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39 साल बाद हुआ है यूपी पुलिस पर बड़ा हमला!

डकैत छविराम के साथ 7 अगस्त 1981 में हुई मुठभेड़ में नौ पुलिस कर्मियों के साथ तीन ग्रामीण शहीद हुए थे। दस्यु छविराम नेता द्वारा किये गए हत्याकांड से उत्तर प्रदेश पुलिस थर्रा गई थी। अपनों की गद्दारी के कारण 1981में हुए नथुआपुर कांड की पुनरावृति है कानपुर का बिकरू पुलिस हत्याकांड। कानपुर के बिकरू गाँव में पुलिस हत्याकांड से उत्तर प्रदेश थर्रा गया है। ये घटना प्रदेश में पहली बार नहीं हुई है। इसके पहले करीब चार दशक पूर्व ऐसी ही घटना सात अगस्त 1981 में जनपद एटा के अलीगंज थाना क्षेत्र के नथुआपुर पुर गांव में घटित हो चुकी है।

सात अगस्त सन 1981 को नथुआपुर गांव में डकैत छविराम के साथ पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में नौ पुलिस कर्मियों और तीन ग्रामीणों मौत हो गयी थी। उस समय प्रदेश में बी.पी. सिंह की सरकार थी। समूचे प्रदेश में डकैत छविराम आतंक का पर्याय बना हुआ था। जनपद एटा दस्यु छविराम की शरण स्थली मानी जाती थी। अलीगंज इलाके में जगह-जगह पुलिस बल कैम्प किये हुए थे।

7 अगस्त 1981 का दिन उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए काला दिन इसलिए और बना क्योंकि इस दिन अलीगंज के तत्कालीन थाना इंचार्ज राजपाल सिंह को बेसब्री से इंतजार था। बताया जा रहा है कि दिवंगत शहीद इंस्पेक्टर राजपाल सिंह ने दस्यु सरगना छविराम को मारने की कसम खाते हुए डकैत छविराम के इर्दगिर्द मुखबिरों का जाल बिछा दिया था। मुखबिर की सूचना पर इंस्पेक्टर राजपाल सिंह अपने साथियों के साथ नथुआपुर गांव पहुंचे। जहां साठ से सत्तर बदमाशो के गिरोह के साथ भिड़ गए। घंटो चली इस मुठभेड़ में पुलिस के पास गोलियां कम पड़ गई। जिससे डकैत छविराम से चारों तरफ से घेराबंदी कर इंस्पेक्टर राज पाल सिंह सहित नौ पुलिसकर्मियों की नृशंस हत्या कर दी। कानपुर के बिकरू गांव में हुई घटना ने नथुआपुर कांड की याद ताजा कर दी।हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे द्वारा किये गए जघन्य अपराध ने डकैत छविराम की याद दिला दी।

तत्कालीन मुख्यमंत्री बी.पी. सिंह ने 1981 में हुई इस घटना को चुनैती मानते हुए डकैत छविराम के खात्मे की योजना बनाई और दो बर्ष के अंतराल में उत्तर प्रदेश पुलिस ने डकैत छविराम का एनकाउंटर कर प्रदेश को भयमुक्त कराया। कानपुर में हुई घटना उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए चुनौती से कम नहीं है। प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी चुनौती स्वीकारते हुए प्रदेश के डीजीपी को सख्त से सख्त कार्यवाही करने के आदेश जारी किए हैं।

स्थानीय पुलिस कर्मियों की भूमिका संदिग्ध

वहीं 1981 में हुई घटना में भी अलीगंज थाना पुलिस के चंद पुलिस कर्मियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई थी। बताया जा रहा है कि इंस्पेक्टर राजपाल सिंह की टीम के पास जब गोलियां खत्म होने लगी तब उन्होंने दो पुलिस कर्मियों को पास के गांव में कैम्प किये हुए पीएसी के जवानों तक सूचना करने को कहा। इन पुलिस कर्मियों ने अपनी कर्तव्य का निर्वहन न करते हुए सूचना पीएसी के जवानों तक नहीं पहुंचाई। जिसके चलते डकैत छविराम को पता चल चुका था कि पुलिस के पास गोलियां खत्म हो गई है। उसने चारों तरफ से घेराबंदी करते हुए नौ पुलिस कर्मियों सहित तीन ग्रामीणों की दिनदहाड़े नृशंस हत्या कर दी। इस घटना में तीन बदमाश भी मारे गए थे। तब इस घटना की गूंज दिल्ली तक पहुंची थी।

रिपोर्ट-अनंत मिश्रा

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