चेन्नई। आध्यात्मिक नेता सद्गुरु जग्गी वासुदेव की अगुवाई वाला मशहूर ईशा फाउंडेशन एक बड़े विवाद में फंस गया है। फाउंडेशन पर एक रिटायर्ड प्रोफेसर ने आरोप लगाया है कि उनकी दो बेटियों को जबरन आश्रम में रखा गया था। यह मामला अदालत तक पहुंच गया है।
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मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में ईशा फाउंडेशन को फटकार लगाई थी और पूछा था कि वह महिलाओं को मोह माया से दूर बैरागियों की तरह रहने के लिए प्रेरित क्यों करते हैं, जबकि खुद उनकी बेटी शादीशुदा है। हालांकि, अब फाउंडेशन ने सफाई दी है। उसका कहना है कि हम किसी से शादी करने या भिझु बनने के लिए नहीं कहते हैं। यह एक व्यक्तिगत पसंद है।
‘ये व्यक्तिगत विकल्प हैं’
ईशा फाउंडेशन ने कहा, ‘ईशा फाउंडेशन की स्थापना सद्गुरु ने लोगों को योग और आध्यात्मिकता प्रदान करने के लिए की थी। हमारा मानना है कि वयस्क व्यक्ति को अपना रास्ता चुनने की स्वतंत्रता और बुद्धि है। हम लोगों से शादी करने या साधु बनने के लिए नहीं कहते क्योंकि ये व्यक्तिगत विकल्प हैं। ईशा योग केंद्र में हजारों ऐसे लोग रहते हैं जो साधु नहीं हैं और कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने ब्रह्मचर्य या साधुत्व अपनाया है।’
भिक्षुओं ने खुद को न्यायालय के समक्ष पेश किया
उसने कहा कि इसके बावजूद याचिकाकर्ता चाहता था कि भिक्षुओं को न्यायालय के समक्ष पेश किया जाए। भिक्षुओं ने खुद को न्यायालय के समक्ष पेश किया हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे अपनी इच्छा से ईशा योग केंद्र में रह रहे हैं। अब जबकि मामला न्यायालय के संज्ञान में आ गया है, हमें उम्मीद है कि सत्य की जीत होगी और सभी अनावश्यक विवादों का अंत होगा।
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हमारे परिसर में घुसने की कोशिश की थी: फाउंडेशन
उसने आगे कहा कि इससे पहले, इसी याचिकाकर्ता ने अन्य लोगों के साथ मिलकर ईशा फाउंडेशन द्वारा बनाए जा रहे श्मशान घाट के बारे में तथ्यों की जांच करने के लिए एक तथ्य खोज समिति होने के झूठे बहाने से हमारे परिसर में घुसने की कोशिश की थी और फिर ईशा योग केंद्र के लोगों के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज कराई थी।
इनके खिलाफ, मद्रास के हाईकोर्ट ने पुलिस द्वारा अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने पर रोक लगा दी है। इसके अलावा, फाउंडेशन के खिलाफ कोई अन्य आपराधिक मामला नहीं है। जो कोई भी फाउंडेशन के खिलाफ गलत जानकारी फैलाने में लिप्त है, उसके खिलाफ देश के कानून के अनुसार सख्ती से निपटा जाएगा।