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एमिटी यूनिवर्सिटी और यूनिसेफ ने किया कोविड 19 पर ऑनलाइन समूह चर्चा का आयोजन

लखनऊ। जनसंचार के क्षेत्र में अध्ययनरत विद्यार्थियों में करोना के कारण उपजे वर्तमान वैश्विक परिदृष्य के प्रति विश्लेष्णात्मक दृष्टि विकसित करने के उद्देश्य से एक वर्चुअल पैनल डिस्कशन, ‘कोविड 19 एंड इट्स इम्पैक्ट ऑन यंग माइंड्स, क्राइसिस, लॉस एंड आइसोलेशन’ का आयोजन किया। एमिटी स्कूल ऑफ कम्युनिकेशन, एमिटी यूनिवर्सिटी लखनऊ परिसर में कार्यक्रम का आयोजन यूनिसेफ उत्तर प्रदेश के सहयोग से किया गया था।

इस समूह चर्चा में बतौर पैनलिस्ट सुश्री रूथ एल लीनो, चीफ ऑफ फील्ड ऑफिस, यूनिसेफ उत्तर प्रदेश, ऑगस्टीन वेलियाथ, संस्थापक-निदेशक, एशियन सेंटर फॉर एंटरटेनमेंट एजुकेशन, पूर्व संचार विशेषज्ञ, यूनिसेफ, संगीता राजेश, संचार सलाहकार, विश्व बैंक इंडिया और डॉ प्रज्ञान डंगवाल, संकाय, एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ बिहेवियरल एंड एलाइड साइंसेज, एमिटी यूनिवर्सिटी लखनऊ परिसर कार्यक्रम में शामिल हुए।

कार्यक्रम में छात्रों के प्रश्नों का उत्तर देते हुए ऑगस्टीन वेलियाथ ने कहा कि युवाओं को इस विकट समय में एक ‘संकट मोचक’ की भूमिका में आना चाहिए। उन्होने कहा कि युवाओं को ऐसे क्षेत्र में काम करना चाहिए जिसमें वह समाज में सम्याओ का समाना कर रहे लोगों की मदद कर सकें। उन्होनें विद्यार्थियों को इकॉनमी से जुडऩे और फ्रीलांसिंग शुरू करने के लिए भी कहा। संगीता राजेश ने ‘महामारी की शुरुआत के बाद से युवाओं और उनके परिवारों द्वारा सामना किए गए आर्थिक संकट’ पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने पैसे की मूर्त प्रकृति के बारे में विस्तार से बताया और कहा कि, पैसों की हम सभी को जरूरत है, इसके बिना हमारा पूरा जीवन बहुत कठिन होगा। उन्होंने छात्रों को उद्योगों के लिए खुद को तैयार करने और अपने देश के आर्थिक विकास में सक्रिय योगदानकर्ता बनने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि ‘रोजगार की दुनिया में संरचनात्मक और तकनीकी दोनों तरह से बदलाव हुए हैं। इस बदलाव ने एक तरह से नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच बहुत तालमेल बिठाया है कि हम कैसे आगे बढ़ते हैं। नए लोगों के विचारों का अब बड़े पैमाने पर स्वागत किया जाता है।

डॉ. प्रज्ञान डंगवाल ने लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर महामारी के वैश्विक प्रभाव के बारे में बताया। डॉ. डंगवाल ने कहा, “वयस्क आबादी की तुलना में युवा अधिक प्रभावित हुए हैं क्योंकि वे अपनी लड़ाई खुद लड़ रहे थे और उन्होंने अपने माता-पिता को संकट का सामना करते देखा। संकट के अदृश्य प्रभाव जैसे ऑफ़लाइन कक्षाओं में भाग लेने में सक्षम नहीं होना, कार्यक्षेत्र खोना और लोगों से न मिल पाना उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं।”

रूथ एल लीनो, चीफ ऑफ फील्ड ऑफिस, यूनिसेफ ने भी कोविड-19 के चरम के दौरान के अपने अनुभव साझा किए और बच्चों और युवा वयस्कों पर इसके प्रभावों के बारे में अपने विचार रखे। उन्होंने छात्रों से उन बच्चों की मदद करने के लिए पहल करने का आग्रह किया जो कोविड के कारण अनाथ हो गए है या समस्याग्रस्त हैं। संचार विशेषज्ञ, यूनिसेफ लखनऊ गीताली त्रिवेदी ने एक लघु वीडियो का प्रदर्शन किया।

जिसमें किशोरों और उनके परिवारों द्वारा सामना की जाने वाली कठिनाइयों पर जोर दिया गया है, जिन्होंने महामारी के दौरान जबरदस्त नुकसान किया है। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि यूनिसेफ के प्रयासों के माध्यम से वे 400 बच्चों को स्कूल वापस लाने में सक्षम हुए जो इस कठिन समय के दौरान अपनी शिक्षा जारी रखने में असमर्थ थे। कार्यक्रम में एमिटी विश्वविद्यालय के 150 से भी ज्यादा विद्यार्थियों ने ऑनलाइन माध्यम से कार्यक्रम में हिस्सा लिया।

दया शंकर चौधरी

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