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दुमका काण्ड : त्वरित इंसाफ़ की अपेक्षा

“कितनी प्यासी है वहशी मानसिकता, कितनी बच्चियों का खून पिएगी? जड़ से उखाड़ दो जानवरों की जाहिलता वरना कोई माँ बेटियों को धरती पर जन्म देकर नहीं लाएगी” हर चीज़ की एक सीमा होती है, पर बेटियों के साथ अत्याचार के सिलसिले थमने का नाम नहीं ले रहे। जब जब ऐसी घटनाएँ घटती है तब कुछ दिन समाज में शोर मचता है। फिर जैसे थे वाली गत होती है।
       भावना ठाकर ‘भावु’

हमारे देश में हर रोज़ न जानें कितनी बेटियाँ टपोरी, अनपढ़, गँवार और आशिक आवारा टाइप के लड़कों की हल्की मानसिकता का शिकार होते अपनी जान गँवा रही है। और उसमें भी ज़्यादातर गुनहगार एक खास कोम के लड़के पाए जाते है। एक-एक घटना पर खून खौल उठता है। समाज के ठेकेदारो से निवेदन है कि, इस मसले को जड़ से नाबूद कर दिया जाए। अब वक्त आ गया है नायक फ़िल्म की तरह फैसले लेने का तभी लोग सुधरेंगे। हमारे यहाँ कानून अंधा है, फैसला आने तक घर वाले भी भूल जाते हैं कि किस अत्याचार के लिए लड़ रहे थे। ऐसे शाहरुख़ वाहरुख़ को ऐसी कड़ी सज़ा दी जाए की अंजाम जानकर उनकी आने वाली सौ नस्लें सुनकर काँप उठे।

समाज से एक सवाल, क्या बेटियाँ सिर्फ़ ज़लिल होने के लिए ही पैदा होती है? आख़िर कब तक चलेगा ये वहशीपन का खेल? कोई भी ऐरा, गैरा, नथ्थूखैरा किसीके भी घर में घुसकर किसीके जिगर के टुकड़े समान बेटी पर पेट्रोल डालकर ज़िंदा जला देता है, और उस घिनौनी हरकत का उसे कोई मलाल तक नहीं। पकड़े जानें पर हंसते हंसते जा रहा है। इन जैसे ज़ालिमों के ख़िलाफ़ केस वेस नहीं चलाना चाहिए, सीधा फैसला कर देना चाहिए। क्यूँकि अगर बुरे लोग सिर्फ़ समझाने से समझ जाते, तो न महाभारत का युद्ध होता, न राम को लंका जाकर रावण को ध्वस्त करना पड़ता। आज भी गली-गली दुर्योधन और रावण शिकार की तलाश में घूम रहे है। कल तक बेटियाँ सड़कों पर सुरक्षित नहीं थी, आज अपने घर में भी सुरक्षित नहीं।
कब जागेगा नपुंसक समाज? कब तक हम शाहरुख़ जैसे राक्षसों के हाथों बेटियों की बलि चढ़ाते रहेंगे। कुछ समय पहले हाथरस में एक लड़की को जिंदा जला दिया गया, फिर गुजरात के सूरत शहर में एक लड़की का सरेआम गला काट दिया, सोनाली फोगाट को ज़हर देकर मार दिया। माँ-बाप पेट काटकर नाज़ों से बच्चियों को इसलिए बड़ी करते है कि एक तरफ़ा प्यार में अंधे फालतू लड़कों के हाथों बलि चढ़ा दी जाए।
परसों झारखंड के दुमका में एक तरफ़ा प्रेम करने वाले शाहरुख़ नामक युवक ने अंकिता नामक युवती पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी, जिसमें युवती की उपचार के दौरान मौत हो गई। इस घटना की जितनी निंदा की जाए कम है। आरोपी के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, और त्वरित न्याय अपेक्षित है।
जब मरते-मरते अंकिता आरोपी का नाम दे गई, वो विडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है, तब फैसला लेने में देर नहीं होनी चाहिए। मरने वाली लड़की की आख़री इच्छा थी जैसी मौत उसको मिली वैसी ही उसको जलाने वाले को भी मिलनी चाहिए। अगर ये लड़का बच गया तो कानून से जनता का भरोसा उठ जाएगा।
उधर प्रदेश के सीएम सोरेन ने पीड़िता के परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की है। साथ ही इस मामले को फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाने की बात कही। स्थानीय प्रशासन ने पीड़ित परिवार को मुआवजा दिया है। पर ये तो फ़ैशन हो गया है कि किसी कमज़ोर को ताकतवर अपने हिसाब से प्रताड़ित करता है और वहाँ कि सरकार उसकी कीमत कैल्कुलेट करके पैसे दे देती है। गरीब, कमज़ोर और मजबूर होने पर आपकी कीमत लगा दी जाती है, ताकि आप चुप रहो। क्या पैसों से एक ज़िंदगी वापस आ सकती है? क्या पैसों से एक परिवार ने जो अपना सदस्य खोया है उसकी कमी पूरी हो जाती है?
बहुत खेल लिया इन दरिंदों ने अपना खेल, अब औरतों को संगठित होने की जरूरत है। जिस भी गाँव या शहर में किसीकी भी बेटी के साथ ऐसी घटना घटे, सब मिलकर गुनहगार को ऐसी सज़ा दो की दूसरा कोई किसीकी बेटी के सामने आँख उठाकर देखने की हिम्मत तक न करें। नहीं चाहिए हमें कोई कानून और इंसाफ़। अगर मासूमों को इंसाफ़ नहीं दिला सकते तो बंद करो ये कोर्ट-कचहरी कानून का नाटक।
बुलडोज़र वाले इंसाफ़ की तरह हर गुनहगार को पब्लिक के हवाले कर दो तभी शायद समाज से गंदगी साफ़ होगी। क्यूँकि अब पानी सर के उपर से बह रहा है सख़्ती नहीं बर्ती गई तो ऐसी जानवरों वाली मानसिकता को छूट मिलती रहेगी और बेटियाँ यूँही बलि चढ़ती रहेगी।

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