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नागरिक कर्तव्य बनाम निजीकरण

कर्तव्य कई तरह के होते हैं लेकिन आज जिस कर्तव्य की बात हो रही, वह है, नागरिको के कर्तव्य की। देश के नागरिक होने के नाते आपके कर्तव्य क्या है ?क्या पालन हो रहे है? शायद नहीं और हो भी रहे दोनो स्थिति है।
गलत कामो के प्रति आवाज उठाना, घूसखोरो से सावधान रहना,आपदा की स्थिति में मदद पहुँचाना,समस्याओ पर विचार करना, कुव्यवस्थाओ पर आवाज उठाना, आवरू की रक्षा करना, जागरूकता फैलाना आदि कई ऐसे कार्य है जो नागरिक कर्तव्य है पर पालन कितने होते है यह बात छिपी नही है। लेकिन कुछ लोग आज भी इन सभी नियमों का पालन करते है जिससे हमारा देश और समाज सुरक्षित रहता है।चाहे वह पुलिस हो, सेना हो, नागरिक हो, लेखक हो, पत्रकार हो, आम लोग हो, डाक्टर हो, वकील हो, जज हो, ड्राइवर हो, या सामाजिक कार्यअकर्ता हो, इन्होने देश और नागरिक कर्तव्यो का पालन किया है।
सही मायने में मानव सेवा ही नागरिक कर्तव्य है। मानव प्रेम ही प्रेम है। मानव श्रद्धा ही भक्ति।लेकिन दुर्भाग्य उन लोगो का जो  मानव के शत्रु बनकर अपनी उपेक्षा करवाते हैं।
निजीकरण सुविधा और चुस्त दुरूस्त सर्विस के लिए जानी जाती है ,वहीं सरकारी अपनी लेट लतीफी और सुस्त कार्यो के लिए।ऐसी छवि एक दो वर्षो में नहीं आजादी के 74 साल होने के वावजूद है।जबकि निजीकरण आम लोगो के सुविधा और समय दोनो के लिहाज से तेजी से अपना क्रेज बना रहा है।निजीकरण का दौर अगर इसी तरह हावी रहा तो वो दिन दूर नहीं जब सभी कुछ निजी हो जाएँगे।आज के इस फास्ट युग में सरकारी दफ्तरो में भी अब निजी कर्मचारी देखने को मिलते है जो विभिन्न टेंडरो के माध्यम से अपने कार्य कर रहे हैं।
जहा तक फायदे नुकसान की बात है तो इसमें सरकार की माथापच्ची कम है और सर्विस अच्छी तो करोडो लोगो की देखभाल के बजाय चंद लोगो को टाइट करने पर ही काम हो जाती है उन्हें भी यह चिंता रहती है कि काम की शिकायत न हो क्योंकि टेडर जाने का डर रहता है। जिसके फलस्वरूप काम अच्छे होते हैं ठीक इसके विपरीत सरकारी कर्मचारी इतने नियम कानून का हवाला देकर काम में आनाकानी करते है जिससे आम लोगो को परेशानी होती रहती है।
आज यह लोगो की जुबान बन गयी है कि सब कुछ वर्तमान सरकार द्वारा बेचा जा रहा है,पर  सच तो यह है असुविधाओं का अम्बार इस तरह हावी था पुरानी सिस्टम पर कि सुविधा घुस ही नहीं पाती थी।आज सुविधा इस कदर हावी है कि असुविधा  कोसो दूर भाग रही है।
     आशुतोष

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