पड़ोसी देश श्रीलंका Sri Lanka में मचे राजनीतिक बवंडर का असर भारत की विदेशी कूटनीति के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। हाल में मालदीव संकट ने भारत की परेशानियां बढ़ाई थी और अब श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इस पर चर्चा हो रही है।
विदेश मंत्रालय ने Sri Lanka के
इस बीच विदेश मंत्रालय ने Sri Lanka श्रीलंका के राजनीतिक अस्थिरता पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि पड़ोसी देश में लोकतांत्रित मूल्यों और संवैधानिक प्रक्रिया का सम्मान किया जाना चाहिए। विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है- श्रीलंका में हुए हालिया राजनीतिक घटनाक्रम पर भारत करीबी से नजर रखे हुए है।
एक लोकतंत्र के तौर पर और करीबी पड़ोसी होने के कारण हम उम्मीद करते हैं कि वहां लोकतांत्रित मूल्यों और संवैधानिक प्रक्रियाओं का सम्मान किया जाना चाहिए। हम श्रीलंका के लोगों के लिए अपना विकास सहयोग करना जारी रखेंगे।
बता दें कि शुक्रवार को श्रीलंका में उस वक्त राजनीतिक बवंडर खड़ा हो गया जब पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री बनाकर उनकी सत्ता में वापसी कराई गई। श्रीलंका में राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरीसेना द्वारा महिंदा राजपक्षे को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया और रानिल विक्रमासिंघे को प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया।
गहमागहमी का माहौल
इससे राजनीतिक गहमागहमी का माहौल बन गया है। राष्ट्रपति सिरीसेना पहले से ही 16 नवंबर तक के लिए संसद को भंग कर चुके हैं। पहले चीन और पाकिस्तान के बाद मालदीव संकट ने भारत के लिए परेशानियां बढ़ाई हैं। अब श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता हो गई।
इस मामले पर भारत के विदेश मंत्रालय ने टिप्पणी की है। मंत्रालय का कहना है कि पड़ोसी देश में लोकतांत्रित मूल्यों और संवैधानिक प्रक्रिया का सम्मान किया जाना चाहिए। हालांकि, विक्रमासिंधे ने महिंदा राजपक्षे को उनकी जगह शपथ दिलाने को अवैध और असंवैधानिक बताया है। विक्रमासिंघे का कहना है कि 225 सदस्यों वाली संसद में उनके पास बहुमत है और उन्हें पद से हटाया जाना असंवैधानिक है।
महिंद्रा राजपक्षे की पहचान चीन के दोस्त और भारत से दूरी बनाकर रखने की रही है। मौजूदा राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना और रानिल विक्रमसंघे दोनों ही भारत समर्थक माने जाते रहे हैं। ऐसे में श्रीलंका का राजनीतिक बवंडर भारत के लिए बड़ा कूटनीतिक झटका माना जा रहा है।