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कोरोना में कांग्रेस की कठिनाई

रिपोर्ट-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

कोरोना आपदा पर कांग्रेस की राजनीति हैरान करने वाली है। यह सही है कि वह लोकसभा में मान्यता प्राप्त दल नहीं है, फिर भी देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है। इस रूप में सरकार पर हमला बोलना उसका अधिकार व कर्तव्य दोनों है।
लेकिन संकट काल में भी इसी रास्ते पर आंख मूंद कर चलना अनैतिक है। कांग्रेस इस समय यही कर रही है। शीर्ष स्तर से जारी होने वाले उसके बयान देश में निराशा का माहौल बनाने वाले है।

शायद कांग्रेस ने इस राष्ट्रीय आपदा को सरकार पर हमला बोलने का सुनहरा अवसर समझ लिया है। इसकी राष्ट्रीय महामंत्री ने कुछ दिन पहले कहा था कि लॉक डाउन समस्या का समाधान नहीं है, किसी ने कहा कि लॉक डाउन देर में लागू किया गया। अब अंतरिम अध्य्क्ष ने कहा कि लॉक डाउन जल्दीबाजी में लागू कर दिया गया। मतलब संकट काल में भी कांग्रेस दिग्भर्मित है। उसे समझ नहीं आ रहा है कि इस मौके पर कौन सी रणनीति बनाई जाए। अंतरिम अध्य्क्ष अपनी पार्टी की प्रदेश इकाइयों से वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिये मुखातिब थी।

इस आपदा में कांग्रेस के लोगों को क्या करना है, इस पर कोई जोर नहीं था। ऐसा लग जैसे नरेंद्र मोदी पर हमला बोलने के लिए यह संवाद आयोजित किया गया था। यदि लक्ष्य यह था,तो अवश्य इसमें सफलता मिली है। लेकिन कांग्रेस अपने राष्ट्रीय व सामाजिक दायित्व निर्वाह में उतनी ही विफल साबित हुई है। विश्व समुदाय नरेंद्र मोदी के प्रयासों की प्रशंसा कर रहा है। उनके निर्णयों से प्रेरणा ले रहा है, अपने यहां इन निर्णयों को लागू कर रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ ने तो यहां तक कह कि नरेंद्र मोदी को कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई की अगुवाई करनी चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस के खिलाफ नरेंद्र के कदमों को बेहतरीन बताया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टी ए गेब्रेयेसस ने कहा है कि गरीबों के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो आर्थिक राहत पैकेज का एलान किया है वो इस संकट की घड़ी में बेहद काम आएगा। इसके साथ ही उन्होंने अन्य विकासशील देशों के लिए भारत को एक उदाहरण बताया।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारत के लिए जारी किए गए चौबीस अरब डॉलर के पैकेज का स्वागत किया था। कहा था कि अस्सी करोड़ लोगों के लिए खाने का मुफ्त राशन देने और अगले तीन महीनों के लिए गरीबों के लिए जो कदम भारत सरकार ने लिए हैं वो काफी अच्छे हैं। यह सामाजिक कल्याण की दृष्टि से सराहनीय कदम है। नरेंद्र मोदी के जरूरतमंदों को खाने का मुफ्त राशन देने से लेकर दो सौ मिलियन से अधिक गरीब महिलाओं को सीधा कैश ट्रांसफर करने जैसे फैसले बेहतरीन हैं। इसके अलावा अगले तीन महीनों के लिए देश के आठ करोड़ परिवारों के लिए मुफ्त कुकिंग गैस का सरकार का एलान लोगों को सीधा मदद पहुंचाएगा। जिसकी इस संकट के समय में बहुत जरूरत थी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के बाद कांग्रेस अध्य्क्ष के विचारों पर गौर करिए। ऐसा लग रहा था कि वह विश्व स्वास्थ्य संघठन से भी हिसाब बराबर करना चाहती है।

