लखनऊ। दिल्ली का नाट्योत्सव समूह ने संत गाडगे ऑडिटोरियम, गोमती नगर में भगवती चरण वर्मा के उपन्यास के हिंदी संगीत नाटक चित्रलेखा प्रस्तुत किया। नाटक सुनील चौधरी द्वारा निर्देशित और नृत्य निर्देशक निभा नारंग है। मुख्य पात्रों में मधु कंधारी, मधुकर पांडे, करण अरोड़ा, मनोज वर्मन, दीप शर्मा, अविनाश कुमार, ज्योत्सना सिंह, सुमित गुप्ता और रितेश कुमार रहे। पटकथा लेखक और संगीत निर्देशक सुनील चौधरी है। प्रकाश परिकल्पना, दृश्य परिकल्पना और वेष-भूषा इत्यादि को सोनू सोनकार, संगीता राठी, सुनीता वर्मन, गर्वित कुमार, मोहम्मद तहा और नरेश कुमार ने संभाला।
नाटक की कहानी एक विचार पर आधारित है “हम ना पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं हम वो करते हैं जो परिस्थितियां हमसे करवाती हैं और हम उनसे बाध्य होकर अपने कर्म करते है।” इसी विचार से प्रेरित होकर 1934 में भगवतीचरण वर्मा ने “चित्रलेखा” नामक चरित्र और उपन्यास को जन्म दिया और अति सुंदर कहानी रच डाली जो गुप्त साम्राज्य के समय की स्त्री के शक्तिशाली चरित्र को उजागर करती है।
स्त्री के अपने जीवन की बागडोर संभालने की कहानी
भगवतीचरण वर्मा का जन्म लखनऊ में हुआ था। चित्रलेखा कथानक में, जिसका नाट्य रूपांतर सुनील चौधरी ने आज 2017 में किया है, देखा गया है कि उस समय का इतिहास और सामाजिक ढांचा जिस पाप और पुण्य के दौर से गुजरा है। वह ढांचा आज भी समाज में विद्यमान है और हमें अपने चारों ओर दिखाई देता है।
चित्रलेखा का चरित्र एक विशाल हृदयी, सशक्त, चरित्रवान और अपने जीवन की बागडोर स्वयं संभालने वाली स्त्री की कहानी का है जो समाज के दवाब को अपने ऊपर हावी नहीं होने देती है। चित्रलेखा नाट्योत्सव संस्था एक सुंदर प्रयास है जिसमें भाषा, संस्कृति और संगीत का सुंदर प्रस्तुतीकरण देखा गया।
मुगलों और अंग्रेजों के प्रभाव ने भारतीय समाज के प्राचीन मूल्यों को आंदोलित कर दिया और स्त्रियों के दोयम वर्ग का नागरिक बना दिया। इतिहास बताता है की भारतवर्ष की गौरवशाली परम्परा इस प्रकार की परिस्थितियों से हड़प्पा काल से ही दूर थी। परूष एवं नारी समाज रूपी रथ के दो पहिये थे जो एक दूसरे को गति और संबल दोनों प्रदान करते थे।