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विश्वास के संकट से जूझ रही है बसपा, मजबूत जनाधार के बावजूद खौफ में हैं कई लोग

दया शंकर चौधरी

अगले कुछ ही महीनों में संभावित यूपी के विधान सभा चुनावों के मद्देनजर जहाँ एक ओर पार्टियां अपने एक-एक विधायक को संजोकर रखने में लगी हैं, वहीं दूसरी ओर मायावती ने चार सालों में अपने 19 विधायकों में 12 को बाहर का रास्ता दिखा दिया हैं। अब स्थिति ये है कि बहुजन समाज पार्टी में कोई भी नेता विश्वास के साथ यह कह नहीं सकता है कि वह पार्टी में सुरक्षित है। दो विधायकों, (जिसमें एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और बसपा सुप्रीमो के खास) के निकाले जाने के बाद कद्दावर नेता अम्बिका चौधरी के पार्टी छोड़ जाने से एक सवाल सबके जेहन में आ रहा है कि वे कब तक बसपा में बने रह सकते हैं।

महज 19 विधायकों वाली बसपा अपने 12 विधायकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा चुकी है और चार साल में चौथे प्रदेश अध्यक्ष को कुर्सी पर बिठा चुकी है। यह तब हो रहा है जब जनता की अदालत में जाने में कुछ ही महीने बचे हैं और राजनैतिक दल अपने छोटे से छोटे कार्यकर्ता तक पर कार्रवाई करने से बच रहे हैं। यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में आई दरारों ने समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के लिए आस जगा दी है। इसका एक कारण स्पष्ट है कि बसपा के पास अगले चुनाव के लिए जाने-पहचाने चेहरों का टोटा पड़ सकता है। सूत्र बताते हैं कि बसपा के मौजूदा 4 विधायक सत्ताधारी भाजपा के संपर्क में हैं। जबकि छह अन्य विधायक सपा नेता अखिलेश यादव से मुलाकात कर ही चुके हैं।

विधानमंडल दल के नेता और राष्ट्रीय महासचिव को किया बाहर

बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने पार्टी के पुराने कैडर और कद्दावर नेताओं को एक झटके में बाहर का रास्ता दिखाकर चुनाव पूर्व कड़े संकेत दिए हैं। निकाले गए दोनों विधायक बसपा संस्थापक कांशीराम के समय से थे। यूपी के कटेहरी से विधायक लालजी वर्मा वर्तमान में बसपा विधायक दल के नेता थे। बसपा शासन में मंत्री भी रहे हैं। जबकि दूसरे निकाले गए विधायक रामअचल राजभर पार्टी में यूपी के अध्यक्ष रहे हैं। दोनों जनाधार वाले नेता माने जाते हैं।

राजनीतिक गतिविधियों पर नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि यूपी विधानसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो चुका है, ऐसे में बसपा अपने जनाधार की फिक्र किए बिना यह कदम उठा रही है। बावजूद इसके बसपा ने अपने विधायकों को निकालने के पीछे यह तर्क दिया है कि ये लोग पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल थे। दोनों विधायकों ने हाल ही में संपन्न हुए पंचायत चुनाव में दूसरे पार्टियों का सहयोग किया था। यह कहा जा सकता है कि बहुजन समाज पार्टी का वोटर किसी नेता को वोट नहीं देता, बल्कि वह चुनाव चिन्ह, मायावती व कांशीराम के नाम पर वोट करता है। यह बात मायावती अच्छी तरह से जानती भी हैं। हालांकि, यह भी है कि बिना सोशल इंजीनियरिंग के बसपा सत्ता में कभी भी नहीं आ सकी है। जातिगत भाईचारा समितियों ने बसपा की पकड़ अन्य जातियों में मजबूत की है। बसपा अपने वोटबैंक के साथ लोकल स्तर पर नेताओं को शामिल कराकर समीकरणों को साधती रही है।

