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फूलन देवी की पुण्यतिथि पर ही फूलन का अपहरण करने वाले 50 हजार के इनामी छिद्दा सिंह ने दम तोड़ा

• 24 साल तक साधु वेष में चित्रकूट रहा था
• बीमारी में घर आया तो पुलिस ने पकड़ लिया था

औरैया। फूलन देवी के अपहरण में शामिल लालाराम गैंग का सदस्य 50 हजार का इनामी रहा छिद्दा सिंह की रिम्स सैंफई में मौत हो गई। यह एक संयोग है कि उसकी मौत फूलन देवी की पुण्यतिथि पर ही हुई। लालाराम की मौत के बाद छिद्दा सिंह चित्रकूट में साधु का वेष धरकर नाम बदलकर 24 साल तक रहा। जब वह बीमारी से पीड़ित हुआ तब उसे घर की याद आई और घर आने पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था।

जानकारी के अनुसार 1980 के दशक में फूलन देवी का अपहरण कर उसे लालाराम गैंग में छोड़ने का सहयोगी अपहर्ता छिद्दा सिंह ही था। वह बाबा ब्रजमोहन दास बनकर चित्रकूट में रह रहा था। उसने ब्रजमोहन दास के नाम पर आधार पेनकार्ड सब बनवा लिया था। उसे स्वांस की बीमारी हो गई । बीते माह 25 जून को उसकी हालत बिगड़ी तो उसने अपने सहयोगी महंत से अपनी मातृभूमि में जाने की इच्छा जताई। जब वह लोग यहां लाये तो पुलिस को सुचना मिल गई और पुलिस ने 26 जून को उसे धर दबोचा।

फूलन देवी ने बेहमई कांड में 21 लोगों को एक लाइन में खड़ा कर गोलियों से भून दिया गया था। इस घटना के पीछे का का कारण था लालाराम व श्री राम डकैत से बदला लेना। तीन गुनी उम्र के पति को छोड़कर गांव जालौन जिले के गोरहा गांव में रह रही थी। विरोधियों ने लालाराम गिरोह के सदस्यों से फूलन का अपहरण करा दिया था। बस यहीं से फूलन का डकैत बनने के सफर शुरू हुआ।

फूलन देवी का अपहरण करने में अयाना के भासौन गांव निवासी छेदा सिंह उर्फ छिद्दा पुत्र अजब सिंह शामिल था। गैंग का सफाया हो गया और लालाराम भी मारा गया। छिद्दा के ऊपर दो दर्जन से अधिक मुकदमे दर्ज हुए।

उसने आस पास जिलों में अपहरण उद्योग भी चला रखा था। छिद्दा पुलिस की नजर में तब चढा जब उससे 1998 में पुलिस ने मुठभेड़ कर उससे चार अपहर्ता मुक्त करा लिए। इससे पहले छिद्दा के ऊपर कई मुकदमें आस पास जिलो में दर्ज थे।
लाराराम के मरने के बाद छिद्दा को पुलिस नहीं पकड़ सकी।

छिद्दा ने बाबा का भेष बनाया और ब्रजमोहन दास बनकर चित्रकूट के सतना में रहने लगा। यहां उसने आधार कार्ड राशन कार्ड पेन कार्ड सब ब्रजमोहन दास के नाम पर बनवा लिए थे। काफी तलाश के बाद भी जब पुलिस छिद्दा को खोज नहीं पाई तो 2015 में उस पे 50 हजार का इनाम घोषित कर दिया। फिर भी पुलिस छिद्दा तक नहीं पहुंच सकी। 2015 के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस उसे भूल सी गई थी। बीहड में डकैत खत्म ही हो गए थे तो सबके साथ छिद्दा की फाइल में भी धूल जमने लगी तब से न पुलिस ने इनाम बढ़ाया न पकड़ने की कोशिश की। छिद्दा सिंह चित्रकूट के सतना एमपी में जानकी कुंड के पास आराधना आश्रम में महंत हो गया था। अब 69 साल की उम्र में वह पकड़ा गया। पुलिस ने उसे जेल भेज दिया था।

इटावा जेल अस्पताल में उसका उपचार चल रहा था। हालत बिगड़ने पर उसे रिम्स सैंफई में भर्ती कराया गया। जहां पर छिद्दा सिंह ने सोमवार की देर शाम दम तोड़ दिया।

बेहमई के बाद अस्ता गांव कांड में शामिल था छिद्दा: 1981 में बेहमई कांड के बाद 1984 में फूलन देवी के सजातीय लोगों के गांव अस्ता में लालाराम गिरोह के लोगों ने जिसमें छिद्दा सिंह भी शामिल था।

इन लोगों ने बेहमई कांड के प्रतिशोध में यहां पर 12 मल्लाह जाति के जाति के लोगों को एक लाइन में खड़ा करके गोलियों से भून दिया गया था और गांव में आग लगा दी गई थी। जिसमें मां-बेटे की मौत हुई थी और 14 जान चली गईं थी। सरकार ने यहां स्मारक बनाकर इतिश्री कर ली। लेकिन इस घटना की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं नही थी। बेहमई कांड का मुकदमा अभी भी अदालत में चल रहा लेकिन अस्ता कांड का मुकदमा दर्ज ही नहीं हुआ था। गांव में बना स्मारक और उसमें लिखे मारे गए लोगों के नाम ही घटना को याद दिलाते हैं।

रिपोर्ट-शिव प्रताप सिंह सेंगर 

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