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मिट्टी के चूल्हे से नहीं मिली मुक्ति

        सपना कुमारी

उत्तर भारत की अधिकतर ग्रामीण आबादी का भोजन लकड़ी और खर-पतवार पर ही बनता रहा है. ग्रामीण महिलाओं के जिम्मे जो महत्वपूर्ण काम रहा है, वह है दिन में बाग-बगीचों से खर-पतवार चुनकर, लकड़ियों को काटकर लाना और मिट्टी के चूल्हे पर भोजन बनाने का इंतजाम करना. लेकिन भोजन बनाने के दौरान इन्हीं लकड़ियों व खर-पतवार से निकलने वाले धुएं घर की गृहिणियों की सेहत पर प्रतिकुल असर डालते रहे हैं. धुएं से निकलने वाले जहरीले गैस उन्हें बीमार करते रहे हैं. इसी मिट्टी के चूल्हे और ईंधन के रूप में लकड़ियों के प्रयोग से छुटकारा दिलाने के लिए दशकों से पर्यावरण कार्यकर्ताओं, सरकारी व गैरसरकारी संगठनों ने समय-समय पर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आवाज उठाते रहे हैं. इसी बीच रसोई गैस की पहुंच शहर के साथ ही सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक हो, इसके लिए वर्तमान की केंद्र सरकार ने ‘उज्ज्वला योजना’ शुरू की थी. इस बहुचर्चित योजना के प्रमुख लक्ष्यों में एक था कि महिलाओं को मिट्टी के चूल्हे से छुटकारा दिला कर उनकी सेहत की रक्षा की जाए. इसके लिए गांव-गांव तक सिलिंडर भी पहुंचाया गया.

लेकिन सवाल उठता है कि क्या इस योजना के लाभान्वितों को मिट्टी के चूल्हे से मुक्ति मिली? दरअसल ‘स्वच्छ ईंधन बेहतर जीवन’ के नारे के साथ केंद्र सरकार ने 1 मई 2016 को प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरुआत की थी. इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण परिवारों में लकड़ी और गोइठा के चूल्हे से उत्सर्जित धुएं तथा विषैली गैसों के द्वारा फैलने वाली बीमारियों से महिलाओं को सुरक्षित रखना है.

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इसके अतिरिक्त इस योजना से महिला सशक्तिकरण, महिला स्वास्थ्य और महिला कल्याण को भी बढ़ावा देना है. साथ ही, जीवाश्म तथा अशुद्ध ईंधन द्वारा पकाए गए भोजन से होने वाली मौतों को भारत में कम करने का लक्ष्य भी इस योजना में रखा गया है. समाज सुधार एवं सामाजिक कल्याण की दिशा में यह एक अच्छी योजना है. इस योजना के अंतर्गत गरीब परिवारों की बीपीएल धारक महिलाओं को रियायती दर पर फ्री गैस कनेक्शन देना है. लेकिन ऐसा लगता है कि ज़मीनी स्तर पर यह योजना अपने लक्ष्य से भटक रही है.

मिट्टी के चूल्हे से नहीं मिली मुक्ति

इसका एक उदाहरण बिहार के मुजफ्फरपुर का ग्रामीण क्षेत्र है जहां गैस सिलेंडर महंगा होने के कारण गरीब महिलाएं फिर से लकड़ी और मिट्टी के चूल्हे पर खाना पकाने को मजबूर हैं. जिला के मोतीपुर प्रखंड स्थित रामपुर भेड़ियाही पंचायत के धनौती गांव की इंदु देवी कहती हैं कि ‘योजना के तहत फ्री गैस कनेक्शन तो मिल गया है. अब तक छह बार गैस सिलेंडर भी भरवाया, जिसमें से 2 या 3 बार ही सब्सिडी आया है. लेकिन अब सब्सिडी नहीं आती है. परिवार की आर्थिक हालत इतनी अच्छी नहीं है कि 1200 रुपए में सिलेंडर भरवाए. ऐसे में सिलिंडर घर में ही रखा है और अब फिर से मिट्टी के चूल्हे पर ही खाना बनाती हूं. लकड़ी व पत्ता चुन कर लाती हूं और उसी को जलाकर खाना बनाती हूं.