पार्टी कैडर को सक्रिय करने के लिए कड़ा संदेश

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2014 के लोकसभा चुनाव और फिर 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन बड़ा ही निराशाजनक रहा। दोनों चुनावों के बाद बसपा के अस्तित्व पर सवाल खड़े होने लगे थे। अब चूकि 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव करीब है, ऐसे में पार्टी अपना स्तर ऊपर उठाना चाहती हैं। शिथिल पड़ गए नेताओ, संगठन के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को कड़ा संदेश देने के लिए संदेह में आए अपने ही जिम्मेदार नेताओं पर कार्यवाही एक रणनीति हो सकती है। इससे बसपा प्रमुख जनता के बीच में अपनी चर्चा को बनाए रखकर जनाधार बढ़ाने की कोशिश कर रहीं हैं। साथ ही साथ अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को अनुशासन का संदेश भी देना चाह रही हैं।

पार्टी के कई चेहरे चुनाव पूर्व अपने अस्तित्व को लेकर खौफज़दा

बसपा की इस कार्रवाई से संगठन के लोगों से अधिक चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे लोगों में खौफ है। दोनों कद्दावर नेताओं के अलावा पार्टी अभी एक पखवारा पहले ही पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में कई पूर्व सांसद व अन्य नेताओं को निष्कासित कर चुकी है। हाल ही में पार्टी के कद्दावर नेता पूर्व दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री रहे जीएम सिंह ने इस्तीफा दे दिया। नाम न छापने की शर्त पर एक बसपा नेता ने कहा है कि पूर्व विधायक सहित कई लोग पर कार्रवाई तय थी। वह कहते हैं कि कई नेताओं ने पंचायत चुनाव में पार्टी के कैडर का विरोध कर अपने चहेतों का प्रचार किया या अपना समीकरण साधने के लिए चुप्पी साध ली। पार्टी रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई कर रही है। हालांकि, विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे गोरखपुर जिले के एक बसपा नेता ने कहा कि चार साल से तैयारी में लगे हैं लेकिन मन में एक डर भी बना रहता है कि कब टिकट कट जाए या पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए।

लगातार बदले गये बसपा के प्रदेश अध्यक्ष

बहुजन समाज पार्टी वैसे तो शुरू से ही मायावती के निर्णयों पर ही चलती रही है, लेकिन इन दिनों संगठन में काफी उथलपुथल भी मचा हुआ है। करीब सात महीने पहले बसपा ने प्रदेश अध्यक्ष पद पर भीम राजभर को नियुक्त किया। विधानसभा चुनाव के बाद लगातार बदल रहे यूपी अध्यक्ष के पद पर आसीन वह चौथे नेता हैं। इसके पहले मुनकाद अली, आरएस कुशवाहा और रामअचल राजभर बारी-बारी बदले जा चुके थे। यही हाल बसपा के संसदीय दल के नेता पद का है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा की दस सीटें हैं। लेकिन संसदीय दल के नेता पद के लिए आए दिन किसी नए सांसद को आसीन कर दिया जाता है।

बसपा से निकाले गए विधायक: रामवीर उपाध्याय (सादाबाद-हाथरस), अनिल सिंह (पुरवा-उन्नाव), सुषमा पटेल( मुंगरा बादशाहपुर), वंदना सिंह ( सगड़ी-आजमगढ़), असलम राइनी(भिनगा श्रावस्ती) असलम अली (धौलाना-हापुड़), मुजतबा सिद्दीकी (प्रतापपुर-इलाहाबाद), हाकिम लाल बिंद (हांडिया- प्रयागराज), हरगोविंद भार्गव (सिधौली-सीतापुर), शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली, रामअचल राजभर, लालजी वर्मा।

यूपी विधान सभा में शेष बसपा विधायक: मुख्तार अंसारी, विनय शंकर तिवारी, उमाशंकर सिंह, सुखदेव राजभर, श्याम सुंदर शर्मा, आजाद अरिमर्दन।

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