कर्नाटक उच्च न्यायालय ने तीन साल से अधिक समय तक अदालत के आदेश का पालन करने में विफल रहने को लेकर राज्य सरकार पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। मुख्य न्यायाधीश प्रसन्ना बी. वराले और न्यायमूर्ति कृष्ण एस. दीक्षित की खंडपीठ, अदालत की अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में आरोप लगाया गया कि राज्य उच्च न्यायालय के साढ़े तीन साल पुराने आदेश का पालन करने में विफल रहा, जिसमें सरकार को सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों के बीच वेतन समानता लागू करने का निर्देश दिया गया था। निष्क्रियता पर गंभीर आपत्ति जताते हुए उच्च न्यायालय ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग के छह अधिकारियों पर जुर्माना लगाया और निर्देश दिया कि इसे दो सप्ताह के भीतर वसूल किया जाना चाहिए।
अदालत ने सरकारी वकील की उस दलील को खारिज कर दिया, जिसमें अदालत के पहले के आदेश को लागू करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा गया था। उच्च न्यायालय ने हैरानी जताते हुए पूछा कि क्या राज्य सरकार ने ‘मजाक’ समझ समझ रखा है, उसने साढ़े तीन साल तक आदेश पर कार्रवाई क्यों नहीं की? उच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार इस बात से अनभिज्ञ है कि आम लोग अदालतों के बारे में क्या राय रखते हैं। अदालत ने कहा कि लोग अनावश्यक रूप से अदालतों का रुख नहीं करते और वे तभी अदालत आते हैं जब उनके पास कोई विकल्प नहीं बचता है। उसने कहा कि ऐसी स्थिति में भी सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश का पालन नहीं किया जाता। मूल याचिका एक वी.ए. नागम्मा द्वारा दायर की गई थी, जो कोनेना अग्रहारा में एक सहायता प्राप्त संस्थान, सर एम. विश्वेश्वरैया हाई स्कूल से द्वितीय श्रेणी सहायक लाइब्रेरियन के रूप में सेवानिवृत्त हुई थीं।
उन्होंने सरकारी संस्थानों में 250 से अधिक द्वितीय श्रेणी लाइब्रेरियन के समान लाइब्रेरियन ग्रेड के बराबर वेतन की मांग की थी। एकल न्यायाधीश पीठ ने उनकी याचिका स्वीकार कर ली थी और राज्य को उन्हें वेतन समानता देने का निर्देश दिया था। आदेश का पालन नहीं करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने दीवानी अवमानना याचिका दायर की। उनकी अवमानना याचिका पर सुनवाई करने वाली खंड पीठ ने सरकार को अनुपालन के लिए समय दिया था। मंगलवार को जब सरकार ने और समय मांगा तो उच्च न्यायालय ने दलील खारिज कर दी और जुर्माना लगा दिया।