घर एवं बगीचों में सुंदर फूलों के लिए उगने वाली लहसुन बेल में स्वाइन फ्लू से मुकाबले की खूबियां मिली हैं। बेल के तने में मिलने वाला लेपाकॉन रसायन ना केवल एंटी बैक्टीरियल है बल्कि एंटी माइक्रोबियल है। लंबे समय से वैध्य और हकीम भी इस लहसुन बेल को गंभीर श्रेणी के बुखार में प्रयुक्त करते रहे हैं। बेल का कोई साइड इफेक्ट नहीं मिला है।
मेरठ कॉलेज में बॉटनी के असिस्टेंट प्रोफेसर और मेडिसनल एंड एरोमेटिक प्लांट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के वाइस प्रेसीडेंट डॉ. अमित तोमर ने ‘स्वाइन फ्लू इन्फेक्शन इन्हिबिशन बाइ मेनसुआ एलोसिया (लहसुन बेल)’ के अपने रिसर्च पेपर में यह दावा किया है। यह रिसर्च पेपर जर्नल ऑफ नॉन-टिंबर फॉरेस्ट प्रोडक्ट में भी प्रकाशित हो चुका है। डॉ. तोमर को वेस्ट यूपी में औषधीय पौधों के रिसर्च पर चौ.चरण सिंह विवि डीएससी (डॉक्टरेट इन साइंस) की डिग्री भी अवार्ड कर चुका है।
लहसुन बेल के नाम चर्चित इस बेल का वानस्पतिक नाम मेनसुआ एलोसिया है। इसके तने में लेपकॉन नामक रसायन मिलता है जो एंटी बैक्टीरियल और एंटी माइक्रोबियल है। तोमर ने वेस्ट यूपी के वैद्य और हकीमों से भी इस बेल के बारे में तथ्यों का पता लगाया। डॉ. अमित तोमर के अनुसार इस बेल से आसव, काढ़ा और मिलावट सहित कुल तीन विधियों से दवा तैयार की जाती है। इससे तैयार दवा शरीर के किसी अंग पर दुष्प्रभाव नहीं डालती। ऐसे में एंटी माइक्रोबियल और एंटी बैक्टीरियल प्रॉपटी के चलते यह बेल स्वाइन फ्लू में लड़ने में सहायक सिद्ध हो सकती है।
डॉ.अमित के अनुसार यह बेल वेस्ट यूपी के अनेक हिस्सों में सुंदरता के लिए उगाई जाती हैं। हालांकि, इस बेल के स्वाइन फ्लू के इलाज में सफल क्लीनिकल टेस्ट के अभी कोई प्रमाण नहीं हैं। गांवों के बुजुर्ग और वैद्य-हकीम इस बेल का विभिन्न प्रकार के बुखार में प्रयोग करते रहे हैं। इसमें जो गुण हैं वह स्वाइन फ्लू से भी लड़ने में कारगर हैं।