जौनपुर जिले की 367-मल्हनी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार धनंजय सिंह के आठवें राउंड में 12,400 मतों से आगे निकलते ही उनके समर्थकों के फोन बजने लगे। जौनपुर से लेकर लखनऊ, सुलतानपुर और दिल्ली में बैठे धनंजय सिंह के समर्थक उनके मतगणना में आगे निकलने की बधाइयां एक दूसरे को देने लगे। दूसरी तरफ मल्हनी विधानसभा में भी धनंजय सिंह के समर्थकों की तरफ से ढोल नगाड़े की व्यवस्था कर ली गयी।
इस विधानसभा सीट पर पूरे दमखम से उतरी भाजपा के उम्मीदवार मनोज सिंह की स्थिति बेहद खराब हो गयी। उनके वोटों के अनुसार मनोज सिंह चौथे पायदान पर आ गये। भाजपा उम्मीदवार अपनी तीसरी जगह बनाने के लिए बसपा उम्मीदवार जेपी दुबे से संघर्ष करते हुए दिखायी दिए।
उधर, पहले स्थान पर जगह बनाने के लिए समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार लकी यादव भी शुरु में संघर्ष कर रहे थे। आठवें राउंड की गिनती के बाद वह ज्यादा पिछड़ गये। फिर भी उनके समर्थकों का कहना है कि अभी आगे के राउंड में उनका आगे निकलना और जीतना तय है।
लखनऊ में धनंजय सिंह के समर्थक सोनू सिंह ने कहा कि वह जब से धनंजय सिंह को जानते हैं, उन्होंने लोगों को जोड़ने का काम किया है। इसके कारण वह उनकी जीत को लेकर पूरी तरह आशान्वित हैं। अधिवक्ता यज्ञमणि ने कहा कि मल्हनी में धनंजय सिंह की जीत को लेकर सभी निश्चिंत थे, उनके पास जाने वाला व्यक्ति कभी निराश नहीं लौटता था। इसके लिए जनता उन्हें कैसे निराश कर सकती थी।
कौन हैं धनंजय सिंह ?
धनंजय सिंह का जन्म बंसफा गांव में 20 अक्टूबर 1972 में हुआ था। धनंजय सिंह छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे। साल 2002 में पहली बार निर्दल प्रत्याशी के रूप में रारी विधानसभा से धनंजय चुनाव जीते। साल 2007 में जनता दल (यू) से फिर सपा के लाल बहादुर यादव को हराकर धनंजय ने जीत दर्ज की। इसके बाद बसपा ने चुनावी दांव खेलते हुए वर्ष 2009 में जौनपुर सदर लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया। यहां भी धनंजय सिंह ने भारी मतों से जीत दर्ज किया। साल 2009 में ही रारी विधानसभा के उपचुनाव में अपने पिता राजदेव सिंह को बसपा से जिताकर सदन तक पहुंचाया। सीट बंटवारे को लेकर हुए मनमुटाव के बाद बसपा ने धनंजय को न सिर्फ पार्टी से बाहर किया, बल्कि उन्हें जेल भी भेजा। जेल में रहते हुए साल 2012 में इन्होंने अपनी पत्नी डा। जागृति सिंह को नई बनाई गई मल्हनी विधानसभा से निर्दल चुनाव लड़ाया, लेकिन उनकी पत्नी चुनाव हार गईं। साल 2017 में बीजेपी की लहर में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खुद धनंजय सिंह चुनाव जीत नहीं सके। फिर उपचुनाव में उन्होंने अपनी किस्मत आजमाई, और वो जीतते हुए दिखाई दे रहे हैं।