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मानव अधिकार मनुष्य के पूर्ण शारिरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक हैं: डॉ अभय कुमार सिंह

अयोध्या। विश्व मानव अधिकार दिवस की पूर्व संध्या पर कामता प्रसाद सुंदरलाल साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो अभय कुमार सिंह ने कहा कि मानव अधिकार, वे अधिकार हैं जो मनुष्य के पूर्ण शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यावश्यक हैं। इन अधिकारों का उदभव मानव की अंतर्निहित गरिमा से हुआ है।

मानव अधिकार मनुष्य के पूर्ण शारिरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक हैं: डॉ अभय कुमार सिंह

विश्व निकाय ने 10 दिसम्बर, 1948 को मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को अंगीकृत करते हुए उद्घोषित किया। इस उद्घोषणा के अनुसार प्रत्येक मनुष्य और समाज का प्रत्येक अंग इन अधिकारों और स्वतंत्रताओं के प्रति सम्मान का भाव जागृत करेगा और उनके विश्वव्यापी अनुपालन को सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।

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विशिष्ट अतिथि प्रो अशोक कुमार मिश्रा ने कहा कि मानवाधिकार सभी मनुष्यों के सार्वभौमिक अधिकार हैं, चाहे उनकी जाति, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य राय, राष्ट्रीय या सामाजिक मूल, संपत्ति, जन्म या अन्य स्थिति कुछ भी हो।मनुष्य होने के नाते मानव अधिकार सहज रूप से प्राप्य हैं।समस्त मानव प्राणियों को एक दूसरे के मानव अधिकार की रक्षा करनी चाहिए।

मानव अधिकार मनुष्य के पूर्ण शारिरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक हैं: डॉ अभय कुमार सिंह

विभागाध्यक्ष प्रो अशोक कुमार राय ने कहा कि मानव अधिकार से प्राण, स्वतंत्रता, समानता और व्यक्ति की गरिमा से संबंधित ऐसे अधिकार अभिप्रेत हैं जो संविधान द्वारा प्रत्याभूत किये गए हों या अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदाओं में सन्निविष्ट और भारत में न्यायालयों के द्वारा प्रवर्तनीय हों।इन अधिकारों की मान्यता मानव मूल्यों को चरितार्थ करने के लिए मनुष्य के दीर्घकालिक संघर्ष के उपरांत हुई है। मानव अधिकार का विचार अनेक विधिक प्रणालियों में पाया जा सकता है।

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प्राचीन भारतीय प्रणाली, जो विश्व की सबसे प्राचीन विधिक प्रणाली है, में स्पष्ट रूप से मानव अधिकारों की संकल्पना अधिकारों के रूप में नहीं थी, केवल मनुष्य के कर्तव्यों को ही अधिकथित किया गया था। भारतीय विधिशास्त्रियों की मान्यता थी कि यदि सभी व्यक्ति अपने कर्तव्यों का सम्यक अनुपालन करने लगें तो सभी के अधिकार स्वयंमेव संरक्षित रहेंगे। प्राचीन भारत के धर्मसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों की विशाल संख्या में लोगों के कर्तव्यों का ही उल्लेख है। धर्म एक ऐसा शब्द है जिसका अर्थ बहुत विस्तृत है किन्तु उसका एक अर्थ कर्तव्य भी है।

मानव अधिकार मनुष्य के पूर्ण शारिरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक हैं: डॉ अभय कुमार सिंह

इस प्रकार समस्त धर्मसंहिताएं कर्तव्य संहिताएं हैं। कर्तव्यनिष्ठ को अधिकार सहज ही प्राप्त हो जाते हैं। यह समय की मांग है कि मानव अधिकार की भारतीय अवधारणा को वैश्विक धरातल पर स्वीकार किया जाए तभी इसे मूर्त रूप दिया जा सकेगा।

विधि छात्र आरपी सिंह ने भी अपने विचार अभिव्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन डॉ शशि कुमार ने किया इस कार्यक्रम में डॉ आशुतोष सिंह, डॉ आशुतोष त्रिपाठी, डॉ अखिलेश सिंह, डॉ रजनीश श्रीवास्तव, डॉ विवेक सहित छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

रिपोर्ट-जय प्रकाश सिंह

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