उसने तथ्यों के आधार पर मोदी के कदमों की सराहना की थी, जबकि सोनिया गांधी निराधार हमला बोल रही थीं। वह कहती है कि देश में कोरोना वायरस के खिलाफ सभी को एकजुट होने की जरुरत है तो भाजपा सांप्रदायिक पूर्वाग्रह और नफरत का वायरस फैलाने में लगी हुई है। सोनिया ने यह नहीं बताया कि उनके इस आरोप का आधार क्या है। यह बताने से वह बच निकली। क्योकि वह जानती थी कि ऐसा किया तो कांग्रेस, तृणमूल, आप और शिवसेना गठबन्धन वाली सरकार ही निशाने पर आ जाएंगी। इन सरकारों ने वोटबैंक सियासत के तहत जमातियों को रोकने का प्रयास नहीं किया। इससे स्थिति बिगड़ी है।

क्या सोनिया इसी को साम्प्रदायिक सौहार्द मानती है। क्या वह इस स्थिति को बनाये रखने का समर्थन कर रही है।इसके बाद उनका अगला तीर चलता है। वह कहती है कि कोरोना वायरस संकट से निपटने के लिए आंशिक कदम उठाये गए। अगला तीर ज्यादा निराशा फैलाने वाला है। वह कहती है कि लॉक डाउन के पहले चरण में ही बारह करोड़ लोग बेरोजगार हो गए। ऐसा प्रतीत होता है कि वह लॉक डाउन को ठीक नहीं मानती। लोगों के खातों में साढ़े सात हजार रुपये भेजने की सलाह देती है। कांग्रेस सरकारें कितनी धनराशि भेज रही है, यह नहीं बताया। वह कहती है कि भाजपा सांप्रदायिक पूर्वाग्रह और नफरत का वायरस फैलाने में लगी है।

सोनिया का यह बयान ही पूर्वाग्रह से ग्रसित है। इस समय उनको ऐसी सियासत से बचना चाहिए था। उनके बयान से ऐसा लगता है जैसे वह पूरे देश में निराशा व हताशा का माहौल बनाना चाहती है। कहा कि वाणिज्य एवं उद्योग और व्यापार पूरी तरह से रुक गया है। और करोड़ों लोगों की जीविका का साधन छिन गया है।


जो करुणा,बड़ा दिल और सजगता दिखनी चाहिए थी उसका अभाव है। अपनी प्रशंसा भी करती है। जैसे उनकी सलाह पर सरकार चलती तो अबतक कोरोना पराजित हो जाता। उन्होंने कहा, ‘हमने प्रधानमंत्री से बार बार आग्रह किया है कि कोरोना वायरस की जांच करने, मरीज के संपर्क में आए लोगों का पता लगाने और उन्हें पृथकवास में रखने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। जांच अभी भी बहुत कम हो रही हैं और जांच किट की आपूर्ति भी कम है और जो उपलब्ध हैं वो भी अच्छी गुणवत्ता वाली नहीं है। उन्होंने यह दावा भी किया कि पीपीई किट की संख्या कम और गुणवत्ता खराब है। सोनिया ने यह नहीं बताया कि कांग्रेस की प्रदेश सरकारें उनके विचारों पर कितना अमल कर रही है।

वह ऐसा दिखाना चाहती है जैसे उनकी यूपीए सरकार स्वास्थ सेवाओ का भारी नेटवर्क बना गई थी,मोदी जानबूझ कर उसका उपयोग नहीं कर रहे है। जबकि मोदी सरकार की उपलब्धि उनके दस वर्षीय शासन से कहीं ज्यादा है। जाहिर है कि सोनिया ने असमजन के मनोबल बढ़ाने वाला एक शब्द भी नहीं कहा। दूसरी तरफ नरेंद्र अपने दायित्वों के निर्वाह के साथ ही लोगों का मनोबल भी बढा रहे है।

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