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एचसीएल फाउंडेशन और सेसमी ट्रस्ट के ‘डैडी कूल’ पहल की दूसरे चरण की शुरूआत

लखनऊ। बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य और सर्वांगीण विकास के लिए उनके जीवन में पिता की भागीदारी सुनिष्चित करने के लिये डैडी कूल पहल के दूसरे चरण की शुरूआत की गयी है। यह पहल एचसीएल फाउण्डेषन और सेसमी वर्कशॉप इण्डिया ट्रस्ट ने की है। ’डैडी कूल’ पहल के दूसरे चरण में शहर के डालीगंज और लव कुश नगर में रेहड़ी लगाने और कचरा उठाने का काम करने वाले 240 पिताओं को जोड़ने का लक्ष्य है।

एचसीएल फाउंडेशन और सेसमी ट्रस्ट के ‘डैडी कूल’ पहल की दूसरे चरण की शुरूआत

यह पहल विभिन्न कार्यशालाओं, आपसी संवाद और विशेष रूप से तैयार मल्टीमीडिया सामग्री के जरिये बच्चों की परवरिश की सकारात्मक रणनीतियां एवं सिद्धांत सीखने में इन पिताओं की मदद कर रही है। बच्चों की परवरिश और विकास में पिताओं की सकारात्मक भागीदारी में सुधार लाने से जुड़ी इस पहल पर एचसीएल फाउंडेशन की निदेशक निधि पुंढीर ने कहा, हम इस पहल के दूसरे चरण की शुरुआत को लेकर बेहद उत्साहित हैं। डैडी कूल पहल के जरिये, हम ऐसे पिताओं की जनजाति तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं, जो इस बात को मान्यता देते हैं कि बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य और सर्वांगीण विकास के लिए उनके जीवन में पिता की भागीदारी ज़रूरी है। यह समाज द्वारा निर्धारित पिता के पारंपरिक किरदार से कहीं ज्यादा अहम है।

सेसमी वर्कशॉप इंडिया ट्रस्ट की प्रबंध ट्रस्टी सोनाली खान कहती हैं, ’हम बच्चों को छोटी उम्र में किन गतिविधियों में शामिल करते हैं, यह उनकी सोच को आकार देने और व्यवहार को निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाता है। पिता को बच्चों के जीवन में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करने से न सिर्फ दोनों का रिश्ता अधिक मजबूत होता है, बल्कि बच्चों के सर्वांगीण सामाजिक एवं भावनात्मक विकास को भी बढ़ावा मिलता है और कम उम्र में ही उनके दिमाग में बोई जाने वाली रूढ़िवादी लैंगिक सोच को भी खारिज करने में मदद मिलती है।

इस पहल के तहत सेसमी वर्कशॉप इंडिया, पिताओं के लिए साप्ताहिक सत्र आयोजित करता है, ताकि वे बच्चों के साथ समय बिताने के महत्व को समझ सकें और अपनी सकारात्मक भागीदारी बढ़ा पाएं। इन सत्रों में पिताओं को विभिन्न मनोरंजक और ज्ञानपरक गतिविधियों में शामिल किया जाता है, जिनका इस्तेमाल वे बच्चों के जीवन में कर सकते हैं, ताकि उन्हें अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देने में मदद मिले।

यही नहीं, पहल में शामिल पिताओं को अपनी पत्नियों से बात करने के लिए प्रेरित किया जाता है, ताकि वे बचपन के उनके अनुभवों के बारे में जान सकें। इससे उन्हें यह समझने में मदद मिलेगी कि लड़कियों को किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, उनकी उम्मीदें और आकांक्षाएं क्या हैं। नतीजतन बेटियों और महिलाओं को उनके सपने पूरे करने में सहयोग दिलाना संभव हो पाएगा। वास्तव में ये सत्र बच्चों की देखभाल और घर में भागीदारी को लेकर ईमानदारी से अपनी सोच और राय जाहिर करने में भी पिताओं की मदद कर रहे हैं।

कार्यशाला की प्रमुख बातों और संदेशों को पिताओं के मन में पुख्ता करने के लिए, संस्था बच्चों की सकारात्मक परवरिश पर आधारित ऑडियो-विजुअल सामग्री तैयार कर रहा है, जिसे यूट्यूब, आईवीआरएस और सोशल मीडिया के जरिये पिताओं और परिवारों के बीच पहुंचाया जा रहा है। पहले चरण में ’डैडी कूल’ पहल फेसबुक और इंस्टाग्राम के जरिये दस लाख, जबकि यूट्यूब के माध्यम से पांच लाख लोगों तक पहुंच बनाने में कामयाब रही थी। हालांकि, दूसरे चरण में इस पहल का मकसद ऑनलाइन और लखनऊ में समुदायों के बीच किए जाने वाले कार्यों के जरिये 35 लाख से अधिक पिताओं तक पहुंच बनाने का है।

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