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अमृत महोत्सव में पंत पथ की प्रेरणा

 डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

देश इस समय स्वतन्त्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है। इसके माध्यम से स्वतन्त्रता संग्राम के अनेक धूमिल और अनछुए पक्ष भी उजागर हो रहे है। अनेक प्रचलित मान्यताएं बदल रही हैं। इस क्रम में दस सितंबर को गोविंद बल्लभ पंत की जन्म जयंती के आयोजन किया गया।

उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री ने प्रथम मुख्यमंत्री की जयंती को उत्साह के साथ आयोजित कराने का निर्णय किया था। इसके माध्यम से विशेष रूप में विद्यार्थियों को जोड़ने का निर्णय किया गया था।

जिससे विद्यार्थी व युवा वर्ग स्वतन्त्रता संग्राम और बाद में बेहतर कार्य करने वाले महापुरुषों के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकें। गोविंद बल्लभ पंत ऐसे ही महापुरुष थे। जिन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में उल्लेखनीय योगदान दिया। संविधान निर्माण से लेकर मुख्यमंत्री व केंद्रीय गृहमंत्री में रूप में अपने दायित्वों का कुशलता के साथ निर्वाहन किया।

काकोरी ट्रेन एक्शन के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों की उन्होंने अन्य वकीलों के साथ पैरवी की थी। वह उस समय वे नैनीताल से स्वराज से लेजिस्लेटिव कौन्सिल के सदस्य भी थे। राम प्रसाद बिस्मिल व उनके तीन सहयोगियों को फांसी से बचाने के लिये उन्होंने पण्डित मदन मोहन मालवीय के साथ वायसराय को पत्र लिखा था।

साइमन कमीशन के बहिष्कार और नमक सत्याग्रह में वह सक्रिय रूप में सम्मलित रहे। इस कारण उन्हें जेल में रहना पड़ा। 1937 से 1939 तक वह संयुक्त प्रान्त पहले मुख्य मन्त्री बने। पुनः1946 से 15 अगस्त 1947 तक संयुक्त प्रान्त के मुख्य मन्त्री रहे। संयुक्त प्रान्त के पुनर्गठन से उत्तर प्रदेश की स्थापना की गई। गोविंद बल्लभ पंत तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 26 जनवरी 1950 से लेकर 27 दिसम्बर 1954 तक मुख्य मन्त्री रहे। 1955 से लेकर 1961 तक वह केंद्र में गृहमंत्री रहे। 1957 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोक भवन,लखनऊ में भारत रत्न पं.गोविंद बल्लभ पंत की जयंती के अवसर पर उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि स्व.पंत जी ने प्रदेश के विकास को एक नई दिशा देने का कार्य किया था। यह सर्वविदित है कि प्रदेश के राजकीय चिह्न में गंगा यमुना,प्रयागराज का संगम व मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जी का धनुष बाण अंकित है।

पं. गोविंद बल्लभ पंत जी ने ही मुख्यमंत्री के रूप में इस चिह्न की स्वीकृति दी थी। असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन आदि सभी में वह सहभागी रहे। देश की स्वतंत्रता हेतु प्रत्येक अभियान में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेना पं. गोविंद बल्लभ पंत जी ने अपने जीवन का एक हिस्सा बना लिया था।

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