राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद कांग्रेस का विरोध प्रदर्शन जारी है। कई विपक्षी दलों का भी कांग्रेस को साथ मिला है। हालांकि, इतिहास के पन्नों को खंगालकर पता चलता है कि गांधी परिवार के किसी सदस्य की लोकसभा सदस्यता जाने की घटना पहली बार नहीं हुई है। इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) और सोनिया गांधी भी इस तरह के सियासी दौर से गुजर चुकी हैं।
बात साल 1975 की है। 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा ने राम मनोहर लोहिया की संयुक्त समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार राज नारायण को उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से भारी अंतर से हरा दिया था। इस नतीजे को नारायण ने इलाहबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। आरोप लगाए गए कि इंदिरा के चुनावी एजेंट यशपाल कपूर सरकारी कर्मचारी थे और कांग्रेस नेता ने अपने कामों के लिए सरकारी अधिकारियों का इस्तेमाल किया।
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17 फरवरी 1975 को भारत के इतिहास में पहली बार हुआ कि प्रधानमंत्री कोर्ट में पेश हुईं। अपनी किताब में वकील प्रशांत भूषण बताते हैं कि तब हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा ने इंदिरा को बैठने के लिए कुर्सी दी, जो विटनेस बॉक्स में पहुंचने वाले को नहीं मिलती है। लेखक ने बताया है कि यह सब राज नारायण के वकील शांति भूषण की सलाह से हुआ था।
खास बात है कि जिस दिन इंदिरा कोर्ट में पेश हुईं, उसी दिन फैजाबाद (अब अयोध्या) में नारायण को गिरफ्तार कर लिया गया था। 12 जून 1975 को जस्टिस सिन्हा ने इंदिरा को दोषी पाया और रायबरेली चुनाव को निरस्त कर दिया। साथ ही इंदिरा पर 6 सालों तक निर्वाचित पद पर रहने से भी रोक लग गई।
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रायबरेली गंवाने के बाद इंदिरा कर्नाटक के चिकमंगलूर से जनता पार्टी के उम्मीदवार वीरेंद्र पाटिल को हराकर सांसद बनीं। तब मोरारजी देसाई की अगुवाई वाली सरकार उनके खिलाफ प्रस्ताव लेकर आई थी। 1975 में मारूती को लेकर पटल पर पहुंचे एक प्रश्न को लेकर चार अधिकारियों को जानकारी जुटाने से रोकने के चलते उनपर लोकसभा की अवमानना के आरोप लगे। इस प्रस्ताव पर 8 दिसंबर 1978 को बहस शुरू हुई और दो सप्ताह से कम समय में 279 सांसद इसके पक्ष में रहे। जबकि, 138 खिलाफ और 37 वोटिंग से दूर रहे।
नतीजा हुआ कि इंदिरा का लोकसभा सदस्यता छीन ली गई और उन्हें सजा मिली। उन्होंने ऐलान कर दिया कि वह तिहाड़ जेल जाएंगी और इसी के साथ वह पहली सांसद बनीं, जिसे सदन ने जेल पहुंचाया था। हालांकि, वह जेल में एक सप्ताह से कम समय रहीं, लेकिन 26 दिसंबर 1978 को बाहर आने के बाद उनके जनसमर्थन में काफी इजाफा हुआ।
हालांकि, 24 जून 1975 में सुप्रीम कोर्ट ने आंशिक रूप से उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी। उस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा को प्रधानमंत्री बने रहने की अनुमति दी थी, लेकिन संसद की कार्यवाही और सांसद के तौर पर सैलरी लेने से भी रोक दिया था। इसके अगले ही दिन यानी 25 जून 1975 को आपातकाल का ऐलान हो गया।
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इसके 19 महीनों बाद ही चुनाव की घोषणा हुई और इंदिरा को रायबरेली में ही राज नारायण के हाथों 50 हजार मतों से हार का सामना करना पड़ा।