बंगलूरू: कर्नाटक लोकायुक्त एस.पी. उदेश ने गुरुवार को मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) घोटाले के मामले 8,000 पन्नों की अंतरिम बी रिपोर्ट सौंपी। अधिकारियों के मुताबिक, लोकायुक्त कर्मी मुडा जांच से जुड़े दस्तावेजों के चार बैग लेकर जन प्रतिनिधि अदालत लेकर पहुंचे।
इस घटनाक्रम पर लोकायुक्त एस.पी.उदेश ने कहा, ‘जांच प्रक्रिया के अनुसार आगे बढ़ रही है। पेश किए गए दस्तावेजों जांच के लिए महत्वपूर्ण हैं।’ इससे पहले, लोकायुक्त पुलिस ने शिकायतकर्ता स्नेहमयी कृष्णा को एक नोटिस जाी किया था, जिसमें कहा गया था कि मुडा धोखाधड़ी मामले में लगाए गए आरोप सबूतों की कमी के कारण साबित नहीं किए जा सके।
नोटिस में कहा गया, स्नेहमयी कृष्णा की शिकायत में भारतीय दंड संहिता, भ्रष्टाचार निरोधक कानून और कर्नाटक जमीन अधिग्रहण कानून जैसे कई कानूनी प्रावधानों का जिक्र किया गया है। लेकिन सबूतों की समीक्षा करने के बाद यह नतीजा निकला कि चार आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोप या तो नागरिक प्रकृति के हैं या वे अपराध के दायरे से बाहर हैं या फिर कानूनी प्रावधानों की गलत व्याख्या पर आधारित हैं।
एस.पी. उदेश की ओर से जारी नोटिस में बताया गया था कि यह मामला कानूनी कार्रवाई के योग्य नहीं है, जिसके कारण एक अंतिम रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई। नोटिस पर प्रतिक्रिया देते हुए स्नेहमयी कृष्णा ने लोकायुक्त की आलोचना की और आरोप लगाया कि वह राजनेताओं को बचा रहे हैं और रिपोर्ट को अदालत में चुनौती दी।
कृष्णा ने कहा, ‘मुझे लोकायुक्त को लेकर जो शक था, वह सही साबित हो गया है। लोकायुक्त अधिकारियों ने ऐसा व्यवहार किया जैसे उन्होंने अपनी आत्मा राजनेताओं को बेच दी हो। हालांकि, मैंने सभी जरूरी दस्तावेज दिए, लेकिन लोकायुक्त पुलिस ने नोटिस जारी किया, जिसमें कहा गया कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, पार्वती सिद्धारमैया, मल्लिकार्जुन स्वामी और देवराज के खिलाफ कोई साझा नहीं हैं, इसलिए वे बी रिपोर्ट दाखिल करने जा रहे हैं।’
वहीं, सिद्धारमैया को मुडा मामले में लोकायुक्त पुलिस से क्लीन चिट मिलने का स्वागत करते हुए उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने कहा कि यह मामला राजनीति से प्रेरित था और विपक्षी भाजपा व जद (एस) की एक साजिश थी, जिसका मकसद उनकी राजनीतिक छवि को खराब करना था।