अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत के दौरान भारत को सावधान रहना होगा, क्योंकि अमेरिका में फास्ट ट्रैक ट्रेड अथॉरिटी (Fast Track Trade Authority) नहीं होने के कारण समझौते में किसी भी बड़े बदलाव के लिए कांग्रेस की मंजूरी लेने की जरूरत पड़ सकती है। आर्थिक थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (Economic think tank Global Trade Research Initiative) ने दोनों देशों के बीच व्यापार पर वार्ता शुरू होने के खबरों के बीच यह बात कही है।
मुख्य सचिव से स्मार्ट एनर्जी काउन्सिल (ऑस्ट्रेलिया) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने की भेंट
जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि अमेरिका की पोस्ट-एफटीए सर्टिफिकेशन प्रक्रिया के कारण, अमेरिका को किसी भी समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भी फिर से मोलभाव करने का मौका मिल जाता है। बातचीत के दौरान अमेरिकी अधिकारी भारत से घरेलू कानून में बदलाव, नियामकीय सुधार और नीतिगत बदलाव से जुड़े ऐसे मांग कर सकते हैं, जिससे देश की संप्रभुता प्रभावित हो सकती है।
उन्होंने कहा, “भारत को अमेरिका से बातचीत में न केवल कूटनीतिक कौशल दिखाने की जरूरत है। इसके अलावे हमें अमेरिका की व्यापारिक नीतियों में मौजूद कानूनी असमानताओं से भी सतर्क रहना होगा।”
अमेरिका से बातचीत क्यों है भारत के लिए चिंता की बात?
अमेरिका में फास्ट ट्रैक ट्रेड अथॉरिटी नामक प्राधिकरण 2021 से समाप्त हो चुका है। इसके कारण, अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से किए गए किसी भी व्यापार समझौते को कांग्रेस में संशोधन, टलने या अस्वीकृति का सामना करना पड़ सकता है। दूसरी ओर, किसी भी व्यापार समझौते में अमेरिका एकतरफा यह तय करता है कि समझौते के तहत भागीदार देश ने अपनी सभी शर्तें पूरी की हैं या नहीं। अमेरिकियों ने प्रक्रिया का अतीत में कई देशों पर अतिरिक्त शर्तें थोपने के लिए इस्तेमाल किया है।