वाराणसी। घाटों का शहर कहे जाने वाले बनारस में यूं तो बहुत कुछ है, देखने और जानने के लिए। लेकिन आज हम बताने जा रहे हैं बनारस के अनोखे कुंड के बारे में, जहां सूर्य की किरण सबसे पहले पड़ती है। इसे लोलार्क कुंड (Lolark Kund) के नाम से जानते हैं। इतना ही नहीं सूर्योदय होने पर इस कुंड पर सबसे पहले सूर्य की किरण पड़ने के चलते इसे सूर्य कुंड भी कहा जाता है।
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लोलार्क कुंड में स्नान करने मात्र से ही चर्म रोग से मुक्ति मिलती है। साथ ही कुंड में स्नान करने से संतान की प्राप्ति होती है। इस कुंड के बारे में बताया जाता है कि देवासुर के संग्राम के दौरान भगवान सूर्य के रथ का पहिया इसी स्थान पर गिरा था। जिसके बाद से इस कुंड का निर्माण हुआ और इस कुंड का नाम लोलार्क कुंड पड़ा।
9वीं सताब्दी से है कुंड में स्नान की परंपरा
लोलार्क कुंड (Lolark Kund) की मान्यता है कि संतान प्राप्ति की कामना के साथ सच्चे मन और श्रद्धा के साथ कुंड में स्नान करने से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। कुंड में उतरने के लिए उत्तर, दक्षिण और पश्चिम तीनो दिशाओं से लंबी सीढ़ियां बनाई गई हैं। इसके पूर्वी दिशा में एक बड़ी सी दीवार है।
कुंड के दक्षिण भाग में लोलार्ककेश्वर महादेव का मंदिर है। मंदिर के प्रधान पुजारी रमेश कुमार पांडेय बताते हैं कि 9वीं सताब्दी से कुंड में स्नान की परंपरा है। यहां राजा गढ़वाल नरेश ने अपनी सातों रानियों के साथ स्नान किया था, जिसके बाद उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। पुजारी बताते हैं कि कुंड का निर्माण 9वीं सताब्दी में गढ़वाल नरेश के द्वारा किया गया था। वहीं अहिल्याबाई होलकर ने कुंड का पुनरुद्धार किया था।
भगवान सूर्य ने किया था लोलार्ककेश्वर महादेव की स्थापना
पुजारी बताते हैं कि मंदिर में लोलार्ककेश्वर महादेव की स्थापना भगवान सूर्य ने किया था। विश्व में पहला ऐसा शिवलिंग है जो अर्घापूर्व की तरफ है। ऐसा शिवलिंग विश्व में कहीं नहीं मिलेगा। सभी शिवलिंग उत्तर की तरफ हैं।