साधारण पटाखों से निकलने वाली गैसों में सल्फर डाई आंक्साइड-जिससे ,गले एवं छाती में संक्रमण, श्वसन में परेशानी,कारबन मोनो आक्साइड–खाँसी, त्वचा में परेशानी, उच्च रक्त चाप, मानसिक एवं हृदय की बिमारियाँ उतपन्न, पोटेशियम नाइट्रेट जो कैंसर के मुख्य वजह है. हाइड्रोजन सल्फाइड जो छाती में दिक्कत, ब्रोमियम आक्साइट आँखों की त्वचा तथा गंध सूघने की क्षमता का नष्ट कर देता है। इसेक साथ ही उच्च शोर से मानव क कान को पर्दे भी फट सकते है।
नई दिल्ली। भगवान राम चंद्र कई दुर्दांत राक्षसों का वध कर वनवास से अयोध्या वापस आये तो इसी खुशियों को मनाने के लिए पूरी अयोध्या को दीपों से सजाया गया था जो कलांतर में दीपावली का रुप ले लिया। पर धीरे-धीरे खुशियाँ मनाने का तरीका बदल गया और आज हर मौसम या हर खुशी में पटाखों को सुमार कर लिया गया है। बढ़ती हुई आबादी और घटते हुए वन ने पर्यावरण पर काफी दबाब बढ़ा दिया है, ऐसे में इस मौसम में अन्य मौसम की तुलना में हवायें काफी प्रदूषित होती है उपर से पटाखो का शोर और धुआं जीवों के लिए काफी हानिकारक साबित हो रही है।
इसी को ध्यान में रखकर कई पर्यावरण संस्थानों के सुझाव पर सुप्रीम कोर्ट ने 7 अक्टूबर 2017 को देश में दीपावाली पर ग्रीन पटाखे को जलाने के लिए इजाजत दी थी यानी साधारण पटाखों पर बैन लगा दिया गया साथ ही साथ जलाने के समय सीमा भी रात्री में 8 बजे से 10 बजे निर्धारित कर दी औऱ यही प्रावधान वर्ष 2018,2019 भें भी लागू रहा । वर्ष 2020 मे करोना के कारण कुछ मौसम परिस्थितियाँ अनुकुल नही था पर पर्यावरण में काफी सुधार हुआ। वर्ष 2021 मे धीरे-धीरे सभी क्रिया कलाप पटरी पर लौट आई। वर्ष 2021 में दीपावली पर सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन पटाखे ही जलाने की इजाजत दी है और अधिकारियों पर जिम्मेदारी भी तय कर दी है।
इस वर्ष संस्कृति की दुहाई देकर माननीय सांसद मनोज तिवारी छूट के लिए सुप्रीम कोर्ट गये थे पर छूट नहीं मिली। माननीय जज एमआऱ शाह की बेंच ने फटकार लगाते हुए कहा कि कि आप भी दिल्ली और एनसीआर में रह कर इस तरह की बात कर रहे है। इन्होने ये भी कहा कि दिल्ली एनसीआर में दीवाली पर पटाखों पर बैन रहेगी 2 जनवरी 2023 तक वही देश के अन्य हिस्सों में पहले की तरह जारी रहेगा यानी ग्रीन पटाखे जलाने की इजाजत रहेगी। यह एक सकारात्मक पहल है पर यह तभी संभव है जब जनता जागरुक हो और सरकार का हाथ बटाये वरना पटाखों के इस जलन से जीव संकट में आ जायेंगे।
बात करते है ग्रीन पटाखों की तो दुनिया में चीन को बाद भारत दूसरे पायदान पर निर्माता(उत्पादक) के रुप में जाना जाता है। पटाखो के घटक में से अल्युमुनियम, बेरियम पोटेशियम नाइट्रेट तथा कार्बन की मात्रा कम या बिल्कुल नगन्य कर दी जाती है तो यही पटाखे ग्रीन पटाखे कहलाती है। इन पटाखों से वातावरण में 30-40% गैसे कम उत्यर्जित होती है जिससें वाताररण में 30-40 प्रतिशत प्रदूषण कम फैलते हैं। इन पटाखो का निर्माण राष्ट्रीय पर्यावरण अभियंत्रिकी संस्थान (NEERI/निरी),पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संस्थान(PESO/पेसो) के सहयोग से सीएसआईआऱ ने बनाया है।
इन्हीं के फर्मूला का उपयोग अन्य पटाखा उत्पादक कंपनिया करती है जिन पर इको/ग्रीन पटाखे का लोगो होता है। साधारण पटाखों से निकलने वाली गैसों में सल्फर डाई आंक्साइड-जिससे ,गले एवं छाती में संक्रमण, श्वसन में परेशानी,कारबन मोनो आक्साइड-खाँसी, त्वचा में परेशानी, उच्च रक्त चाप, मानसिक एवं हृदय की बिमारियाँ उतपन्न, पोटेशियम नाइट्रेट जो कैंसर के मुख्य वजह है. हाइड्रोजन सल्फाइड जो छाती में दिक्कत, ब्रोमियम आक्साइट आँखों की त्वचा तथा गंध सूघने की क्षमता का नष्ट कर देता है।
इसेक साथ ही उच्च शोर से मानव क कान को पर्दे भी फट सकते है। पटाखों के जलाने से बच्चें मानव बृद्ध के साथ-साथ पर्यावरण के अन्य जीव जन्तुओं पर भी इसका असर पड़ता है। जिससे जीवों पर संकट उत्पन्न हो गया है। अतः सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सराहनीय है। अब मानव को भी आगे आना होगा कोर्ट को इस कदम से कदम मिलाना होगा तभी इस संकट स निजात मिल सकती है। वरना जीवों का जीना दुभर हो जायेगा। और मानव खुशियों की आड़ में अपना गला खुद घोंट लेगा।
लाल बिहारी लाल