दिमाग से जुड़ी समस्याओं को ज्यादा सटीक तरीके से पहचान के लिए वैज्ञानिकों ने मशीन लर्निंग तकनीक विकसित की है. हालांकि, प्राथमिक बीमारी के रूप में डिप्रेशन के मरीजों की सटीक तरीके से पहचान की जा सकती है, लेकिन डिप्रेशन और मानसिक बीमारी के मरीजों को एक लक्षण या दूसरी बीमारी का कम ही सामना होता है.
दिमागी सेहत के इलाज में क्या मशीन लर्निंग हो सकती है कारगर?
डिप्रेशन के साथ मानसिक बीमारी के मरीजों को ऐसे लक्षण होते हैं जो ज्यादातर बार-बार डिप्रेशन के आयाम की ओर जाते हैं. ऐतिहासिक रूप से इसका मतलब हुआ कि मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सक ‘मुख्य’ बीमारी की पहचान दूसरे लक्षणों के साथ करते हैं. बर्मिंघम यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता पेरिस एलेक्जेंडर कहते हैं, “ज्यादातर मरीजों में को-मोरबिडिटी यानी एक साथ कई समस्याएं होती हैं. इसलिए मानसिक खराबी वाले लोगों को भी अवसादग्रस्तता के लक्षण जाहिर होते हैं.”
ज्यादा सटीक तरीके से समस्याओं की पहचान में है मददगार
उनका कहना है कि इससे डॉक्टरों के सामने पहचान और को-मोरबिडिटी के बिना निर्धारित इलाज की बड़ी चुनौती पैदा हो जाती है. सिजोफ्रेनिया बुलेटिन पत्रिका में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने मशीन लर्निंग तकनीक का इस्तेमाल करते हुए दोनों बीमारियों की पहचान के लिए अधिक सटीक मॉडल को बनाया. उन्होंने उसका इस्तेमाल मिले जुले लक्षणों वाले मरीजों को जांचने के लिए किया.
शोधकर्ताओं ने प्रश्नावली में दिए जवाब का परीक्षण, विस्तार से इंटरव्यू और 300 मरीजों का एमआरआई किया. यूरोपीय यूनियन के जरिए मिले फंड से रिसर्च को 7 यूरोपीय रिसर्च केंद्रों पर किया गया. उन्होंने मरीजों के कई छोटे ग्रुपों की पहचान की जिन्हें डिप्रेशन के किसी लक्षण के बिना मानसिक बीमारी या मानसिक लक्षण के बिना डिप्रेशन के साथ वर्गीकृत किया जा सकता था.
डेटा का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने ‘शुद्ध’ डिप्रेशन और शुद्ध ‘मानसिक बीमारी’ के मशीन लर्निंग मॉडल्स का पता लगाया. शोधकर्ताओं ने फिर मशीन लर्निंग तरकीब को इन मॉडल्स का दोनों बीमारियों के लक्षणों पर आजमाया. वैज्ञानिकों ने बताया कि रिसर्च का मकसद अत्यधिक सटीक बीमारी का हर मरीज के लिए प्रोफाइल बनाना और लक्षणों की पहचान को जांचना था कि ये कितना सटीक है.