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भारत पारम्परिक चिकित्सा का वैश्विक केंद्र

जब दुनिया में ज्ञान विज्ञान का सृजन नहीं हुआ था,तब भारत में चिकित्सा संबन्धी महान ग्रन्थों की रचना हो चुकी थी। शरीर की व्याधियों की पहचान नाड़ी के माध्यम से ही करने अविष्कार हो गया था। यह माना गया कि प्रकृति में ही औषधियां उपलब्ध है। इन सब पर व्यापक व गहन शोध हुआ होगा।

आयुर्वेद में स्वस्थ जीवन शैली के निर्देश, वात, पित्त, कफ जनित रोग और औषधियों का अद्भुत उल्लेख है। आयुर्वेद आज भी उतना ही प्रासंगिक है। केंद्र की वर्तमान सरकार ने आयुर्वेद चिकित्सा को बढ़ावा देने के अनेक प्रयास किये है। योग के साथ ही आयुर्वेद को भी विश्व स्तर पर प्रतिष्ठा मिल रही है। इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को दुनिया को पारम्परिक ओषधि व चिकित्सा का केंद्र बनाने का ऐलान किया है। नरेंद्र मोदी ने इसे भारत के लिए गर्व की विषय बताया है। कहा कि अब भारत से दुनिया के लिए इस दिशा में काम होगा।

नरेंद्र मोदी ने देश को दो आयुर्वेद संस्थान समर्पित किये। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि यह हमारी विरासत है। इससे पूरी मानवता की भलाई होगी। उन्होंने राजस्थान और गुजरात में दो आयुर्वेद संस्थानों का उद्घाटन किया। उन्होंने हमारा पारंपरिक ज्ञान, अब अन्य देशों को भी समृद्ध कर रहा है। ये संस्‍थान भारतीय आयुर्वेद शिक्षण एवं अनुसंधान संस्‍थान जामनगर और राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान जयपुर हैं। दोनों संस्थान देश में आयुर्वेद के प्रमुख संस्थान हैं। मोदी ने कहा कि बदलते समय के साथ आज हर चीज इंटीग्रेट हो रही है।

स्वास्थ्य भी इससे अलग नहीं है। इसी सोच के साथ देश आज इलाज की अलग अलग पद्धतियों के इंटीग्रेशन के लिए एक के बाद एक महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है। इसी सोच ने आयुष को देश की आरोग्य नीति का अहम हिस्सा बनाया है। देश में अब हमारे पुरातन चिकित्सीय ज्ञान-विज्ञान को वर्तमान सदी के आधुनिक विज्ञान से मिली जानकारी के साथ जोड़ा जा रहा है। नई रिसर्च की जा रही है। तीन साल पहले ही हमारे यहां अखिल भारतीय आयुर्वेदिक संस्थान की स्थापना की गई थी।

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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