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ब्रिटिश लूट का काकोरी प्रतिवाद

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

आजादी के अमृत महोत्सव शुभारंभ हेतु पचहत्तर स्थलों को विशेष रूप से चयनित किया गया था। इसमें लखनऊ के काकोरी भी शामिल था। अंग्रेजों ने इसे डकैती व लूट की तरह प्रचारित किया। लेकिन यह क्रांतिकारियों की देशभक्ति की मिसाल थी। वह अपना अंजाम जानते थे। लेकिन अपना जीवन देश के समर्पित करने एक बड़ा सन्देश देना चाहते थे। वह भारतीयों को जगरुक करना चाहते थे।

यह बताना चाहते थे कि भारत के खजाने का उपयोग अंग्रेज अपनी सत्ता मजबूत बनाने के लिए करते है। ब्रिटेन में प्राकृतिक संसाधनों का नितांत अभाव था। इसलिए उनमें अन्य देशों में पहुंच कर आर्थिक प्राकृतिक संसाधनों के लूट की प्रवत्ति विकसित हुई। भारत में भी वह इसी नीति पर अमल कर रहे थे। इसका अहिंसक व क्रांतिकारी तरीके से विरोध किया गया।

स्वदेशी व चरखा आदि उनके लूट तंत्र के विरुद्ध प्रतीक थे। क्रांतिकारियों ने अपने ढंग से विरोध किया। काकोरी घटना इसका प्रमाण रही। अंग्रेजों ने इसे लूट की घटना बता कर प्रचारित किया। जबकि यह अंग्रेजों की भारत में चल रही लूट का प्रतिवाद था।

क्रांतिकारी यह बताना चाहते थे कि जिस खजाने को अंग्रेज अपना बता रहे है,वह भारतीयों का है। उनके ही कर लगान आदि से यह संग्रह होता है। इसका प्रयोग अंग्रेज आपने हित में करते है। क्रांतिकारी अंग्रेजों को सीधी चुनौती देना चाहते थे। इस घटना ने देश में अंग्रेजों के विरुद्ध माहौल बनाया। असहयोग आंदोलन की समाप्ति के बाद जो निराशा आई थी,उसको भी दूर करने में सफलता मिली। नौ अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने काकोरी में एक ट्रेन से इस खजाने को अपने कब्जे में लिया था। ये क्रांतिकारी हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के सदस्य थे।

घटना के दो वर्ष पहले इसकी स्थापना शचीन्द्रनाथ सान्याल ने की थी। काकोरी कांड का ऐतिहासिक मुकदमा लगभग दस महीने तक लखनऊ की अदालत रिंग थियेटर में चला। वर्तमान में लखनऊ का प्रधान डाकघर है। रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां को फांसी की सजा सुनाई गई। शचीन्द्रनाथ सान्याल को कालेपानी और मन्मथनाथ गुप्त को चौदह साल की सजा हुई थी। योगेशचंद्र चटर्जी, मुकंदीलाल,गोविन्द चरणकर,राजकुमार सिंह,रामकृष्ण खत्री को दस दस साल की सजा हुई।

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