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ज्योति

ज्योति घर गृहस्थी में पूरी तरह रम चुकी थी। उसे घर परिवार का ध्यान रखना, उनकी पसंद का खाना बनाना सभी कुछ अच्छा लगता था। क्यूंकि ज्योति की काकी ने उसको आठवीं के बाद सिर्फ घर परिवार का कैसे ध्यान रखना? खाना बनाना बस इतना ही उसे सिखाया था। पढ़ाई बंद तो बाहर की दुनियाँ से ज्यादा नाता ही नहीं रहा। सत्रहवाँ खत्म होती ही डोली में बैठा दिया था।
अगर घर के किसी भी  सदस्य की तबियत ख़राब होती तो वह उसका विशेषकर ध्यान रखती। ज्योति जैसा नाम वैसी ही गुणी थी, वह घर की ज्योत थी,ज्योति के पति रमेश सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल थे, इसलिए रमेश के स्कूल जाने वाले  टाइम का विशेष ध्यान रखती थी। दो बेटे थे, बड़ा वाला बेटा कॉलेज में, और छोटा बेटा हाईस्कूल में पढ़ता था। घर में बुजुर्ग सासु जी भी थी, जो कि अपना अधिकतर समय टीवी देखने में बिताती थी। सभी कुछ अच्छा चल रहा था। ‘किन्तु समय कब एक जैसा चलता है’। कुछ समय से ज्योति को स्वयं का स्वास्थ्य कुछ अच्छा नहीं लग रहा था।
कुछ काम करती तो थकान महसूस होने लगती, ज्योति ने रमेश से कहा, “आजकल कुछ दिनों से थकान अधिक महसूस होने लगी है”, तो रमेश कहता आराम कर लिया करो, यह कहकर अपने टीवी देखने में व्यस्त हो जाता, इसी तरह ज्योति के कुछ दिन तो निकल गए, किन्तु अब ज्योति को कभी सर दुखना, कभी हाँथ पैर में दर्द, कम्पन  इस तरह की कुछ कुछ परेशानियां बढ़ने लगी, वह रमेश को जब भी अपनी तबियत के बारे में बोलती तो रमेश मुंह बना कर बोलता “तुम कब ठीक रहती हो.”। “तुम्हें तो कुछ न कुछ तो होता ही रहता है”। “लाओ जल्दी खाना दो मुझे” जाना है। ज्योति मायूस होकर चुप हो जाती है,पति को खाना परोस कर, फिर वह पेनकिलर दवाई खाकर धीरे धीरे अपने घर के काम निपटाने लग जाती, वह दिन में कभी आराम करती तो बेटा चिल्लाते हुए बोलता “क्या माँ जब देखो तुम पड़ी रहती हो.”!
वह थकी सी उठ कर पूछती क्या हुआ ? बेटा बोलता मुझे खाना निकाल दो !, वह बेटे को खाना परोसती, फिर धीरे -धीरे घर के दूसरे काम में लग जाती, ज्योति का चेहरा दिनों दिन मुरझाने लगा, उसकी रंगत फीकी सी होने लगी, रमेश शाम को जब घर आता तो उसका मुरझाया चेहरा देख बोलता “अच्छे से नहीं रह सकती हो क्या” ? “घर में तुम्हें हल नहीं चलाने पड़ते’ जो ऐसी थकी सी दिख रही हो.”., यह सुन वह अंदर ही अंदर टूट गई, वह झूठी मुस्कान के साथ बोली ‘कुछ नहीं जी…, बस ऐसे ही अभी चाय बनाती हूँ,’ तुम कपड़े चेंज करो..।
वह सभी के लिए चाय बनाती, फिर खाना बनाने की तैयारी करने लग जाती है, आज ज्योति को पेनकिलर  दवाई का भी असर नहीं हो रहा था। वह अपने दर्द को छिपाते हुए सबको खाना खिलाती, आज उसका खाना खाने का मन भी नहीं कर रहा था, जैसे तैसे थके हारे उसने घर का काम निपटाया, थोड़ा चक्कर आया तो वह कुर्सी पर बैठने वाली थी किन्तु वह नीचे गिर पड़ी, जब सभी को आवाज़ आई, तो सभी दौड़ कर ज्योति के पास आ गए, तुरंत डॉक्टर के पास ले गए, डॉक्टर ने जब पूरी जाँच की तो अत्यधिक सीरियस हालत में बताया! यह सुन पति और बच्चे चिंतित हो गए, रमेश को ज्योति के वो शब्द आँखों में घूम गए.., “तुमको को तो कुछ न कुछ होता ही रहता है” काश उस समय मैं ज्योति की हालत को समझ लेता।
      वैदेही कोठारी

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