इसी गांव की उषा देवी कहती हैं कि पहले 500 से 600 में गैस सिलेंडर भरा जाता था और 200 रुपए सब्सिडी भी आ जाता था, लेकिन अब तो एक गैस सिलेंडर भरवाने में लगभग 1200 रुपए लग जाते हैं और सब्सिडी भी नहीं आती है. इस वजह से हम गैस सिलेंडर नहीं भर पाते हैं और पेड़-पौधों को कटवा कर उसी से खाना बनाते हैं. शोभा देवी कहती हैं कि आर्थिक तंगी के कारण हमने दो-तीन बार के बाद गैस सिलेंडर भरवाना बंद कर दिया है. अब फिर से हम चूल्हे पर ही खाना बनाते हैं. इस पंचायत की ऐसी दर्जनों महिलाएं हैं जिन्होंने बताया कि महंगाई के कारण घरेलू गैस सिलेंडर नहीं भरवाती हैं और फिर से मिट्टी के चूल्हे पर ही खाना बना रही हैं.

दृढ़ता और संतोष, खुशियों के स्रोत

ऐसी स्थिति जिले के अन्य प्रखंडों के ग्रामीण क्षेत्रों की भी है. पारु प्रखंड के चांदकेवारी पंचायत की महिला दरुदन बीबी बताती हैं कि ‘फ्री के नाम पर हमें भी एक गैस कनेक्शन मिला है, जिसमें हमसे फॉर्म भरने के लिए 200 रुपये लिया गया था. कनेक्शन तो मिला, लेकिन आज गैस इतनी महंगी हो गयी है कि एक सिलेंडर का दाम 1180 रुपये लगता हैं. हम एक गरीब परिवार से हैं. एक दिन खेत में काम करने के मात्र 70 रुपये मजदूरी मिलती है. इतने कम पैसे में पांच परिवार का खाना-पीना करें कि गैस भरवाए? खाना बनाने के लिए जलावन के रूप में फिर से पुराना लकड़ी-चूल्हा काम आ रहा है.’

मिट्टी के चूल्हे से नहीं मिली मुक्ति

साहेबगंज प्रखंड के हुस्सेपुर पंचायत के शाहपुर पट्टी गांव के इंदिरा नगर मुशहर टोला में मुसहर समुदाय के लोगों भी फ्री में गैस कनेक्शन मिला था, लेकिन आज गैस की महंगाई के कारण सभी परिवार गैस भरवाना छोड़ चुके हैं और मिट्टी के चुल्हे पर खाना बना रहे हैं. यहां की कुछ महिलाओं कलावती देवी, सुकांन्ति देवी, सीमा देवी, मालती देवी, माला देवी, उर्मिला देवी, सुरति देवी, उर्मिला और पानपति देवी आदि ने बताया कि बढ़ी महंगाई के कारण सबने गैस सिलिंडर भरवाना बंद कर दिया है और अब वह सिलिंडर को घर के एक कोने में रख कर उस पर बर्तन रखती हैं. वह कहती हैं की हम गरीब-मजदूर भला इतने पैसे कहां से लाएं कि हर महीने 1100- 1200 में सिलेंडर भरवाएं?

इस संबंध में हुस्सेपुर पंचायत के मुखिया अमलेश राय बताते हैं कि ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना निर्धन-अति निर्धन परिवार के लिए सफल साबित नहीं हो रही है. जितनी तेजी से गरीबों के बीच गैस कनेक्शन बांटा गया, उतनी ही तेजी से सिलिंडर बंद होते चले गये.’ वह कहते हैं कि ‘सिर्फ मुफ्त में सिलिंडर दे देने से लकड़ी के जलावन से मुक्ति नहीं मिलने वाली है. महंगाई के अनुपात में आम लोगों की कमाई घटती जा रही है, भला वे सीमित आमदनी में अपना घर चलाए या सिलेंडर भरवाएं? (चरखा फीचर)

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