केन्द्रीय मंत्री Ananth Kumar अनन्त कुमार का अचानक अनन्त की यात्रा पर प्रस्थान करना न केवल भाजपा बल्कि भारतीय राजनीति के लिए दुखद एवं गहरा आघात है। उनका असमय देह से विदेह हो जाना सभी के लिए संसार की क्षणभंगुरता, नश्वरता, अनित्यता, अशाश्वता का बोधपाठ है। वे कुछ समय से कैंसर से पीड़ित थे। 12 नवम्बर 2018 को रात 2 बजे अचानक उनकी स्थिति बिगड़ी और उन्हें बचाया नहीं जा सका। उनका निधन एक युग की समाप्ति है। भाजपा के लिये एक बड़ा आघात है, अपूरणीय क्षति है। आज भाजपा जिस मुकाम पर है, उसे इस मुकाम पर पहुंचाने में जिन लोगों का योगदान है, उनमें अनन्त कुमार अग्रणी है।
लोकसभा चुनावों के लिए 4 बार चुने गए Ananth Kumar
अनंत कुमार भारतीय राजनीति के जुझारू एवं जीवट वाले नेता, सामाजिक कार्यकर्ता, व्यापारी और एक सफल उद्योगपति थे। वे 11वीं, 12वीं, 13वीं और 14वीं लोकसभा चुनाव में लगातार चार बार लोकसभा चुनावों के लिए चुने गए। वे कर्नाटक में राम-जन्मभूमि के लिए अपनी आवाज उठाने और उसके हक में लड़ने वाले विशिष्ट नेताओं में से एक थे। वे भाजपा संगठन के लिए एक धरोहर थे।
वर्ष 1998 में, अनंत कुमार को अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में नागरिक उड्यन मंत्री के रूप में शामिल किया गया था। उस मंत्रिमंडल में सबसे कम उम्र के मंत्री बने अनंत कुमार ने कुशलतापूर्वक पर्यटन, खेल, युवा मामलों और संस्कृति, शहरी विकास एवं गरीबी उन्मूलन जैसे कई मंत्रालयों को संभाला। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान, कई नए अभिनव दृष्टिकोण, राजनैतिक सोच और कई योजनाओं की शुरुआत की तथा विभिन्न विकास परियोजनाओं के माध्यम से लाखों लोगों के जीवन में सुधार कियाए उनमें जीवन में आशा का संचार किया। वर्तमान में वे नरेन्द्र मोदी सरकार में एक सशक्त एवं कद्दावर मंत्री थे। भाजपा में वे मूल्यों की राजनीति करने वाले नेता, कुशल प्रशासक, योजनाकार थे।
युवा सोच की राजनीति का अंत
अनन्त कुमार का निधन एक युवा सोच की राजनीति का अंत है। वे सिद्धांतों एवं आदर्शों पर जीने वाले व्यक्तियों की श्रंखला के प्रतीक थे। उनके निधन को राजनैतिक जीवन में शुद्धता की, मूल्यों की, राजनीति की, आदर्श के सामने राजसत्ता को छोटा गिनने की या सिद्धांतों पर अडिग रहकर न झुकने, न समझौता करने की समाप्ति समझा जा सकता है। अनन्त कुमार ने तीन दशक तक सक्रिय राजनीति की, अनेक पदों पर रहे, पर वे सदा दूसरों से भिन्न रहे। घाल-मेल से दूर। भ्रष्ट राजनीति में बेदाग। विचारों में निडर। टूटते मूल्यों में अडिग। घेरे तोड़कर निकलती भीड़ में मर्यादित। उनके जीवन से जुड़ी विधायक धारणा और यथार्थपरक सोच ऐसे शक्तिशाली हथियार थे जिसका वार कभी खाली नहीं गया।
जेएसएस से स्नातक कानून की उपाधि
22 जुलाई, 1959 को बेंगलुरु में एच. एन. नारायण शास्त्री और गिरिजा शास्त्री के घर जन्मे अनंत कुमार ने कर्नाटक विश्वविद्यालय से जुड़े केएस आर्ट्स कॉलेज, हुबली से कला संकाय (बीए) में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बाद में, कर्नाटक विश्वविद्यालय से संबद्ध लॉ कॉलेज जेएसएस से स्नातक कानून (एलएलबी) की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने 15 फरवरी 1989 में तेजस्विनी से शादी की और इनकी दो बेटियाँ हैं।
दिलों पर राज करने वाले राजनेता थे अनंत
उन्होंने भाजपा को कर्नाटक और खासतौर पर बेंगलुरु और आस-पास के क्षेत्रों में मजबूत करने के लिए कठोर परिश्रम किया। वह अपने क्षेत्र की जनता के लिए हमेशा सुलभ रहते थे। वे युवावस्था में ही सार्वजनिक जीवन में आये और काफी लगन और सेवा भाव से समाज की सेवा की। भारतीय राजनीति की वास्तविकता है कि इसमें आने वाले लोग घुमावदार रास्ते से लोगों के जीवन में आते हैं वरना आसान रास्ता है- दिल तक पहुंचने का। हां, पर उस रास्ते पर नंगे पांव चलना पड़ता है। अनंतकुमार इसी तरह नंगे पांव चलने वाले एवं लोगों के दिलों पर राज करने वाले राजनेता थे, उनके दिलो-दिमाग में कर्नाटक एवं वहां की जनता हर समय बसी रहती थी।
स्वतंत्र वेबसाइट की मेजबानी करने वाले पहले भारतीय राजनेता
अनन्त कुमार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रभावित होने के कारण, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्र समूह के सदस्य बने। वर्ष 1975-77 के दौरान, ये भारत में आपातकाल नियमों के विरुद्ध जे.पी. आंदोलन में भाग लेने के कारण लगभग 40 दिनों तक जेल में रहे थे। उन्हें एबीवीपी के राज्य सचिव के रूप में निर्वाचित किया गया और बाद में, 1985 में उन्हें राष्ट्रीय सचिव बनाया गया।
इसके बाद वे भाजपा में शामिल हो गए और उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा के राज्य अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया। 1996 में वे पार्टी के राष्ट्रीय सचिव बनाये गये। जनवरी 1998 के आम चुनाव से पहले वे एक स्वतंत्र वेबसाइट की मेजबानी करने वाले पहले भारतीय राजनेता बने, वे 2003 में बीजेपी की कर्नाटक राज्य इकाई के अध्यक्ष बने और राज्य इकाई का नेतृत्व किया जो कि विधान सभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गयी और 2004 में कर्नाटक में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें जीती। 2004 में उन्हें एमपी, बिहार, छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में पार्टी को मजबूती देने में योगदान देने के लिये भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किए गया।
अनंत कुमार को अलविदा नहीं कहा जा सकता, उन्हें खुदा हाफिज़ भी नहीं कहा जा सकता, उन्हें श्रद्धांजलि भी नहीं दी जा सकती। ऐसे व्यक्ति मरते नहीं। वे अनेक मोड़ों पर राजनीति में नैतिकता का संदेश देते रहेंगे कि घाल-मेल से अलग रहकर भी जीवन जिया जा सकता है।