लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि लोकतंत्र के महापर्व में 6 मई 2019 को उत्तर प्रदेश के 14 लोकसभा क्षेत्रों धौरहरा, सीतापुर, मोहनलालगंज, लखनऊ, रायबरेली, अमेठी, बांदा, फतेहपुर, कौशाम्बी, बाराबंकी, फैजाबाद, बहराइच, कैसरगंज, गोण्डा में मतदान होगा। अब तक मतदाताओं के रूझान से यह स्पष्ट और सुनिश्चित है कि भाजपा को सत्ता से बाहर जाना तय है। गठबंधन के पक्ष में प्रदेश में हवा चल रही है। मतदाताओं का आशीर्वाद समाजवादी पार्टी के गठबंधन के प्रत्याशियों को मिल रहा हैं।
दिल्ली की गद्दी पर नया चेहरा
उन्होंने कहा कि गठबंधन को जनता का साथ मिलता देख भाजपा बौखला गई है। भाजपा इसको तोड़ने की साजिशें करने में लगी है, भ्रामक बातें फैलाई जा रही हैं लेकिन यह गठबंधन न केवल भाजपा अपितु कांग्रेस के लिए भी चुनौती है। जहां भाजपा का सूपड़ा साफ हो रहा है वहीं कांग्रेस को दो के अलावा तीसरी सीट मिलने वाली नहीं है। अब दिल्ली की गद्दी पर नया चेहरा बैठा दिखाई देगा। वह चेहरा भाजपा और कांग्रेस का तो नहीं ही होगा।
भाजपा अब तक मतदान के हर चरण में पीछे
प्रधानमंत्री जी को और गृहमंत्री जी को अपनी-अपनी सीट बचाने के लिए लेने के देने पड़ रहे हैं। भाजपा अब तक मतदान के हर चरण में पीछे रही है। अपनी बातों पर, वादों पर प्रधानमंत्री जी खुद नहीं टिक रहे हैं। उन्होंने नौजवानों की नौकरियां छीन ली हैं। किसानों की आय दुगनी होने की जगह उन्हें फसल का लागत मूल्य भी नहीं मिल रहा है। गरीब मंहगाई से त्रस्त है। गठबंधन गरीब, किसान, नौजवान, अल्पसंख्यक की लड़ाई लड़ रहा है। वह न केवल वर्तमान अपितु भविष्य का भी गठबंधन है।
सत्ता रूढ़दल द्वारा सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग
भाजपा को पता है कि अभी तक हुए चार चरणों के चुनावों में उसकी बड़ी पराजय होने वाली है इसलिए भाजपा नेतृत्व बेसिर पैर की बाते करने लगा है। खुद प्रधानमंत्री जी जब अपने पद की मर्यादा का ध्यान नहीं रख रहे हैं तो उनके दल के दूसरे बयानबाजों के बारे में क्या कहा जाए। राजनीति में इतनी गिरावट आजादी के बाद कभी नहीं देखी गई। 17वीं लोकसभा के चुनावों में सत्ता रूढ़दल द्वारा सरकारी मशीनरी का खुलेआम दुरूपयोग विपक्ष को दबाने, अफवाहें फैलाने और चुनाव की निष्पक्षता को बिगाड़ने के लिए हो रहा है।
लोकतंत्र लोकलाज से चलता है लेकिन भाजपा को इसकी फिक्र नहीं। सत्ता के लालची कुछ भी करने को तैयार है। खेद है कि चुनाव आयोग, जिस पर चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से कराने का दायित्व है, वह इन दिनों अपने ही मानकों पर खरा नहीं उतर रहा है। ऐसा लगता है वह सत्ता के दबाव में है। अब 6 मई, 12 मई और 19 मई की तिथियां इतिहास में दर्ज होंगी क्योंकि इन्हीं तिथियों में देश की नई सरकार, नया प्रधानमंत्री और नए भारत का चुनाव हो रहा है।