समाज
शोषण की छाती छीलो, पथ के सारे पाहन तोड़ो।
जो भी तुमको रोक रहे हैं, पहले उनको पकड़ मरोड़ो।जातिवादी कुछ टुच्चे तो, रहे सदा से राहों में।
लैकिन इनको तोड़ो-ताड़ो, धरो शूल अब बाँहों में।कब तक रोओगे किस्मत पर, कब तक खुद को तोड़ोगे ?
झूठ मूठ के इस ढर्रे को, कहो सखे कब छोड़ोगे ?रुको नहीं इन रोधों पर, इनको आखिर ढहना है।
नदी की भाँति बढ़े चलो, अविरल पथ पर बहना है।दुर्गेश कुमार सराठे सजल, होशंगाबद (मध्यप्रदेश)
Tags Society दुर्गेश कुमार सराठे सजल समाज होशंगाबद (मध्यप्रदेश)
Check Also
BLF Awards 2025 : शॉर्टलिस्ट हुईं किताबें, 23 फरवरी को दिल्ली में होगी घोषणा
वाराणसी। बनारस लिट फेस्ट (Banaras Lit Fest) ने अवार्ड्स के लिए हिंदी और अंग्रेजी में ...