे संपर्क करते हैं। इसके अलावा सफल केस के बाद लोगों के बीच बातचीत भी लोगों को उनके पास तक पहुंचाती है। यहां तक कि लंदन और क्रोएशिया तक से लोग उनसे पशुओं को कृत्रिम पैर लगाने के तरीके सीख रहे हैं। उन्होंने बताया कि क्रोएशिया में एक केयरटेकर गैबरीला ने उनसे बछड़े को पैर लगाने के लिए संपर्क किया था। वे मेनका गांधी के संचालित संचालित संगठन संजय गांधी गोशाला के जरिये भी पशुओं की सेवा कर रहे हैं।
डॉक्टर तपेश माथुर ने बताया कि पशुओं के ये कृत्रिम अंग रोज सुबह लगाना पड़ता है और शाम को निकालना पड़ता है। इसके आलावा शुरुआत में पशुओं को इन अंगों के साथ चलने के लिए प्रशिक्षित भी करना पड़ता है। इसके अलावा व्यक्ति तो स्वयं डॉक्टर के पास पहुंच जाते हैं या उनके परिवार के लोग उन्हें डॉक्टर के पास पहुंचा देते हैं। लेकिन दिव्यांग पशुओं को कहीं ले जाना संभव नहीं होता। ऐसे में उन्हें स्वयं ही पशु के स्थान पर पहुंचना होता है।
मजबूत पैर बनाना भी चुनौती : वह बताते हैं कि पशुओं का शरीर काफी भारी होता है। ऐसे में उनका भार सहन करने योग्य कृत्रिम अंग बनाना भी काफी चुनौती भरा काम होता है. उन्होंने बताया कि वे इसके लिए एसडीपी पाइप जैसी चीजों का इस्तेमाल करते हैं। इसके आलावा अब वे पोलीप्रोपाइलिन पदार्थ का भी इस्तेमाल करते हैं। यह वजन में काफी हल्का, लेकिन काफी मजबूत होता है। पशुओं के वजन के हिसाब से यह दो मिमी से लेकर आठ मिमी तक की मोटाई का होता है।
यह लगभग 300 से 400 किलो का भार वहन करने में सक्षम होता है। छोटे पशुओं के कृत्रिम अंग लगाने के बाद उनके बड़े होने पर इसे बदलना भी पड़ता है। एक सामान्य कृत्रिम अंग लगाने में लगभग आठ हजार रुपये तक का खर्च आता है।
मिला चुका है सम्मान :पशुओं को कृत्रिम पैर लगाने का उनका यह काम अनूठा था. इसके लिए उन्हें पशु चिकित्सा के क्षेत्र की सर्वोच्च संस्था ‘इंडियन सोसाइटी फॉर वेटेरिनरी सर्जरी’ ने 2014 में गोल्ड मेडल देकर सम्मानित किया गया। इसके आलावा चेन्नई में उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ क्षेत्र पशुचिकित्सक’ के पुरस्कार से भी नवाजा गया।
रिपोर्ट-योगेश अग्निहोत्री