- गोरक्षपीठ की पांच पीढ़ियों ने लड़ी भगवान श्रीराम के अस्तित्व की लड़ाई
- गोरक्षपीठ के ब्रहम्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने श्रीराम जन्मभूमि के लिए 1934 से 1949 तक किया संघर्ष
- आज भी गोरक्षपीठ की अगुवाई में बन रहा है भव्य श्रीराम मंदिर
- जनवरी 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भगवान श्री रामल्ला की मूर्ति मूल स्थान पर करेंगे स्थापित
गृहमंत्री अमित शाह और श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सचिव चंपत राय की घोषणा के बाद से देश-विदेश के लाखों रामभक्तों में यह उम्मीद जगी है,कि जनवरी 2024 में वह भगवान श्रीराम लल्ला के दर्शन उनके मूल स्थान पर कर सकेंगे। आज भले ही मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के जन्भूमि पर उनके मंदिर निर्माण को लेकर लाखों राम भक्त उत्साहित और गदगद हैं। मगर अयोध्या में भगवान श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए गोरक्षपीठ ने जो संघर्ष किया है।
उस दास्तान को यह हिंदुस्तान युगों-युगों तक याद रखेगा, क्योंकि गोरक्षपीठ (Gorakshpeeth) की पांच पीढ़ियों ने अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर और उनके अस्तित्व की लड़ाई सड़क से लेकर धर्मसंसद तक लड़ी है। ब्रहम्मलीन पहले गुरु महंत अवैद्यनाथ,उनके गुरु महंत दिग्विजयनाथ और उनके पहले गुरु ब्रह्मनाथ, योगीराज बाबा गंभीरनाथ (Yogiraj Baba Gambhirnath) एवं महंत गोपालनाथ (Mahant Gopalnath) के समय से ही अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के लिए संघर्ष चला आ रहा था। गोरक्षपीठ के ब्रहम्मलीन महंत दिग्विजयनाथ (Brahmalin Mahant Digvijaynath) ने श्रीराम जन्मभूमि के लिए 1934 से 1949 तक लंबी लड़ाई लड़ी। 1935 में वह गोरक्षपीठाधीश्वर बने। उनकी अगुवाई में हिंदु समुदाय पहले से और अधिक एकजुट हुआ। वह श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन के अगुवा बन गये।
वर्ष 1937 में हिंदु महासभा में शामिल होने के बाद उन्होंने आंदोलन को धार देने के लिए हिंदु जनमानस में जोश भरा। नतीजतन अखिल भारतीय राम राज्य परिषद बैनर तले श्रीराम मंदिर आंदोलन और तेज होने लग गया। इस बीच अयोध्या में 22-23 दिसंबर 1949 की रात में रामल्ला प्राक्टय हुये और उनकी मूर्ति वहां पर दिखी तो हजारों की तादाद में पहुंचे श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना शुरू कर दी। इस दौरान ब्रहम्मलीन महंत दिग्विजयनाथ पूरी सिद्दत के साथ वहां पर मौजूद रहे।
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इसके बाद वह अपने जीवन के अंतिम सांस तक भगवान श्रीराम मंदिर की मुक्ति के लिए संघर्ष करते रहे और इस अधूरे सपने के साथ 28 सितंबर 1969 को उन्होंने समाधि ली। उनके बाद महंत अवैद्यनाथ गोरक्षपीठाधीश्वर बने। यह पदवी पाते ही उन्होंने एलान किया,जब तक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम मंदिर को मुक्त नहीं करा लेते तब तक वह चैन से नहीं बैठेंगे। इसके लिए उन्होंने राजनीति के साथ हिंदु समुदाय के विश्वास को अपना प्रमुख हथियार बनाया और संघर्ष के मैदान में वह उतर पड़े।
काफी संघर्ष के बाद उन्हें लगा। भगवान श्रीराम मंदिर मुक्ति आंदोलन में वह राजनीत के कारण उतना समय नहीं दे पा रहे हैं,जितना देना चाहिये। फिर क्या था? उन्होंने राजनीत से सन्यास ले लिया और पूर्णतया अपने आप को भगवान श्रीराम मंदिर आंदोलन (Shri Ram Janmabhoomi Mandir movement)के लिए समर्पित कर दिया। वर्ष 1984 में देश के सभी शैव-वैष्णव और सभी धर्माचार्यों को वह एक मंच पर लाने में सफल हुये।
इस दौरान श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया गया,जिसके महंत अवेद्यनाथ आजीवन अध्यक्ष रहे। इस दौरान 24 सितंबर 1984 को बिहार के सीतामढ़ी से भगवान श्रीराम जानकी रथयात्रा (Rath Yatra) का आगाज हुआ,जो 6 अक्टूबर 1984 को अयोध्या पहुंची। रास्ते भर राम भक्तों ने रथयात्रा का अभूतपूर्व स्वागत किया। अगले दिन 7 अक्टूबर 1984 को अयोध्या में सरयू नदी के किनारे बने घाटों पर हजारों रामभक्तों ने श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति का संकल्प लिया।
31 अक्टूबर और एक नवंबर 1985 को कर्नाटक के उडुपी में आयोजित धर्म संसद के दूसरे अधिवेशन में 175 संप्रदायों के 850 से अधिक धर्माचार्यों ने जोरदार हुंकार भरी और अल्टीमेटम दिया कि अगर 9 मार्च 1986 से पहले श्रीराम जन्भूमि मंदिर का ताला नहीं खोला गया तो निर्धारित तिथि से वह गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ (Gorakshpeethadhishwar Mahant Avaidyanath)की अगुवाई में सत्याग्रह करेंगे।
बहरहाल 01 फरवरी 1986 को विवादित ढांचे का ताला खोलने का जिला जज ने आदेश दिया और गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ की मौजूदगी में ताला खोला गया। वर्ष 1996 में गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ ने योगी आदित्यनाथ को अपने उत्तराधिकारी का दायित्व सौंपा। इसके बाद योगी आदित्यनाथ ने पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक हिंदु महासम्मेलन और विराट हिंदु समागम कराये।
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विश्व हिंदु परिषद के नेता अशोक सिंघल ने उनका पूरा साथ दिया। योगी आदित्यनाथ सड़क से लेकर संसद तक भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम मंदिर आंदोलन की आवाज बन गये और आज भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर गोरक्षपीठाधीश्वर की अगुवाई में भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है और अगले वर्ष प्रधानमंत्री भगवान श्रीराम लल्ला की मूर्ति मूल स्थान पर स्थापित करेंगे। संयोग यह है कि गोरक्षपीठाधीश्वर यूपी के मुख्यमंत्री हैं।