कांग्रेस के लिए एक बार फिर आत्मचिंतन का समय है. उसके सामने तत्कालिक मसले है. उसे विचार करना चाहिए कि भारत जोड़ो से लेकर कैंब्रिज यात्रा से उसे क्या हासिल हुआ. भारत जोड़ो यात्रा से जनमानस का जुड़ाव नहीं हुआ. इस दौरान उनके भाषण में कुछ भी नया नहीं था. लोग विगत नौ वर्षों से इस प्रकार की बाते सुनने के अभ्यस्त हो चुके हैं. लेकिन विदेश में देश की प्रतिष्ठा और अपनी विश्वसनीयता के प्रति सजग रहना चाहिए. राहुल के बयान देखने के कौन विश्वास करेगा कि उनकी आवाज दबाई जा रही है. प्रधानमंत्री पर प्रहार करने में उन्होने कौन सी कसर छोड़ दी थी. सरकार का विरोध करना विपक्ष का अधिकार है. विरोध को राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के अनुरूप बनाये रखना उसका दायित्व भी है।
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कांग्रेस ने अपने अधिकारों का तो भरपूर उपयोग किया. अमर्यादित और असंसदीय टिप्पणियों से भी उसे परहेज नहीं रहा. लेकिन राष्ट्रीय हित और सहमति के विषयों पर उसका अलगाव रहा है. कांग्रेस को यात्रा निकालने का अधिकार था. उसने इसका प्रयोग किया. किन्तु यात्रा का नामकरण अपने आप में नकारात्मक ही था. जो टूट रहा हो, उसे जोड़ने का प्रयास किया जाता है. भारत में विविधता है, लेकिन अनेकता में एकता का ऐसा उदाहरण अन्यत्र दुर्लभ है. ऐसे में भारत जोड़ो यात्रा नाम से दुनिया में गलत संदेश गया. इसके बाद जो कसर बची थी उसे राहुल गांधी के कैंब्रिज व्याख्यान ने पूरा कर दिया. दुनिया को यह बताने का प्रयास किया गया कि भारत में संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है. शायद राहुल गांधी के लिए देश की सीमाएं कम पड़ गई थीं, अब यूरोप तक उन्होंने अपने विचार पहुंचा दिए हैं। उनकी जो छवि देश में थी उसका विस्तार हुआ। लगा कि भारतीय चिंतन और विश्व शांति के लिए राहुल के पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं है। पहले राहुल गांधी अक्सर गोपनीय विदेश यात्राओं पर निकल जाते थे। कोई नहीं जानता था कि वह कहाँ गए हैं, उनका कोई बयान भी नहीं आता था।
बताया जाता था कि वह चिंतन-मनन के लिए अज्ञातवास पर गए हैं। लेकिन लम्बा समय बिताकर जब उनकी वापसी होती तो भी कोई फर्क दिखाई नहीं देता था। फिर भी विदेश में उनका कुछ न बोलना देश के लिए राहत की बात थी. मुश्किल तब से है जब से राहुल ने विदेश में बोलना शुरू किया है। लगता है कि भारत विरोधी तत्व जानबूझ कर उन्हें आमंत्रित करते हैं,और वे वहाँ जाकर भारत की छवि खराब करने वाली अनर्गल बातें बोल आते हैं. इसके पहले उन्होने जर्मनी के हैम्बर्ग में राहुल ने आतंकवाद पर अपना शोध जग जाहिर किया था. राहुल जब प्रजातंत्र, संवैधानिक व्यवस्था गरीबी-बेरोजगारी आदि की बात करते हैं, तब वह भाजपा से ज्यादा अपनी ही पार्टी पर निशाना लगा रहे होते हैं।क्या विश्व मंच से वह यह नहीं कह सकते थे कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए, क्या आतंकवाद का बेतुका कारण बताने की जगह उंसकी निंदा नहीं कर सकते थे।
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क्या यह नहीं कह सकते थे कि भारत विश्व शांति का हिमायती है. यही वह देश है जो वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश देता है. राहुल शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विदेश में दिए गए भाषण की बराबरी करना चाहते हैं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि मोदी ने कभी देश की छवि नहीं बिगाड़ी। यूपीए सरकार के अंतिम वर्षो में नीतिगत पंगुता और घोटालों की वजह से निवेश रुक गया था। मोदी यही कहते थे कि अब ये कमियां दूर कर दी गई हैं। मोदी यह बात देश हित में कहते थे, राहुल देश की छवि से खिलवाड़ कर रहे है। हालिया कई विदेशी दौरों में उनके विचारों को देखने के बाद यहील गता है. राहुल गांधी ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी अपने विचार व्यक्त किए. उन्होने अपनी और अन्य राजनेताओं की जासूसी कराने का आरोप लगाया. कहा कि उन्हें खुफिया अधिकारियों द्वारा फोन पर बात करते समय सावधान रहने की चेतावनी दी गई थी क्योंकि उनकी कॉल लगातार रिकॉर्ड की जा रही थी।
इस प्रकार राहुल गांधी ने भारतीय लोकतंत्र के साथ ही गुप्तचर एजेंसियों को भी दुनिया में बदनाम किया. मतलब सरकार ऐसी निरंकुश है कि विपक्षी नेताओं को परेशान करती है. गुप्तचर एजेन्सी ऐसी जो विपक्षी नेताओं को सावधान करती है. राहुल यहीं नहीं रुके. उन्होने कहा कि मीडिया और लोकतांत्रिक ढांचे पर इस प्रकार का हमला करते हैं तो विपक्ष के लिए लोगों के साथ संवाद करना बहुत मुश्किल हो जाता है. भारत की सरकार लोकतंत्र के मूल ढांचे पर हमला कर रही है. भारतीय लोकतंत्र दबाव में है. संसद, स्वतंत्र प्रेस और न्यायपालिका इन सभी पर अंकुश लग रहा है. हम लोकतंत्र के मूल ढांचे पर हमले का सामना कर रहे हैं।
एक तरफ दुनिया में भारत की सराहना हो रही है. जी 20 की अध्यक्षता मिलने के बाद अनेक देशों के शिखर नेता भारत की यात्रा कर रहे हैं. इनमे यूरोपीय देश भी शामिल है. ये सभी भारतीय लोकतंत्र और अर्थव्यवस्था से प्रभावित है. दुनिया में वसुधैव कुटुम्बकम की गूंज है. ऐसे समय में राहुल देश की प्रतिष्ठा के प्रतिकूल बयान दे रहे हैं. राहुल गांधी विदेश में जाकर कह रहे हैं कि हिंदुस्तान बर्बाद हो गया है। यहां लोकतंत्र नहीं है। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में उन्होंने कहा था कि भारत एक समझौता है। राहुल गांधी विदेश में कहते हैं कि हमें बोलने नहीं दिया जाता है। वह कहते हैं कि उनके फोन में पेगासस था। लेकिन जब पेगासस मामले पर मोबाइल को जांच के लिए मांगा गया तो राहुल गांधी ने अपना फोन नहीं दिया। जबकि उनकी पार्टी ने खुद माना था कि यूपीए टु सरकार ने नौ हजार फोन टेप कराए गए थे। लोगों के ईमेल पढ़े गए। तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने भी कहा था कि सोनिया गांधी के कहने पर उनके कमरे को बग कराया गया था।
रिपोर्ट-डॉ दिलीप अग्निहोत्री