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शून्य लागत खेती से निखरेगा किसानों का भविष्य

लखनऊ। खेती की बढ़ती लागत व सरकार के उदासीन रवैये से आहत खेती बारी से पलायन कर रहे किसानों के लिए शून्य लागत खेती एक नई उम्मीद के रूप में उभरी है। जिससे किसान खेती में शून्य बजट की प्राकृतिक खेती का तरीका अपनाकर खेती में विकास की नई इबारत को लिख पाना आसान हो गया है। हरित क्रान्ति के नाम पर रासायनिक उर्वरकों,हानिकारक कीटनाशकों,हाइब्रिड बीजों एवं अत्यधिक भूजल उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति में निरन्तर कमी आई है। उक्त बातें प्राकृतिक खेती के जन्मदाता पद्मश्री सुभाष पालेकर ने मंगलवार को चोपड़ अस्पताल परिसर में लोक भारती कार्यालय में आयोजित प्रेसवार्ता के दौरान कहीं।इस मौके पर कार्यक्रम संयोजक एसआर कालेज के चेयरमैन पवन सिंह चौहान, धर्मेंद्र सिंह, महिप कुमार मिश्र, ​अमित टण्डन मौजूद रहे।

20 से 25 दिसम्बर तक चलेगा प्रशिक्षण
पद्मश्री सुभाष पालेकर ने बताया कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए लोक भारती द्वारा 20 से 25 दिसम्बर तक बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में आवासीय छह दिवसीय प्रगतिशील प्रयोगधर्मी किसानों का प्रशिक्षण शिविर लगाया जायेगा। इसमें भारत समेत कई देशों के किसान हिस्सा लेंगे। प्रशिक्षण शिविर का उद्घाटन 20 दिसम्बर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ करेंगे। शिविर में किसानों को भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने,फसल सुरक्षा,पानी बचत के उपाय का प्रशिक्षण दिया जायेगा। इसके अलावा किसानों को फसल के विपणन के लिए भी प्रशिक्षित किया जायेगा।

बाजार पर निर्भरता
सुभाष पालेकर ने बताया कि शून्य लागत प्राकृतिक खेती के लिए किसान को बाजार से कुछ भी नहीं खरीदना पड़ेगा। ऐसी स्वावलम्बी खेती से किसान सामाजिक, आर्थिक एवं मानसिक रूप से शक्तिशाली हो सकता है। इस खेती पर बीमारियों का प्रकोप भी कम होता है। कीट नियंत्रकों की जरूरत ही नहीं पड़ती है,क्योंकि इससे कीट आते ही नही हैं। प्राकृतिक कृषि में देशी बीज का ही प्रयोग किया जाता है। हाइब्रिड बीज से अच्छी पैदावार नहीं होती है और यह बाजार में अधिकांश रूप से उपलब्ध अनाजों से विरत जहर मुक्त खेती होगी।

खेती में उपयोगी बनेगी गाय
सुभाष पालेकर ने बताया कि इस खेती में किसानों को देशी गाय रखना जरूरी होता है। देशी गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से 500 करोड़ सूक्ष्म जीवाणु पाये जाते हैं। देशी गाय के गोबर में गुड़ एवं अन्य पदार्थ डालकर जब खेत में डाला जाता है तो करोड़ों सूक्ष्म जीवाणु मिट्टी में उपलब्ध तत्वों से पौधों के भोजन का निर्माण करते हैं। इस पद्धति से खेती करने पर देशी केंचुआ अपनी सुसुप्ता अवस्था से बाहर निकलकर मिट्टी व बालू खाता हुआ 15 फिट की गहराई तक नीचे जाता है। नीचे से पोषक तत्वों को बाहर लाता है और पौधों की जड़ के पास अपने मल को छोड़ता है जिसमें सभी आवश्यक पोषक तत्वों का भण्डार होता है। केंचुआ जिस छेद से नीचे जाता है उस छेद से ऊपर कभी नहीं आता है। इसके कारण वह भूमि में दिन रात लाखों छेद करके भूमि को मुलायम बनाता है।

10 प्रतिशत पानी और बिजली का इस्तेमाल
प्राकृतिक खेती में हाइब्रिड बीज को देशी बीज में परिवर्तित किया जाएगा। जिससे बिजली और पानी का मात्र 10 फीसदी ही इस्तेमाल होगा क्योंकि पौधे अधिकांश पानी हवा में उपस्थित नमी से पूरा करेंगे।

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