Ayodhya,(जय प्रकाश सिंह)। डॉ राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय (Dr Ram Manohar Lohia Avadh University) के व्यवसाय प्रबंधन एवं उद्यमिता विभाग में ‘डिजिटलाइजेशन एवं बिजनेस इनोवेशनः ए रोड अहेड टू विकसित भारत 2047’ (Digitalization and Business Innovation: A Road Ahead to Developed India 2047) विषय पर दो दिनी अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतिम दिन के मुख्य अतिथि आईआईटी मंडी के मानद निदेशक प्रो लक्ष्मीधर बेहरा (Prof Laxmi Dhar Behera) ने भारतीय ज्ञान परंपरा पर प्रकाश डालते हुए कहाकि भारतीय ज्ञान परंपरा करोड़ों वर्ष पुरानी है।
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भगवान कृष्ण ने अर्जुन से पहले सूर्यदेव को ज्ञान दिया था। भगवान सूर्य ने यह ज्ञान अपने पुत्र वैवस्वत मनु को दिया। वैवस्वत मनु का 28 कल्प चल रहा है और प्रत्येक कल्प में 43 लाख वर्ष होते हैं। इस हिसाब से भारतीय ज्ञान परंपरा कई करोड़ वर्ष पुरानी है। इसलिए विज्ञानियों को भारतीय ज्ञान परंपरा पर अध्ययन करना चाहिए।
उन्होंने कहा, नवाचार लोक मंगल और भारतीय मूल्यों के अनुसार होना चाहिए। संगोष्ठी में प्रो बेहरा ने कहाकि मच्छर मारने के लिए डीडीटी की खोज करने वाले को नोबल पुरस्कार मिला, लेकिन 50 साल से ज्यादा हो चुके हैं, अधिकांश पश्चिमी देशों ने इसका उपयोग बंद कर दिया। भारतीय ज्ञान परंपरा में इतनी धरोहर है कि यदि उस पर प्रकाश डाला जाए तो भारत को विश्व गुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता। आप्लास्टिक एनीमिया में रक्त बनना बंद हो जाता है और उपचार सिर्फ बोन मैरो ट्रांसप्लांट है, लेकिन भक्ति वेदांत विवि के आयुर्वेदिक चिकित्सालय में इस रोग के आयुर्वेदिक उपचार पर शोध हो रहा है, जिसमें नीम, गिलोय और आंवला के रस का प्रयोग किया जा रहा है।
बरेली विवि के प्रो त्रिलोचन शर्मा (Prof Trilochan Sharma) ने कहाकि कोरोना जैसी विषय परिस्थितियों के बावजूद भारत की जीडीपी ग्रोथ की दर छह से सात प्रतिशत तक रही। इसका कारण यह है कि भारत बहुत बड़ा बाजार है, जबकि कोरोना के अलावा भी दुनिया में अनेक चुनौतियां हैं। कई देश युद्ध में फंसे हैं और कई देशों की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर चुकी है। विवि के प्राक्टर प्रो एसएस मिश्र ने कहाकि भारतीय ज्ञान परंपरा में ज्ञान जड़ों से जुड़ा हुआ है। भारतीय परंपरा संपूर्ण व्यक्तित्व के निर्माण पर जोर देती है।
विभागाध्यक्ष प्रो हिमांशु शेखर सिंह (Prof Himanshu Shekhar Singh) ने अतिथियों का स्वागत किया। कहा, भारतीय ज्ञान परंपरा में अभी ऐसे अनेक तथ्य हैं, जिनका सामने आना बाकी है और वे 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में लाने में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होंगे। इस अवसर पर प्रो शैलेंद्र वर्मा, प्रो राना रोहित सिंह, डा गीतिका श्रीवास्तव, डा अनुराग तिवारी, डा आशुतोष पांडेय, डा महेंद्र पाल, डा प्रवीण राय, डा दीपा सिंह, डा रविंद्र भारद्वाज, डा अंशुमान पाठक, डा निमिष मिश्रा, डा राकेश कुमार, डा आशीष पटेल, डा विवेक उपाध्याय, डा अनीता मिश्रा, डा संजीत पाण्डेय, सूरज सिंह, श्याम श्रीवास्तव आदि उपस्थित रहे।