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जनसुनवाई पोर्टल बना मजाक, आरोपी से ही लगवाई जाती है रिपोर्ट

फतेहपुर। शासन की अति महत्वाकांक्षी योजना योजनाओं में से एक प्रमुख योजना जनसुनवाई पोर्टल (Jansunwai portal) है। यह पोर्टल जिस नियत से बनाई गयी थी, उसमें अब ग्रहण सा लगने लगा है, क्यूंकि राजस्व विभाग (Revenue Department) की अनदेखी सामने आयी है। जनसुनवाई पोर्टल का मकसद राज्य के जिन लोगों का किसी सरकारी विभाग (Government Department) से संबंधित कोई कार्य नहीं हो रहा है तथा कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, वह यूपी जनसुनवाई पोर्टल पर अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं।

जनसुनवाई पोर्टल में एक बार आपकी शिकायत दर्ज होने के बाद संबंधित विभाग कम से कम समय में आपकी समस्या का निवारण करेगा और जब तक आपकी शिकायत का निवारण नहीं हो जाता है तब तक आप ऑनलाइन माध्यम से कम्प्लेन स्टेटस देख सकते हैं। जनसुनवाई की सुविधा को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन नंबर 1076 भी शुरू किया है। लेकिन इन बातों का जमीनी स्तर पर अब अर्थ ही बदल सा गया है, क्योंकि जिस अधिकारी एवं कर्मचारी पर आरोप होता है, जांच भी उसी से कराई जाती है। इससे न्याय मिलना नामुमकिन सा हो गया है।

वैसे ये बात भी राजस्वकर्मियों खासकर कानूनगो एवं लेखपाल के लिए आम है कि क्षेत्र के लेखपालगण राजस्व कार्य से ज्यादा प्लॉटरों के हिमायती बने हुए हैं और तो और चर्चा ये भी आम है कि प्लॉटरों के साथ प्लॉटिंग के धंधे में कई लेखपालों का शेयर भी है, अगर इन लेखपालों की संपत्ति की जांच किसी केंद्रीय जांच एजेंसी से कराई जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। आम लोगों का मानना है कि जमीनी विवाद में लेखपालों का बड़ा योगदान होता है।

ताजा मामला खागा तहसील क्षेत्र के राजस्व क्षेत्र अफोई के राजस्व ग्राम शोहदमऊ का है, जहाँ पीड़िता खुशनुमा बानो पत्नि एकलाख अहमद ने हल्का लेखपाल विनय कुमार सिंह पर निर्माण के एवज में एक लाख रुपए बतौर रिश्वत मांगने का आरोप लगाते हुए कई अन्य बिन्दुओ पर जनसुनवाई पोर्टल के माध्यम से 5 फरवरी 2025 को शिकायत किया था, जिसका सन्दर्भ संख्या – 40017225003376 राजस्व एवं आपदा विभाग को जांच हेतु प्रेषित हुआ था।

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इस पर तहसीलदार खागा द्वारा गत 4 मार्च को आख्या लगाई गई, लेकिन आख्या की रिपोर्ट स्वयं हल्का लेखपाल विनय कुमार सिंह द्वारा बनाई गई एवं क्षेत्रीय राजस्व निरीक्षक स्वतंत्र कुमार द्वारा प्रेषित की गई है अर्थात जिसके ऊपर आरोप है, उसी के द्वारा जांच कराकर आख्या लगवाई लगी है, जिसमें हल्का लेखपाल ने स्वयं के ऊपर लगे आरोपों को लिखा है कि आरोप मनगढ़ंत एवं निराधार हैं जिसको तहसीलदार द्वारा जनसुनवाई पोर्टल पर जवाब में यही रिपोर्ट अपलोड भी कर दी गई है।

अब सवाल उठना लाजमी है कि क्या आरोपी लेखपाल ने निष्पक्ष होकर आख्या रिपोर्ट लगाई होगी? क्या आरोपी लेखपाल से ही जांच कराया जाना उचित था? क्या जांच के नाम पर मजाक नहीं किया गया है? क्या ऐसे कार्यों पर रोक नहीं लगनी चाहिए? क्या इस बड़ी गलती की जिम्मेदारी उपजिलाधिकारी या तहसीलदार लेंगे?

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