नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को डॉ बीआर अंबेडकर का हवाला देते हुए कहा कि ‘अगर राजनीतिक पार्टियां देश से ऊपर धर्म को रखेंगी तो हमारी आजादी दूसरी बार खतरे में पड़ जाएगी।’ मंगलवार को संविधान दिवस के मौके पर संसद के सेंट्रल हॉल में आयोजित कार्यक्रम के दौरान उपराष्ट्रपति ने चेतावनी देते हुए कहा कि देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं के खतरे के लिए रणनीति के तहत अशांत माहौल बनाया जा रहा है।
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‘हमारे लोकतांत्रिक मंदिरों की पवित्रता बहाल करने की जरूरत’
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि ‘लोगों की प्रभावी ढंग से सेवा करने के लिए रचनात्मक संवाद, बहस और सार्थक चर्चा के माध्यम से हमारे लोकतांत्रिक मंदिरों की पवित्रता को बहाल करने का समय आ गया है।’ संविधान ने लोकतंत्र के तीन स्तंभों – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को बनाया है, जिनमें से प्रत्येक की भूमिका परिभाषित है। धनखड़ ने कहा, ‘लोकतंत्र का सबसे अच्छा पोषण तब होता है जब इसकी संवैधानिक संस्थाएं अपने अधिकार क्षेत्र का पालन करते हुए तालमेल और एकजुटता से काम करें।’
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उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘हमारा संविधान मौलिक अधिकारों का आश्वासन देता है और मौलिक कर्तव्यों का निर्धारण करता है। ये सूचित नागरिकता को परिभाषित करते हैं। डॉ अंबेडकर ने चेतावनी दी थी कि आंतरिक संघर्ष, बाहरी खतरों से अधिक, लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं। हमें अपने मौलिक कर्तव्यों जैसे राष्ट्रीय संप्रभुता की सुरक्षा, एकता को बढ़ावा देना, पर्यावरण सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता आदि के प्रति भी प्रतिबद्ध होना चाहिए। हमें हमेशा अपने देश को सर्वोपरि रखना चाहिए।’
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डॉ आंबेडकर के बयान का किया उल्लेख
25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में डॉ आंबेडकर के संबोधन का हवाला देते हुए धनखड़ ने कहा, ‘मुझे सबसे ज्यादा परेशान ये बात करती है कि भारत ने न केवल एक बार अपनी आजादी खोई है, बल्कि उसने इसे अपने ही कुछ लोगों के विश्वासघात के कारण खोया है। क्या इतिहास खुद को दोहराएगा? यही विचार मुझे चिंता से भर देता है। यह चिंता इस तथ्य के अहसास से और भी गहरी हो जाती है कि जातियों और पंथों के रूप में हमारे पुराने दुश्मनों के अलावा, हमारे पास कई राजनीतिक दल होंगे, जिनके राजनीतिक पंथ अलग-अलग और विरोधी होंगे। क्या भारतीय देश को अपने पंथ से ऊपर रखेंगे या वे अपने पंथ को देश से ऊपर रखेंगे?’
उपराष्ट्रपति ने डॉ आंबेडकर के बयान का ही हवाला देते हुए कहा कि ‘मुझे नहीं पता। लेकिन इतना तो तय है कि अगर पार्टियां धर्म को देश से ऊपर रखेंगी तो हमारी आजादी दूसरी बार खतरे में पड़ जाएगी और शायद हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। ऐसे में हम सभी को पूरी तरह से सावधान रहना चाहिए। हमें अपने खून की आखिरी बूंद तक अपनी आजादी की रक्षा करने के लिए दृढ़ संकल्पित होना चाहिए।’ गौरतलब है कि संविधान सभा ने 26 नवंबर, 1949 को संविधान को अपनाया। यह 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। यही वजह है कि इस दिन को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है।