रायबरेली। केन्द्र सरकार से लेकर यूपी सरकार तक के शासनादेश को लेकर देखा जाए तो कुम्भ में स्नान करने के लिए स्वच्छ जल पहुंचाने के लिए तरह तरह के दावों के साथ साथ प्रचार प्रसार तक मे करोंड़ो रूपए खर्च किये जा रहे है।लेकिन हकीकत मे उनके सारे दावों पर ऊंचाहार मे गिर रहे केमिकल युक्त जल व सीवर का पानी उस पतित पावनी गंगा के जल को दूषित कर रहा है। जिसका जिम्मेदार ग्रामीण एनटीपीसी को ही ठहरा रहे है। जिसको लेकर यहां पर उसके एक एक साक्ष्य उस ओर साफ साफ इंगित कर रहे है।
बताते चले कि जिला रायबरेली के रोहनिया ब्लाक के अन्तर्गत मिर्जापुर ऐहारी टेल है जिस टेल से गंगा तक गंदा नाला नामक नहर क्षेत्रीय किसानों के खेतों की रोपाई के लिए निकला है।जिस खेत की रोपाई करने के लिए निकले नाले पर यदि नजर डाला जाए तो ऊंचाहार नगर के निकट उस स्वच्छ जल मे जहर घोला जा रहा है।जिससे जल मे गिरने वाला एनटीपीसी प्लांट का कोयलायुक्त केमिकल मिक्स जल कुदाया जा रहा है। एनटीपीसी से निकलने वाला गंदा पानी दो नहरों में जाता है जिसमें एक से एनटीपीसी आवासीय परिसर का मलमूत्र व सीवर का पानी आता है। तो दूसरे नहर से एनटीपीसी प्लांट का केमिकलयुक्त काला पानी कुदाया जाता है। हैरत की बात ये है कि ये सबका पानी ब्लाक ऊंचाहार के गांव कल्यानी निकट गंगा मे कुदाया जा रहा है।गंगा मे कुदाने से पवित्र पावन गंगा का जल दूषित हो रहा है।गंगा का जल दूषित होने पर यही जल प्रयाग की ओर जाकर प्रयागगंगा घाट पर मिला है।जिससे साफ जाहिर है कि आने वाले कुम्भ में प्रयागगंगा मे केमिकलयुक्त व सीवर के जल से श्रद्धालु गंगा स्नान करेंगे।
इस गांव के किसान है प्रभावित
ऊंचाहार नगर के साथ साथ गांव छोटेमिया,पूरे भद्दा मियां, चौहान का पुरवा,पट्टी रहस, कैथवल, कल्यानी, हरबंधनपुर, खंदारी पुर, जब्बारीपुर,पूरे ननकू, अड्डा,सहावपुर, गंगा विषुनपुर, पूरे लोधन, हरसकरी, नरवापार, जमुनियाहर, अलीगंज, मलकाना, सरायपरसू, ऊंचा हार देहात, पिपरहा आदि समेत दर्जनों गांवों के किसान के लिए जल केमिकल युक्त होने पर मवेषियों को पानी पिलाने से लेकर खेतों की रोपाई तक के लिए नहर महज मुखदर्षक ही है क्योंकि केमिकलयुक्त पानी से बचने के लिए नहर का प्रयोग किसान नही करते है अधिकांष किसानों को अपनी जेबें ढीली करके प्राइवेट ट्यूबेलों से ही खेतों की रोपाई करने के लिए मजबूर है।
प्रदूषण विभाग मौन
कहने को तो सरकार ने प्रदूषण विभाग के अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक बैठा रखा है लेकिन वह सब सिर्फ मूकदर्शक ही है क्योंकि वे लोग न तो गंदा नाला का जल का जांच करवाया न ही किसानों के प्रदूषण से प्रभावित होने के बावजूद उनका दर्द बांटा है जिसके कारण किसानों की माने तो प्रदूषण विभाग आफिस मे बैठकर ही अपना पूर्ति कर लेते है बाकी एनटीपीसी अपना दामन बचाने के लिए यहां विभाग को आने नही देता है।