अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद को लेकर सबसे लम्बे चले मुकदमे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ 09 नवम्बर 2019 की तारीख इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों के साथ दर्ज हो चुकी है। जिस अयोध्या का नाम दशकों तक सिर्फ दुनिया में इस विवाद के कारण सुर्खियों में आता था, उसकी पहली सुबह रविवार को नई उमंग, सौहार्द और विकास का संदेश लेकर आई है।
फैसले को लेकर इस बात का डर सता रहा था कि कहीं अयोध्या में कुछ ऐसा न हो जाए, जिसकी चिंगारी पूरे देश को अपनी चपेट में ले ले, लेकिन रामनगरी के लोगों ने यह साबित कर दिया कि वह न सिर्फ राम में आस्था रखते हैं, बल्कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम के मूल्यों को अपनाने में भी सबसे आगे हैं। यही वजह रही कि मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी ने फैसले के तुरंत बाद कहा कि हम पहले से ही कहते रहे हैं कि कोर्ट जो भी फैसला करेगी उसे स्वीकार करेंगे। अब सरकार को फैसला करना है कि वह हमें जमीन कहां पर देती है। यह हिन्दुस्तान के लिए बहुत बड़ा मसला था जिसका निपटारा होना जरूरी था, मैं फैसले से खुश हूं। हम आगे कहीं अपील करने नहीं जा रहे हैं। वहीं निर्मोही अखाड़े ने भी अपना दावा खारिज होने पर किसी तरह की नकारात्मक टिप्पणी नहीं की, बल्कि रामलला का पक्ष मजबूत साबित होने और अधिकार मिलने पर खुशी जतायी।
दोनों समुदायों के बीच आपसी मजबूत ताना-बाना का ही असर था कि अयोध्या में आज भी रोज की तरह मंदिरों में घंटा-घड़ियालों की गूंज सुनाई दी तो मस्जिदों में अजान हुई।दोनों समुदायों के बीच सरयू के निर्मल और शांत पानी की तरह अयोध्या का मिजाज भी नजर आया। रामलला को मिला ‘घर’ तो सरयूवासियों ने मनायी दीपावली आज का दिन देखने के लिए तरसते हुए कितनी पीढ़ियां गुजर गईं। रामलला को मालिकाना हक मिलने की खुशी शनिवार रात को ही सरयू के स्नान घाटों से लेकर मंदिरों की चौखट तक दीपों के नजारे के रूप में एक अद्भुत एहसास करा रही थी। मणिराम दास जी की छावनी, वाल्मीकि रामायण भवन, श्री राम जन्मभूमि न्यास, कारसेवक पुरम सहित सभी प्रमुख स्थलों में दीप जलाकर रामलला के प्रति श्रद्धाभाव प्रदर्शित किया गया। ये इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि शास्त्रों के मुताबिक श्रीराम ने कहा था कि उन्हें बैकुंठ से भी ज्यादा अवधपुरी प्रिय है।