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नए साल से पहले अतंरिक्ष उद्योग की बड़ी कामयाबी, ISRO की मदद से खुद तैयार किए दो स्पेसक्राफ्ट

बंगलूरू। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने नए साल से ठीक पहले बड़ी कामयाबी हासिल की है। भारत ने सोमवार रात अंतरिक्ष में दो स्पेसक्राफ्ट को जोड़ने की तकनीक, जिसे स्पेस-डॉकिंग कहते हैं, इसमें महारत हासिल करने की दिशा में बड़ा कदम बढ़ा दिया। इसके अलावा, एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। दरअसल, पहली बार इसरो के इंजीनियरों के मार्गदर्शन में ये स्पेसक्राफ्ट तैयार किए गए थे।

नए साल से पहले अतंरिक्ष उद्योग की बड़ी कामयाबी, ISRO की मदद से खुद तैयार किए दो स्पेसक्राफ्ट

नए साल से पहले अतंरिक्ष उद्योग की बड़ी कामयाबी, ISRO की मदद से खुद तैयार किए दो स्पेसक्राफ्ट

बता दें, इसरो ने 220 किलोग्राम वजन वाले दो छोटे सैटेलाइट्स एसडीएक्स 1 (चेजर) और एसडीएक्स 2 (टारगेट) को ऑर्बिट में स्थापित किया। इन उपग्रहों का अनंत टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (एटीएल) द्वारा एकीकृत और परीक्षण किया गया, जो पिछले कई वर्षों से इसरो की अनेक परियोजनाओं से जुड़ा हुआ है।

स्पैडेक्स मिशन में आगे बढ़ा भारत

स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (स्पैडेक्स) मिशन के तहत, ये उपग्रह श्रीहरिकोटा के स्पेस सेंटर से PSLV-C60 रॉकेट के जरिए रात 10 बजे के कुछ समय बाद लॉन्च किए गए थे। लगभग 15 मिनट बाद, उन्हें 475 किलोमीटर की सर्कुलर ऑर्बिट में स्थापित कर दिया गया था। पहला सैटेलाइट प्रक्षेपण के 15.1 मिनट बाद और दूसरा 15.2 मिनट बाद अलग हुआ।

यूआर राव सैटेलाइट सेंटर (URSC) के निदेशक एम शंकरन ने कहा कि अभी तक इंडस्ट्री में अकेले बड़े उपग्रहों का निर्माण अपने दम पर नहीं किया गया था। यह पहली बार है कि दोनों उपग्रहों को इंडस्ट्री में एकीकृत और परीक्षण किया गया है। उन्होंने इस प्रक्षेपण को इंडस्ट्री के लिए एक अग्रणी बताया। उन्होंने आगे कहा, ‘हमें उम्मीद है कि यह इंडस्ट्री द्वारा अपने दम पर तैयार किए गए कई ऐसे उपग्रहों में से पहला होगा।’

आसान भाषा में समझें मिशन

अंतरिक्ष की दुनिया में अपने बूते डॉकिंग अनडॉकिंग की तकनीक को अंजाम देने में सिर्फ रूस, अमेरिका और चीन को ही महारत हासिल है। अब भारत भी इस ग्रुप में शामिल होने की तैयारी में है। भारत के इस मिशन को आसान भाषा में समझते हैं। ऑर्बिट में दो उपग्रह हैं। उन्हें आपस में लाकर जोड़ने के लिए एक प्रॉक्सिमीटी ऑपरेशन की जरूरत होती है।

सिग्नल के पास जाकर उसे कैच कराना होता है और उसको रिडिजाइन करना होता है। जैसे सुनीता विलियम्स धरती से अंतरिक्ष क्रू लाइनर में गईं और स्पेस स्टेशन में प्रवेश किया। ऐसे ही भारत को शील्ड यूनिट बनाना है और इसके लिए डॉकिंग की जरूरत है।

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