लखनऊ। राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनुपम मिश्रा ने आज उत्तर प्रदेश में कोरोना महामारी की भयावह स्थिति पर दुख व्यक्त किया और सरकार की पूरी व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करते हुए गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि पूरे प्रदेश की हालत इस समय भयावह है। लोग सड़कों पर, घरों में और अस्पतालों में बदइंतज़ामी व लापरवाही के चलते दम तोड़ रहे हैं और सरकारी अव्यवस्थाओं के कारण असमय ही मौत के मुंह में जाने को विवश है।
सरकार ने पूरे एक साल इस महामारी से निपटने की कोई तैयारी नहीं की जबकि सरकार को यह भली-भांति पता था कि दूसरी लहर आएगी और भयानक आएगी लेकिन इन्हें क्या इनको तो चुनावी रैली करनी थी। जनता मरे या जिए। इस संपूर्ण बदइंतज़ामी, लापरवाही, भ्रष्टाचार, लचर स्वास्थ्य सुविधाएं व नौकरशाही के चक्कर में राजधानी व प्रदेश के हजारों लोगों ने अपनी जान गवा दी और हजारों लोग अनाथ हो गए।
अनुपम मिश्रा ने लखनऊ के सेवानिवृत्त जिला जज रमेश चंद्र की पत्नी एवं इतिहासकार योगेश प्रवीन की मृत्यु का जिम्मेदार प्रदेश सरकार को ठहराते हुए प्रदेश सरकार पर हत्या का मुकदमा दर्ज किए जाने की बात कही, क्योंकि इन दोनों ही केस में एंबुलेंस का ना पहुंचना मृत्यु का कारण बना। हाल ही में अखबारों एवं सोशल मीडिया में वायरल फोटो में सुशील श्रीवास्तव नाम के एक 60 वर्षीय व्यक्ति को दिखाया गया जिसमें उनकी रिपोर्ट यदि समय रहते मिल गई होती तो शायद वह जीवित होते हैं। मिश्रा ने कारगिल शहीद मेजर रितेश शर्मा की मां को अस्पताल में बेड ना मिल पाने को भी शर्मनाक करार देते हुए इसे नायकों का अपमान बताया है।
अनुपम मिश्रा ने सरकारी व्यवस्थाओं पर प्रहार करते हुए कहा कि आज अस्पतालों में जगह नहीं है। लोग बाहर जमीनों पर पड़े हैं, जो किसी तरह भर्ती हो पाए हैं। उनके लिए ऑक्सीजन नहीं है। लोहिया अस्पताल में तो 3 लोगों की जान इसी ऑक्सीजन की कमी के कारण चली गईl सरकार की छवि बनाने के लिए जिन एजेंसियों के नंबर जारी किए गए थे कि 24 घंटे ऑक्सीजन मिलेगी, वह सभी या तो बंद आते हैं या बिजी आते हैं और जिन अस्पतालों में बेड खाली बताए गए थे। वहां सभी पहले से भरे पड़े हैं जो हेल्पलाइन के नंबर जारी किए गए। वह कोई उठाता नहीं है और फोन उठता ना देखकर वैसे भी बीमार लोगों की सांसे समय से पूर्व ही उखड़ जा रहीं हैं। आज जिन लोगों पर सुरक्षा व स्वास्थ्य की जिम्मेदारी थी। वह सब बेपरवाह नजर आते हैं। संवेदनशीलता मर चुकी है। अगर फोन उठा लिया तो जवाब आता है कि “गंवार हो तो मरो जाकर“ इस बीमारी में लड़ने में कारगर रेमेडिसीवर इंजेक्शन उपलब्ध नहीं है। इंजेक्शन की कालाबाजारी चल रही है। एक एक इंजेक्शन को लाखों हजारों रुपए में बेचा जा रहा है और लालफीताशाही का आलम यह है कि जब शहर के लोग वेंटीलेटर के अभाव में दम तोड़ रहे थे तब बलरामपुर अस्पताल में 30 नए वेंटिलेटर पर पड़े थे। आज करोना की रिपोर्ट के आने में कई कई दिन लग रहे हैं। लोगों की असहाय स्थिति का फायदा निजी हो या सरकारी अस्पताल सभी उठाने में लगे हैं, जबकि प्रदेश सरकार व सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं क्योंकि इस आदेश में साफ कहा गया था कि कोई भी अस्पताल सरकारी या निजी कोविड हो या नॉन कोविड किसी भी कोविड मरीज को भर्ती करने से मना नहीं कर सकता। बावजूद इसके भर्ती नहीं हो पा रही है। मौतो को छिपाने के लिए झूठे आंकड़े जारी किए जा रहे हैं। कब्रिस्तान के बाहर दिवाल उठाई जा रही हैं ताकि जलती चिताओं की गिनती ना की जा सके।
एंबुलेंस व्यवस्था ध्वस्त है शव को घर से श्मशान तक लाने वाले जाने के नाम पर वसूली हो जा रही है। 20 से लेकर के ₹50000 तक मांगे जा रहे हैं।17 निजी आयुष्मान अस्पतालों की घोषणा की गई थी। उनमें से पंद्रह आयुष्मान अस्पतालों के पास ऑक्सीजन नहीं थी। फिर भी समझ में नहीं आता की घोषणा क्यों की गई थी। प्रदेश में सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 30,000 नए केस आ रहे हैं और 175000 यानी करीब पौने दो लाख एक्टिव कैसे हैं, जिनमें से 10000 लोग अब तक जान गंवा चुके हैं। अकेले लखनऊ में ही 139837 केसेस हैं और पंद्रह सौ लोग जान गवा चुके हैं। इसलिए राष्ट्रीय प्रवक्ता अनुपम मिश्रा ने प्रदेश सरकार को सलाह देते हुए कहा कि इस समय टेस्ट ट्रेक एंड ट्रीट के बजाय फिलहाल अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाएं व स्वास्थ्य कर्मियों को बढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए।