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“कथिर से कुंदन बन गई”

   भावना ठाकर ‘भावु’ 

कुंतल आज UPSC पास करके कलेक्टर की कुर्सी संभालने जा रही थी, उस सम्मान में एक समारोह रखा गया। पूरा हाॅल अधिकारियों और कुछ रिश्तेदारों से खचाखच भरा था। कुंतल खोई-खोई दोहरे भाव से जूझ रही थी। गरीबी, ससुराल वालों की प्रताड़ना, घर-घर जाकर खाना बनाकर पाई पाई जोड़कर पढ़ना- एक-एक घटना किसी फ़िल्म की तरह दिमाग में चल रही थी, कि तभी कुंतल के नाम की एनाउंसमेंट हुई। मैडम प्लीज़ स्टेज पर आईये, पर कुर्सी से स्टेज तक पहुँचते कुंतल मानों एक सफ़र से गुज़र गई।

गरीब माँ-बाप की बेटी को अक्सर बोझ समझा जाता है, इसलिए बेटियों की पढ़ाई पर ज़्यादा खर्च नहीं करते, जितना जल्दी हो ब्याह दी जाती है। कुंतल दिखने में बहुत सुंदर थी, पढ़ने में होनहार थी, पर सरकारी स्कूल में बारहवी कक्षा में पास होते ही एक संपन्न परिवार में कुंतल की शादी करवा दी गई।

कुंतल की सुंदरता को देख ससुराल वालों ने घर में सजाने के लिए बहू तो बना ली, पर वो हक वो दर्ज़ा नहीं दिया, जिसकी हकदार थी। ससुराल में सब पढ़े-लिखे और अंग्रेजी बोलने वाले थे, तो पति राजन, कुंतल को अपने साथ किसी प्रसंग, पार्टी या समारोह में नहीं ले जाता। घर वाले भी सारी बातें अंग्रेजी में करते, ताकि कुंतल समझ न सके।

कुंतल सबके सामने खुद को बौना महसूस करती। सब अनपढ़ का ताना मारते, किसी को उसके अच्छे गुणों की कद्र नहीं थी। एक अंग्रेजी नहीं बोलने की वजह से घर में एक कामवाली बनकर रह गई थी। कुंतल राजन से बेइन्तहाँ प्यार करती थी, इसलिए सारी प्रताड़ना सह लेती थी। पर एक बार घर पर कोई मेहमान आए।

उन्होंने ने कुंतल को अंग्रेजी में कुछ पूछ लिया तो कुंतल जवाब नहीं दे पाई। उस पर राजन ने सबके सामने कुंतल को अनपढ़, गंवार और न जानें क्या-क्या बोलकर ऐसी चोट दी कि कुंतल उसी वक्त घर छोड़ कर निकल गई।

एक गर्ल्स हाॅस्टल का आसरा लिया। घर-घर जाकर खाना पकाने का काम किया और आहिस्ता-आहिस्ता तनतोड़ मेहनत और लगन से पढ़ाई-लिखाई की और खुद को प्रस्थापित किया। आज कलेक्टर बनने जा रही थी।

जानती थी कोई नहीं आएगा पर बेशक ससुराल वालों को निमंत्रण पत्रिका भेजने से नहीं चूकी। स्टेज पर चढ़ते हुए एक कोने में हल्की-सी नज़र ठहरी तो राजन खड़ा था, जिसे नफ़रत भरी नज़रों से देखकर भी अनदेखा करते कुंतल आगे बढ़ गई। अपने प्यार से चोट खाकर, आज ऐसी उभरी थी वो कुंतल, कि कथिर से कुंदन बन गई।

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