लखनऊ। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष हरिकिशोर तिवारी, महामंत्री शिवबरन सिंह यादव ने प्रदेश के मुख्य सचिव आर.के. तिवारी से मुलाकात कर पिछले पाॅच वर्ष से लम्बित पं. दीन दयाल उपाध्याय राज्य कर्मचारी कैशलेस चिकित्सा व्यवस्था लागू ने होने पर खेद जताते हुए इसके कारण प्रदेश के कर्मचारियों को हो रही परेशानी से अवगत कराते हुए उन्हेें पुनः स्मरण पत्र प्र्रस्तुत किया। इस पत्र की प्रति उन्होंने मुख्यमंत्री कार्यालय को प्रेषित कर इसे अविलम्ब लागू कराने की मांग रखी। मुख्य सचिव ने प्रतिनिधि मण्डल के सामने ही प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वस्थ को इसे अविलम्ब लागू कराने के निर्देश दिये।
परिषद के अध्यक्ष हरिकिशोर तिवारी ने मुख्य सचिव को बताया कि विभिन्न मांगों को लेकर परिषद के नेतृत्व में हुए आन्दोलन के परिणाम स्वरूप 2013 में सरकार ने उच्च न्यायालय में शपथ पत्र देकर कर्मचारियों को कैशलेस योजना लागू करने का वायदा किया था। इस व्यवस्था को लागू कराने के लिए कई उच्च स्तरीय वार्ता हुई नियमावली बनी। लगभग 3.5 लाख कार्ड भी बने। बाद में इस योजना का नाम बदलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय राज्य कर्मचारी कैशलेस चिकित्सा रखा गया। लेकिन दुर्भाग्य यह कि पाॅच साल बीत जाने के बावजूद यह योजना धरातल पर नही उतर पाई।
परिषद द्वारा इस सम्बंध में मुख्य सचिव स्तर पर लगातार पत्राचार के बाद भी न तो वित्त विभाग ने इसका कोई हल निकाला न ही प्रस्तावित 75 करोड़ की धनराशि आवंटन किया गया। ऐसे में यह महत्वकांक्षी योजना वित्त विभाग की मनमानी का शिकार बनी हुई है। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 16 अक्टूबर 2018 को वार्ता के दौरान आश्वासन दिया गया लेकिन अब तक उसका अनुपालन न होना बहुत दुखद है। जबकि कार्मिकों को धन रिम्वर्समेन्ट के माध्यम से काफी परेशान होकर और रास्ते के भ्रष्टाचारी तंत्र को पार करते हुए 3-4 वर्षो के उपरान्त कुछ अंश प्राप्त हो ही जाता है अतः अतिरिक्त धन विभाग या सरकार को देने की आवश्यकता नही है सिर्फ भ्रष्टाचार को समाप्त कर तत्कालिक बड़े इलाजों में सहायता देने की मंशा के तहत मोड ऑफ पेंमेन्ट का स्वरूप बदला गया है। ऐसा किया जाना कर्मचारियों के साथ सरकार के लिए भी लाभकारी है। उन्होंने मुख्य सचिव से कहा कि केवल वित्त विभाग के कतिपय अधिकारियों के कारण इस महत्वाकांक्षी योजना की बलि नही चढ़नी चाहिए।
रिपोर्ट-शिव प्रताप सिंह सेंगर