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मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र (MMTTC), LU एवं UGC लघु अवधि पाठ्यक्रम पर आयोजित सत्र संपन्न

लखनऊ। मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र (MMTTC), लखनऊ विश्वविद्यालय (Lucknow University) द्वारा यूजीसी के मार्गदर्शन में NCCIP-AICTE के सहयोग से आयोजित लघु अवधि पाठ्यक्रम के छठे दिन शनिवार को मानव-मानव संबंधों, मनुष्य के रूप में मानव (human as a human,) , संपूर्ण अस्तित्व में मनुष्य की भूमिका (Role of Human In Whole Existence) और आगे के मार्ग पर अत्यंत संवादात्मक सत्र आयोजित किए गए।

डॉ राजुल अस्थाना ने शरीर में समरसता – स्वयम् में व्यवस्था विषय पर पाँच दिनों की चर्चाओं का सार प्रस्तुत करते हुए आगे का मार्गदर्शन दिया। इस विषय के गहरे पहलुओं ने प्रतिभागियों में गहरी आत्म-पर्यवेक्षण की प्रक्रिया को प्रेरित किया। सत्र को शहरी और ग्रामीण दोनों संदर्भों से लिए गए वास्तविक जीवन के उदाहरणों और केस स्टडीज़ से समृद्ध किया गया। एक प्रमुख सीख यह थी कि आत्मा (स्वयं) मानव अस्तित्व का केंद्र है और शरीर का पोषण, संरक्षण और उचित उपयोग करने की ज़िम्मेदारी निभाता है। इसके साथ ही, परिवार, समाज, प्रकृति और समग्र अस्तित्व में अपनी भूमिका को समझना आवश्यक है।

डॉ अस्थाना ने यह भी चर्चा की कि यदि इस विषयवस्तु को शिक्षा में शामिल किया जाए तो यह मानव को अमानवीय चेतना से मानवीय चेतना की ओर ले जाने में सहायक हो सकता है। इस विचार ने प्रतिभागियों के व्यक्तिगत अनुभवों से जुड़ते हुए एक गहन और विचारोत्तेजक चर्चा को प्रेरित किया।

दिन का समापन आत्म-मूल्यांकन सत्र के साथ हुआ, जहाँ प्रतिभागियों ने विस्तार से बताया कि वे अपने विचारों और जीवन शैली को लेकर अधिक जागरूक हुए हैं। पूरे पाठ्यक्रम का सार एक वाक्य में समाहित किया जा सकता है, जिसे पूरे छह दिनों में बार-बार दोहराया गया: अस्तित्व सह-अस्तित्व है।

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कई प्रतिभागियों ने अपने विचार साझा किए, जिनमें डॉ नीलकांत, डॉ सौमामा बिस्वास, डॉ जगत सिंह, डॉ रज़िया, डॉ अरूप कुमार, डॉ रमा जैन और डॉ मुदस्सिर हसन आदि शामिल थे। इस पाठ्यक्रम में भारत के विभिन्न हिस्सों से प्रतिभागियों ने भाग लिया।

इस पाठ्यक्रम के सफल आयोजन में डॉ. उपासना मिश्रा, डॉ गौरव मिश्रा, अनिल सिंह राठौर, डॉ परिक्षित, डॉ एच के राय, डॉ निधि चिराग और संपूर्ण यूएचवी टीम का निःस्वार्थ सहयोग सराहनीय रहा। प्रतिभागियों के आत्म-साक्षात्कार और अनुभवों को सुनकर यह विश्वास जगा कि आने वाले समय में मानव चेतना की ओर बढ़ना संभव है, जिससे संपूर्ण विश्व वसुधैव कुटुंबकम की भावना को साकार कर सकेगा।

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