लखनऊ। श्री अकाल तख्त साहिब के सिरजना (स्थापना) दिवस ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरू नानक देव जी, नाका हिंडोला,लखनऊ में शनिवार को बड़ी श्रद्धा एवं सत्कार के साथ मनाया गया।
प्रातः का दीवान श्री सुखमनी साहिब के पाठ से आरम्भ हुआ उसके उपरांत हजूरी रागी भाई राजिन्दर सिंह ने अपनी मधुरवाणी में शबद “वडा तेरा दरबार सचाई तुधु तखत , सिरा साहिब पातिसाहु निहचल चउर छत।।” गायन कर समूह संगत को निहाल किया। ज्ञानी सुखदेव सिंह ने सिरजना दिवस पर कथा व्यख्यान करते हुए कहा कि श्री अकाल तख्त साहिब सिखों की सर्वोच्च संस्था है जो अमृतसर, पंजाब, भारत में स्वर्ण मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग के ठीक सामने स्थित है।
श्री अकाल तख्त साहिब का मूल आकार श्री गुरु हरिगोबिंद साहिब जी, भाई गुरदास जी और बाबा बुडढा जी ने अपने हाथों से 1606 में बनवाया था। आसन के निर्माण के लिए किसी अन्य व्यक्ति या कलाकार को नियोजित नहीं किया गया था। गुरु जी ने कहा कि गुरु का आसन अनंत काल तक पंथ की सेवा करेगा। गुरु जी ने जहांगीर के शाही फरमान की अवहेलना करते हुए चबूतरे की ऊंचाई बारह फीट कर दी कि खुद बादशाह के अलावा कोई भी व्यक्ति तीन फीट से ज्यादा ऊंचे चबूतरे पर नहीं बैठ सकता। श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी नियमित रूप से सिखों के सभी विवादों के लिए राजसी गौरव और न्याय के सभी निशानों के साथ, तख्त साहिब के ऊंचे मंच पर बैठते थे। अकाल तख्त को हरिमंदिर साहिब से एक अंश नीचे बनाया गया था दृढ़ता और समर्पण का एक समान संतुलन श्री गुरु हरगोबिंद की दैनिक दिनचर्या में बनाया गया था, जिसमें वैकल्पिक रूप से मंदिर को अपने आध्यात्मिक कार्य और सिंहासन मंच के साथ संप्रभुता और अस्थायी अधिकार के दावे के साथ उजागर किया था।
गुरु जी ने हरिमंदिर साहिब में यह तख्त सभी तख्तों में सबसे सर्वोच्च है। पिछली शताब्दी के दौरान पंथ (समुदाय) द्वारा स्थापित चार अन्य तख्त हैं। मंच का संचालन सतपाल सिंह मीत ने किया। मीडिया प्रभारी जसबीर सिंह ने बताया कि लखनऊ गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा ने नगरवासियों को श्री अकाल तख्त साहिब सिरजना दिवस की बधाई दी। समाप्ति के उपरान्त चाय का लंगर वितरित किया गया।
रिपोर्ट-दयाशंकर चौधरी